Column by Ashwini Vaishnav – Northeast is no longer a remote frontier region | अश्विनी वैष्णव का कॉलम: अब सुदूर सीमांत का एक क्षेत्र नहीं रह गया है पूर्वोत्तर

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6 घंटे पहले
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अश्विनी वैष्णव केंद्रीय रेल, सूचना प्रौद्योगिकी और सूचना व प्रसारण मंत्री
कई दशकों तक, पूर्वोत्तर को विकास की बाट जोहने वाला एक सुदूर सीमांत क्षेत्र माना जाता रहा था। पूर्वोत्तर राज्यों में रहने वाले हमारे भाई-बहन तरक्की की उम्मीदें तो रखते थे, लेकिन जिस बुनियादी ढांचे और अवसरों के हकदार थे, वे उनकी पहुंच से दूर रहे।
यह सब तब बदल गया जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने एक्ट ईस्ट नीति की शुरुआत की। इसके बाद जिस पूर्वोत्तर को कभी सुदूर सीमांत माना जाता था, आज उसकी एक अग्रणी क्षेत्र के रूप में पहचान स्थापित हो चुकी है।
यह बदलाव रेलवे, सड़कें, हवाई अड्डे और डिजिटल कनेक्टिविटी में रिकॉर्ड निवेश की वजह से संभव हुआ है। शांति समझौते स्थिरता ला रहे हैं। लोग सरकारी योजनाओं से लाभ उठा रहे हैं। स्वतंत्रता के बाद पहली बार उत्तर-पूर्वी क्षेत्र को भारत की विकास यात्रा का केंद्र माना जा रहा है।
रेलवे में किए निवेश को ही देख लीजिए। 2009 की तुलना में 2014 में क्षेत्र के लिए रेलवे बजट पांच गुना बढ़ा। मौजूदा वित्तीय वर्ष में ही 10,440 करोड़ रु. का प्रावधान किया गया है। 2014 से 2025 तक कुल बजट आवंटन 62,477 करोड़ रु. रहा है। वर्तमान में 77,000 करोड़ रु. की रेलवे परियोजनाएं संचालित हैं।
मिजोरम इस विकास-गाथा का हिस्सा है। यह राज्य अपनी समृद्ध संस्कृति, खेल प्रेम और खूबसूरत पहाड़ियों के लिए जाना जाता है। फिर भी, यह दशकों तक सम्पर्क की मुख्यधारा से दूर रहा। सड़क और हवाई सम्पर्क सीमित था।
रेल अब तक राजधानी तक नहीं पहुंच पाई थी। लोगों में आकांक्षाएं तो बलवती थीं, लेकिन विकास की मुख्यधारा अदृश्य थी। पर अब हालात बदल चुके हैं। प्रधानमंत्री के हाथों कल बैराबी-सैरांग रेलवे लाइन का उद्घाटन मिजोरम के लिए ऐतिहासिक उपलब्धि होगी। 51 किमी लंबी यह परियोजना 8,000 करोड़ से अधिक की लागत से बनी है और पहली बार आइजोल को राष्ट्रीय रेल नेटवर्क से जोड़ेगी।
इसके साथ ही, प्रधानमंत्री सैरांग से दिल्ली (राजधानी एक्सप्रेस), कोलकाता (मिजोरम एक्सप्रेस) और गुवाहाटी (आइजोल इंटरसिटी) के लिए तीन नई रेल सेवाओं का भी शुभारंभ करेंगे। यह रेलवे लाइन दुर्गम पहाड़ी इलाकों से होकर गुजरती है।
रेल अभियंताओं ने मिजोरम को जोड़ने के लिए 143 पुल और 45 सुरंगें बनाई हैं। इनमें से एक पुल कुतुब मीनार से भी ऊंचा है। दरअसल, इस इलाके में, बाकी सभी हिमालयी लाइनों की तरह, रेलवे लाइन भी पहले पुल, फिर सुरंग और फिर पुल के रूप में आगे बढ़ती है।
उत्तर-पूर्वी हिमालय अभी युवा पर्वत हैं, जिनके बड़े हिस्से नरम मिट्टी और जैविक पदार्थ से बने हैं। ऐसी स्थिति में सुरंग और पुल बनाना बेहद चुनौतीपूर्ण था। पारंपरिक तरीके यहां काम नहीं कर सकते थे, क्योंकि ढीली मिट्टी निर्माण का भार सहन नहीं कर पाती।
इस समस्या को दूर करने के लिए हमारे इंजीनियरों ने एक नया और अनोखा तरीका विकसित किया, जिसे अब हिमालयन टनलिंग मैथड कहा जाता है। इस तकनीक में पहले मिट्टी को स्थिर और मजबूत किया जाता है, फिर सुरंग और निर्माण का काम किया जाता है। इससे इस कठिन परियोजना को पूरा करना सम्भव हुआ।
एक और चुनौती ऊंचाई पर पुलों को स्थायी रूप से मजबूत बनाना था, क्योंकि यह क्षेत्र भूकम्प प्रभावित है। इसके लिए भी विशेष डिजाइन और उन्नत तकनीकों का इस्तेमाल किया गया, जिससे पुल सुरक्षित और मजबूत बन सकें।
यह स्वदेशी इनोवेशन पूरी दुनिया के लिए ऐसे ही भौगोलिक क्षेत्रों में एक मॉडल है। हजारों अभियंताओं, श्रमिकों और स्थानीय लोगों ने मिलकर इसे सम्भव बनाया। जब भारत निर्माण करने की ठान लेता है तो वह अद्वितीय निर्माण करता है।
रेलवे को विकास का इंजन माना जाता है। यह नए बाजारों को करीब लाती है और व्यापार के अवसरों का सृजन करती है। नई रेल लाइन मिजोरम के लोगों का जीवन स्तर सुधारेगी। राजधानी एक्सप्रेस की शुरुआत के साथ ही आइजोल और दिल्ली के बीच की यात्रा का समय 8 घंटे कम हो जाएगा।
नई एक्सप्रेस ट्रेनें आइजोल, कोलकाता और गुवाहाटी के बीच की यात्रा को भी तेज और आसान बनाएंगी। बांस की खेती और बागवानी से जुड़े किसान अपनी उपज को तेजी से और कम लागत पर बड़े बाजारों तक पहुंचा पाएंगे।
पर्यटन को भी बढ़ावा मिलेगा। स्थानीय कारोबार और युवाओं के लिए नए अवसर सृजित होंगे। दशकों से मिजोरम के लोगों से सड़कों और रेल के लिए प्रतीक्षा करने को कहा जाता रहा। अब वह इंतजार खत्म हो गया है।
प्रधानमंत्री ने कहा था कि हमारे लिए पूर्व अर्थात ईस्ट का अर्थ है- एम्पॉवर (सशक्त बनाना), एक्ट (कार्य करना), स्ट्रेंग्थन (मजबूत बनाना) और ट्रांसफॉर्म (बदलना)। ये शब्द पूर्वोत्तर के प्रति उनके दृष्टिकोण का सार बताते हैं। (ये लेखक के अपने विचार हैं)
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