Pt. Vijayshankar Mehta’s column – Remembering ancestors is another practice of meditation | पं. विजयशंकर मेहता का कॉलम: ध्यान का ही एक और प्रयोग है पितरों का स्मरण करना

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3 घंटे पहले
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पं. विजयशंकर मेहता
जब चेतना अकेली होती है, तब ध्यान लगता है। और यदि चेतना माया से जुड़ गई, तो हम उलझ जाते हैं। रामकथा में पक्षीराज गरुड़ ऐसे ही उलझ गए थे। उन्होंने रामजी का बंधन काटा युद्ध के दौरान, तो उन्हें लगा मैंने बहुत बड़ा काम कर दिया। लेकिन परेशान हो गए। तो देवर्षि नारद के पास गए और अपना संदेह बताया- ब्याकुल गयउ देवरिषि पाहीं। कहेसि जो संसय निज मन माहीं।।
तब नारद ने कहा था कि गरुड़, श्रीराम की माया बड़ी बलवती है। मुझे भी कई बार इस माया ने नचाया है। सावधान हो जाओ और ब्रह्मा जी के पास चले जाओ। अब इसमें यह संकेत मिलता है कि हम संसार में रहते हैं तो कहीं ना कहीं उलझेंगे जरूर। तो संत के पास जाने से, सत्संग करने से, गुरु का सान्निध्य प्राप्त करने से हम ध्यान की तरफ जा सकते हैं और माया से मुक्त होंगे।
श्राद्ध पक्ष चल रहे हैं। ध्यान लगाने का एक और प्रयोग है कि हम अपने पितरों का स्मरण करें। उनके निमित्त शुभकार्य करें, तब भी हम ध्यान की तरफ चल पड़ते हैं।
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