N. Raghuraman’s column – Be disciplined or spend more on bad habits, the decision is yours | एन. रघुरामन का कॉलम: अनुशासित बनें या बुरी आदतों पर अधिक खर्च करें, फैसला आपका

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7 घंटे पहले
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एन. रघुरामन, मैनेजमेंट गुरु
सोमवार सुबह 4 बजे मैं अपनी बिल्डिंग से अपनी नियमित दूधवाला फ्लाइट (अल सुबह) के लिए निकला। बिल्डिंग का चौकीदार- जो हमेशा सोता मिलता है और विंग का अंदरूनी गेट खोलने के लिए उसे जगाना पड़ता है- आज बिल्कुल सजग था। उसने मुझे गुड मॉर्निंग भी बोला। मैं अचंभित हुआ।
एयरपोर्ट जाते समय मैंने ड्राइवर से पूछा कि वह आज इतना खुश क्यों दिख रहा है, क्या उसे सिक्योरिटी सुपरवाइजर ने चेतावनी दी है? ड्राइवर ने मुस्कराते हुए कहा, नहीं सर, उसने मोबाइल पर फिल्में देखना बंद कर दिया है। यह जवाब मुझे 2016 के फ्लैशबैक में ले गया, जब एक मोबाइल कंपनी ने इंटरनेट को लगभग मुफ्त करते हुए उस चीज को बढ़ावा दिया, जिसे मैं डिजिटल समाजवाद कहता हूं।
ये को-ऑपरेटिव सोसाइटी के चौकीदार धीरे-धीरे मुफ्त इंटरनेट का उपयोग कर फिल्में देखने लगे। फिर यह उनकी लत बन गई। भले ही उनकी तनख्वाह 8 से 10 हजार रुपए थी, लेकिन उन्होंने ईएमआई पर स्मार्टफोन खरीदे- जो उनकी तनख्वाह से कई गुना महंगे थे, क्योंकि वे मुफ्त इंटरनेट और फिल्में देखने के आदी हो चुके थे। जाने-अनजाने वे मान बैठे कि फिल्में देखने से वे रात को जागते रहेंगे। धीरे-धीरे यही धारणा उनकी नौकरी बनाए रखने के लिए ऑक्सीजन बन गई।
अब 2025 पर आते हैं। जब कोई चीज ऑक्सीजन बन जाती है, तो कंपनियां उस उत्पाद की कीमतें बढ़ा देती हैं। भारत के लोगों का पसंदीदा नशा- मेरा मतलब डेटा- हाल ही में थोड़ा महंगा हो गया। लेकिन ऐसी दाम बढ़ोतरी उत्पाद की मांग घटाती नहीं है, क्योंकि वह तो ऑक्सीजन की श्रेणी में आता है।
असल में तो वह महत्वाकांक्षी बन जाता है। ये चौकीदार लोग मोबाइल पर जमे रहने के लिए अपनी सुबह की चाय या वड़ा पाव तक छोड़ सकते हैं। कुछ यह कहने में गर्व महसूस कर सकते हैं कि मेरे पास पर्याप्त डेटा है और मैं प्रीमियम सेवाओं के लिए भुगतान करता हूं।
यह उन स्मोकर्स की तरह है, जिनकी सिगरेट पर संशोधित जीएसटी के तहत 40% की उच्चतम स्लैब लगने वाली है। कुछ आकलन बताते हैं कि अभी 20 सिगरेट का जो पैकेट 340 रुपए का है, वो आगामी 22 सितंबर से 380 रुपए तक हो सकता है। यानी एक दिन में एक पैकेट पीने वाले को रोजाना 40 रुपए और महीने में 1200 रुपए अतिरिक्त खर्च करने होंगे।
ऑफिस के बाहर खड़े होकर धूम्रपान करने वाले कुछ वेतनभोगियों के लिए यह आय का 15 से 20% तक होगा, क्योंकि धूम्रपान का खर्च 11400 रुपए तक पहुंच जाएगा। अगर परिवार में दो लोग धूम्रपान करते हैं तो पूरा परिवार मिलकर अपनी कमाई का 35-40% तंबाकू कंपनियों को दे देता है। सिगरेट की लत और डेटा उपयोग एक जैसी बातें हैं। कई लोगों के लिए दोनों आदतों को छोड़ना बहुत मुश्किल होने वाला है।
बीते नौ सालों में मुफ्त और सस्ते डेटा ने हमें री-वायर्ड कर दिया है। हम अब दिशाओं को लेकर दिमाग पर जोर नहीं डालते। हम किसी से नहीं पूछते कि भैया, ये कॉलोनी कहां है? हम स्पेलिंग देखने के लिए डिक्शनरी नहीं खोलते। एक क्लिक पर कुछ साइट्स यह बता देती हैं।
गृहिणियों ने अपनी पाक कला के प्रयोग बंद कर दिए। वे हमेशा मोबाइल पर किसी शेफ की रेसिपी देखती रहती हैं। कॉलेज के बच्चों के लिए तो मोबाइल शरीर का अंग बन गया है, जिसे वे टॉयलेट में भी ले जाते हैं। संक्षेप में कहें तो मानव शरीर की मेमोरी डिस्क कहे जाने वाले हमारे मिड-ब्रेन में धूल छा रही है। क्योंकि सर्चिंग हमारी प्रवृत्ति बन गया है और सोचना वैकल्पिक हो गया है।
तो भविष्य क्या है? पहले वे आदत लगाएंगे। यदि आप उत्पाद का उपयोग और भुगतान कर रहे हैं, तो आप एक परफेक्ट यूजर होंगे। लेकिन, हममें से ज्यादातर उस सीमा को पार कर जाते हैं और एडिक्ट बन जाते हैं। फिल्में बिंज-वॉच करते हैं और धीरे-धीरे धूम्रपान की तरह लत के शिकार हो जाते हैं।
फंडा यह है कि या तो उपरोक्त चौकीदार की तरह अनुशासित बनें या उसी उत्पाद के लिए प्रीमियम भुगतान करते रहें, क्योंकि आपको लगता है कि आपने समाज में कोई बड़ा मुकाम हासिल कर लिया है। चयन आपका है।
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