Sunday 19/ 10/ 2025 

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N. Raghuraman’s column: Did you pay special attention to your father during Diwali? | एन. रघुरामन का कॉलम: दीपावली के दौरान आपने अपने पिता पर खास ध्यान दिया क्या?

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2 घंटे पहले

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एन. रघुरामन, मैनेजमेंट गुरु - Dainik Bhaskar

एन. रघुरामन, मैनेजमेंट गुरु

यह 50 साल पुरानी कहानी मैंने 40 साल पहले पढ़ी थी, जिसमें बताया गया ​था कि कैसे पिता अपने बच्चों को खुश रखने के लिए संघर्ष करते हैं, खासकर दीपावली जैसे त्योहारों के अवसर पर। कहानी एक पुलिस वाले के घर से शुरू होती है। एक दिन जब वह अपनी ड्यूटी पर जा रहा था, तो उसकी पत्नी कहती है, तुम भाग्यशाली हो कि तुम्हारी बेटी का जन्मदिन हर साल दीपावली वाले सप्ताह में ही पड़ता है, इसलिए तुम उसके लिए साल में दो बार कपड़े खरीदने से बच जाते हो।

कम से कम आज उसके लिए कुछ खरीदने के लिए 50 रुपयों का बंदोबस्त कर लेना। पुलिस वाला सहमति में सिर हिलाता है और अपनी साइकिल पर निकल जाता है। पूरी सुबह वह किसी ऐसे व्यक्ति की तलाश में रहता है, जिससे वह कुछ पैसे ले सके, लेकिन उसे कोई नहीं मिलता। निराश होकर वह पास की चाय की दुकान पर बैठ जाता है, जो कि एक पोस्ट बॉक्स के पास बाजू में है।

उस पोस्ट बॉक्स पर एक मंदिर के पुजारी को वह एक इनलैंड लेटर डालने की कोशिश करते हुए देखता है। लेकिन पोस्ट बॉक्स में पहले से कोई लिफाफा फंसा हुआ था। पुजारी धीरे से उस लिफाफे को निकालता है, ताकि उसे अच्छे से तह करके फिर से नीचे धकेल दे। पुलिस वाले को इसमें अपने लिए एक मौका दिखाई देता है।

वह उछलकर उसका हाथ पकड़ लेता है और कहता है, थाने में शिकायत आई थी कि कोई पोस्ट बॉक्स से चिट्ठियां चुरा रहा है, और आज मैंने अपराधी को रंगे हाथों पकड़ ही ​लिया, चलो थाने। पुजारी समझाने की कोशिश करता है, लेकिन वह सुनने को तैयार नहीं होता। पुजारी समझ नहीं पाता कि पुलिस वाला क्या चाहता है।

आखिरकार थका हुआ पुलिस वाला कहता है, 50 रुपए दो और यहां से चले जाओ।पुजारी माजरा समझ जाता है तो अपना रुख बदलकर कहता है, ठीक है, थाने चलते हैं। कहानीकार ने उन दोनों के पैदल चलने के दृश्य को बहुत खूबसूरती से लिखा है। पुलिस वाला अपनी साइकिल को धकेलता हुआ चला जा रहा था और पुजारी कभी उसके पीछे, कभी आगे चल रहा था।

इससे उन्हें देखने वालों के मन में एक अजीब-सा सवाल उठ रहा था कि आखिर कौन किसे थाने ले जा रहा है? थाने से लगभग 20 फीट पहले पुलिस वाला पुजारी से विनती करते हुए कहता है कि इंस्पेक्टर बहुत गुस्सैल आदमी है और वह आप पर हमला भी कर सकता है। लेकिन पुजारी टस से मस नहीं होता।

अंततः पुलिस वाला कहता है, मुझे 50 रुपयों की दरकार थी, क्योंकि आज मेरी बेटी का जन्मदिन है और दीपावली भी है। पुजारी अपनी धोती से 100 रुपए निकालता है और उसे देते हुए कहता है, आज शाम अपनी बेटी के साथ मंदिर आइए। मैं उसके लिए प्रार्थना करूंगा। पुलिस वाला शाम को परिवार के साथ मंदिर पहुंचता है और पुजारी उसके लिए प्रार्थना करता है।

पुलिस वाला कहता है, जब मुझे मेरा बोनस मिल जाएगा, तब मैं आपके पैसे लौटा दूंगा। उस दिवाली दो पिताओं ने अपने लिए कुछ नहीं खरीदा था। एक पैसे वापस करना चाहता था, दूसरा किसी की बेटी के लिए 50 रुपये दान करना चाहता था। मुझे हर दिवाली पर यह किस्सा याद आता है, जब मां पिता से आग्रह करती थीं कि वे दोनों बड़े परिवारों के कई लोगों के लिए नए कपड़े खरीदें।

अगर पिता के उनमें से कुछ लोगों से अच्छे संबंध न हों, तब भी वे चुपचाप मां की बात मान लेते थे। खासकर दीपावली के दौरान, जब वे अपनी जरूरतों में कटौती करने लगती थीं, क्योंकि उन दिनों आमदनी के साधन आज के मुकाबले सीमित थे। आखिरकार पिता अपनी कुछ निजी जरूरतों का त्याग करके मां को चौंका देते थे। यह सिलसिला तब भी जारी रहा, जब मैं स्वयं पिता बना।

मेरी पत्नी ने दूसरों की जरूरतें पूरी करने में मेरी मां का अनुसरण करना शुरू कर दिया। इस साल जब मैं चार साल बाद अपने लिए मोबाइल फोन खरीदना चाहता था, तो अचानक इसी हफ्ते हमारा फ्रिज खराब हो गया। शनिवार को मैंने चुपचाप अपने फोन की टूटी हुई स्क्रीन ठीक करवा ली, जो पिछले सोमवार को मुझसे क्रैक हो गई थी।

क्योंकि फिलहाल तो फ्रिज ही प्राथमिकता है। 2025 की दीपावली में एक और पिता ने कुछ त्याग किया।फंडा यह है कि कुछ खास दिनों जैसे दीपावली पर आपने ध्यान दिया होगा कि पिता आपको और परिवार को खुश रखने के लिए कितना त्याग करते हैं।

फंडा यह है कि कुछ खास दिनों जैसे दीपावली पर आपने ध्यान दिया होगा कि पिता आपको और परिवार को खुश रखने के लिए कितना त्याग करते हैं।

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