N. Raghuraman’s column: How can we expect young people to perform well in difficult times? | एन. रघुरामन का कॉलम: हम ये उम्मीद कैसे करें कि युवा परेशानी में भी बेहतर प्रदर्शन करें?

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3 घंटे पहले
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एन. रघुरामन, मैनेजमेंट गुरु
गोवा में बुधवार से शुरू हुई पश्चिमी क्षेत्र जूनियर (अंडर-18) शूटिंग प्रतियोगिता में छह शूटर्स निशाना साधने के लिए तैयार थे। ये सभी प्रतियोगी मंगलवार शाम 5.25 बजे की फ्लाइट पकड़ने के लिए दोपहर 2:30 बजे तक अपने सामान और एम्युनिशन के साथ पुणे हवाई अड्डे पर पहुंच गए थे। लेकिन सामान की जांच के दौरान असमंजस शुरू हो गया।
एक ग्राउंड स्टाफ ने कहा कि एम्युनिशन चेक-इन बैग में ले जाना होगा, ना कि वेपन केस में। कुछ ही देर बाद, शूटर्स को बताया गया कि एम्युनिशन हैंड बैगेज के तौर पर वेपन केस में ही ले जाना होगा। कर्मचारियों ने फिर से अपना रुख बदला और कहा कि एम्युनिशन को चेक-इन बैग में ही ले जाना चाहिए, न कि वेपन केस में। प्रोटोकॉल को लेकर असमंजस और एम्युनिशन, पिस्टल और राइफल ले जाने को लेकर कर्मचारियों के बार-बार बदलते रुख का अंत एक सदमे के साथ हुआ। अंतत: ग्राउंड स्टाफ ने उन्हें बताया कि चेक-इन काउंटर बंद हो चुका है।
उनमें से किसी को भी नागर विमानन महानिदेशालय के निर्देशों का पता नहीं था। विशेषज्ञों का कहना है कि अच्छे से पैक किए गए एम्युनिशन, रजिस्टर्ड चेक-इन बैग में ले जाने चाहिए। जाहिर है, एयरलाइन को शूटर्स को बुधवार सुबह की किसी दूसरी एयरलाइन की फ्लाइट से गोवा भेजने का निर्णय करना पड़ा। इसके लिए उनको अलसुबह उठना पड़ा होगा।
विडंबना देखिए कि शूटर्स एक दिन पहले पहुंचना चाहते थे, अच्छे से आराम करना, अपने हथियारों की सार-संभाल करना चाहते थे, ताकि प्रतियोगिता जीतने के लिए खुद को तैयार कर सकें। लेकिन उनकी यात्रा में एक दिन की देरी हो गई। चूंकि गोवा हवाई अड्डा दूर है तो उन्हें कम से कम एक घंटे की यात्रा करनी पड़ी होगी और संभवत: तनावपूर्ण मानसिकता में स्पर्धा में हिस्सा लेना पड़ा होगा। मैं आशा करता हूं कि प्राधिकरण ने उन्हें आराम दिया होगा और आयोजन से पहले तनाव कम करने का मौका दिया होगा।
अब अमेरिका की उटा वैली यूनिवर्सिटी का उदाहरण लें, जहां पिछले हफ्ते एक आयोजन के दौरान कंजर्वेटिव एक्टिविस्ट चार्ली किर्क की गोली मारकर हत्या कर दी गई। कैंपस पहुंचे विद्यार्थी कुछ ही घंटों में भागते-दौड़ते नजर आए। ये यूनिवर्सिटी अपने अनूठे मॉडल पर गर्व करती है- जो नियमित अकादमिक कार्यक्रमों के अलावा एन्गेज्ड लर्निंग और फैकल्टी के मार्गदर्शन में रिसर्च के जरिए छात्रों की सफलता पर केंद्रित है।
लेकिन कैंपस में छात्रों का पहला अनुभव ही देखिए कि उनकी आंखों के सामने ही एक जाने-माने व्यक्ति की हत्या कर दी गई। कैंपस बंद हो गया। युवा छात्र उस डर से उबरने के लिए के लिए संघर्ष कर रहे हैं, जिसने उनके कैंपस को क्राइम सीन में बदल दिया। 46 हजार छात्रों के बीच हमले के उस भयानक वीडियो को प्रसारित होने से रोका नहीं जा सका। इससे आरोप-प्रत्यारोप का दौर शुरू हो गया, जिसने आगे भी हिंसा होने का डर पैदा कर दिया।
वहां पढ़ने वाले मेरे एक कजिन के बेटे ने मुझे बताया कि जूम कॉल और ग्रुप चैट में सभी छात्रों के बीच महज इतनी सी बात हो रही थी- ‘क्या तुम ठीक हो?’ कैंपस अभी तक खुला नहीं है। लेकिन इससे पहले सभी छात्र एक-दूसरे का हालचाल पूछ रहे हैं। सांत्वना दे रहे हैं और जब भी कैंपस खुले तो पहले दिन एक ही रंग के कपड़े पहनने की योजना बना रहे हैं।
वास्तव में वे सभी अलग-अलग राय के साथ बंटने के बजाय एकजुटता दिखाने की कोशिश कर रहे हैं। मेरा मानना है कि कैंपस को जल्द खोल देना चाहिए, क्योंकि एक-दूसरे को व्यक्तिगत तौर पर देखने से सोशल मीडिया पर फैली जहरीली बयानबाजी से उनके दिल-दिमाग पर हुआ असर खत्म हो सकता है।
लेकिन, सुरक्षा एजेंसियों की प्राथमिकताएं दूसरी हैं। इस बीच, यूनिवर्सिटी और प्रोफेसरों को छात्रों से बात जरूर करनी चाहिए। छोटे छात्र समूह को लेकर कैंपस के बाहर बैठक करनी चाहिए। विशेषज्ञों का मानना है कि ऐसा नहीं हुआ तो पढ़ाई की शुरुआत ही गड़बड़ा जाएगी।
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