Saturday 18/ 10/ 2025 

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Sanjay Kumar’s column – Bihar election results are difficult to predict | संजय कुमार का कॉलम: बिहार चुनाव परिणामों की  भविष्यवाणी करना कठिन है

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5 घंटे पहले

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संजय कुमार, प्रोफेसर व राजनीतिक टिप्पणीकार - Dainik Bhaskar

संजय कुमार, प्रोफेसर व राजनीतिक टिप्पणीकार

2025 के बिहार विधानसभा चुनाव में कौन-सा दल या गठबंधन जीतेगा, इसका पूर्वानुमान लगाना बहुत चुनौती भरा है। इसके बहुत-से कारण भी हैं। पहला और सबसे अहम कारण तो यही है कि महज कुछ सप्ताह पहले ही घोषित हुए चुनावों में राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) और महागठबंधन में सीट शेयरिंग फॉर्मूला भले ही हाल में जाकर तय हो पाया हो, लेकिन पार्टियों के द्वारा अपने सभी प्रत्याशियों की घोषणा की जाना अभी बाकी है।

एनडीए-जदयू की 101-101 सीटों की साझेदारी में यह पहला अवसर है, जब भारतीय जनता पार्टी जदयू की बराबरी में पहुंची है। पार्टी ने 19 विधायकों के टिकट भी काट दिए हैं। उधर कांग्रेस 48 उम्मीदवारों की सूची लेकर आई है। पार्टी ने कई पुराने उम्मीदवारों पर भरोसा जताया है।

राष्ट्रीय जनता दल की ओर से जारी हुई 35 उम्मीदवारों की सूची में एम-वाय फॉर्मूले पर फोकस किया गया है। वहीं पहली बार विधानसभा चुनाव मैदान में उतर रही प्रशांत किशोर की जन सुराज पार्टी सभी 243 सीटों पर चुनाव लड़ने वाली है। उसने अभी तक 116 उम्मीदवारों के नामों का ऐलान कर दिया है।

वह जल्द ही तीसरे दौर का टिकट वितरण करने जा रही है। इस अस्पष्ट-से माहौल में, जबकि बहुत सारे मतदाता नहीं जानते कि उनका उम्मीदवार कौन है- शुरुआती सर्वेक्षणों में सामने आई मतदाताओं की पसंद वोटिंग के दिन तक बदल भी सकती है। दूसरे, काफी वोटर ऐसे होते हैं, जो अंत समय तक अपने निर्णय को स्थगित रखते हैं कि किसे वोट देना है।

ये ‘फ्लोटिंग वोटर्स’ कहलाते हैं। अभी जब चुनाव में तीन सप्ताह से अधिक समय बचा है तो यह अंदाजा लगाना चुनौतीपूर्ण है कि वोटिंग वाले दिन वे किस पार्टी या गठबंधन को वोट देंगे। जब चुनाव में कांटे की टक्कर हो तो यह और भी महत्वपूर्ण हो जाता है। ऊंट किस करवट बैठेगा, यह तीन हफ्ते पहले बताना कठिन है, पर बिहार में हुए विभिन्न सर्वेक्षणों के आधार पर कई ऐसी भविष्यवाणियां सामने आई हैं, जो थोड़े अलग-अलग संभावित परिणामों की ओर इशारा कर रही हैं।

मान लें कि ये सर्वेक्षण बेहद सावधानी से किए गए हैं और हमारे पास यह मानने का यों भी कोई कारण नहीं कि ये सर्वे व्यवस्थित तरीके से नहीं किए गए हैं। फिर भी ये सर्वे अधिक से अधिक उस वक्त के लिए मतदाता का मूड भर ही बता सकते हैं, जब इन्हें किया गया था। इनके आधार पर पहले से यह अंदाजा लगा पाना तो बहुत ही मुश्किल है कि 6 और 11 नवंबर के दिन वोटर किसे वोट करेगा।

यही कारण है कि अभी की स्थिति में यह भविष्यवाणी करना अत्यंत चुनौतीपूर्ण है कि बिहार के चुनाव में कौन-सा गठबंधन या पार्टी चुनाव जीतेगी। हां, इन सर्वेक्षणों के जरिए एक मोटा-मोटा यह आकलन जरूर किया जा सकता है कि अभी मतदाता का मूड क्या है और यदि आज ही चुनाव हो जाएं तो उनके संभावित परिणाम क्या हो सकते हैं।

अतीत में हुए बहुत सारे अध्ययनों ने इस ओर इशारा किया है कि बहुत बड़ी संख्या में मतदाता आखिरी क्षणों तक अपने निर्णय को स्थगित करके रखते हैं कि वे किस पार्टी या उम्मीदवार को वोट देंगे। कभी-कभी तो मतदान वाले दिन या उससे एक-दो दिन पहले तक भी मतदाता अपना मानस नहीं बनाता।

2020 के विधानसभा चुनाव के दौरान लगभग 25% मतदाताओं ने मतदान के दिन और 15% ने कुछ ही दिन पहले अपना मन बनाया था। इस प्रकार, कुल 40% मतदाताओं ने आखिरी कुछ दिनों में ही तय किया था कि वे किसे वोट देंगे। इनकी तुलना में ऐसे वोटरों की संख्या 25% से ज्यादा नहीं होती, जो अपना मत पहले ही तय कर लेते हैं। और वो अपनी पार्टियों के कट्‌टर समर्थक होते हैं। इस तरह के मतदाता बंधक-वोटर भी कहलाते हैं।

ऐसे वोटर भी होते हैं, जो पहले उम्मीदवार देखते हैं, फिर उसके उठाए मुद्दों पर विचार करते हैं और तब जाकर अपना मन बनाते हैं। यह बात केवल 2020 के बिहार चुनाव के लिए ही सही नहीं है, बल्कि बिहार में हुए बीते कुछ विधानसभा चुनावों में भी ऐसा ही पैटर्न रहा है। हो सकता है कि सर्वे के समय मतदाता खुले मन और स्वतंत्र रूप से अपनी राजनीतिक पसंद बता रहा हो, लेकिन ये सर्वे अंतिम दिन या वोटिंग के कुछ दिन पहले मतदाता की पसंद में आने वाले संभावित बदलाव को ध्यान में नहीं रख सकते।

कुछ हफ्तों या महीनों पहले किए सर्वेक्षण उस समय पर वोटरों के मूड जानने का एक बेहतर पैमाना तो हैं, लेकिन इतने पहले किए गए सर्वेक्षणों के आधार पर सीटों को लेकर कोई चुनावी भविष्यवाणी करना किसी भी चुनाव विश्लेषक की कड़ी परीक्षा ले सकता है।

बड़ी संख्या में मतदाता आखिरी क्षणों तक अपने निर्णय को स्थगित करके रखते हैं कि वे किस पार्टी या उम्मीदवार को वोट देंगे। कभी-कभी तो मतदान वाले दिन या उससे एक-दो दिन पहले तक भी मतदाता मन नहीं बनाता। (ये लेखक के अपने विचार हैं।)

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