N. Raghuraman’s column: Look, new jobs are being created around the elderly population | एन. रघुरामन का कॉलम: देखिए, बुजुर्ग आबादी के आसपास नए जॉब पैदा किए जा रहे हैं

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11 घंटे पहले
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एन. रघुरामन, मैनेजमेंट गुरु
ताकुया उसुई व्हीलचेयर यूजर 65 वर्ष की मादोका यामागुची को आसानी से बिस्तर से उठा लेते हैं। उन्हें लंच देते हैं, दांत साफ करते हैं और आई ड्रॉप डालने में मदद करते हैं। यामागुची हाथ-पैर भी नहीं हिला सकतीं। लेकिन उन्हें कतई चिंता नहीं होती कि ऐसे उठाते वक्त वह उन्हें गलती से गिरा देंगे, क्योंकि उसुई बॉडी बिल्डर हैं। कोई भी उनके उभरे मसल्स देख सकता है, जो भरोसा देते हैं। आप सोच रहे हैं कि एक बॉडी बिल्डर केयरगिविंग सेंटर में क्या कर रहा है? समझने के लिए आगे पढ़ें।
दुनिया में बुजुर्गों की सबसे बड़ी आबादी वाला जापान अजीब समस्या झेल रहा है। सरकारी आंकड़ों के अनुसार हर साल एक लाख से अधिक लोग नौकरियां छोड़ रहे हैं। 2030 तक संभवत: 3 लाख और लोग करियर छोड़ सकते हैं, क्योंकि उन्हें परिवार में कुछ बीमार सदस्यों की देखभाल करने की जरूरत है। काम की मुख्य धारा में उनकी गैर मौजूदगी सरकार के साथ अर्थव्यवस्था के लिए भी बड़ा नुकसान है।
20 साल पहले केयरर के तौर पर काम कर चुके 40 वर्षीय युसुके निवा इस अंतर को पाटने के लिए आगे आए। उन्होंने विजनरी नाम की कंपनी शुरू की और युवाओं, खासकर जेन-जी में केयरगिविंग इंडस्ट्री में आने की रुचि पैदा की। वह पुरुष बॉडी बिल्डरों को पेड जिम टाइम और प्रोटीन शेक में सब्सिडी जैसे फायदों से लुभाकर देखभाल के सेक्टर में लाए।
पहले उसुई को केयर इंडस्ट्री में कुछ भी आकर्षक नहीं लगा, लेकिन जब उन्होंने फायदे देखे तो समझ आया कि वास्तव में वह इस जॉब में अपनी मसल्स का इस्तेमाल कर सकते हैं। कंपनी ने 2024 में 168 लोगों को नौकरी दी। विजनरी को अब मार्च 2026 में समाप्त होने वाले वित्तीय वर्ष में 14.4 मिलियन डॉलर की बिक्री की उम्मीद है, जो 10 गुना बढ़ोतरी होगी।
वहां से बहुत दूर भारत में आईटी पेशेवर घरों पर मौजूद बुजुर्गों से सार्थक सामाजिक बातचीत करने, भावनात्मक सहारा देने और दिनचर्या में सहायता के लिए सहानुभूतिशील सेवानिवृत्त लोगों को नियुक्त कर रहे हैं। एकल परिवारों से भरे समाज में एक नया चलन चल पड़ा है, जिसमें कामकाजी पेशेवरों द्वारा बुजुर्गों को सहयोग देने के लिए सेवानिवृत्त लोगों की सेवाएं ली जा रही हैं।
पुणे और बेंगलुरु जैसे शहरों में यह देखा जा रहा है, जबकि अन्य शहरों में भी ऐसा होने की उम्मीद है। सुधीर खुद 70 वर्ष के हैं, लेकिन तीन वर्षों से गिग वर्कर हैं और कई बुजुर्गों के सहयोगी रह चुके हैं। ऐसे लोग हमेशा होते हैं, जो थोड़े डिमेंशिया पीड़ित बुजुर्गों की निगरानी के लिए किसी को तलाश रहे होते हैं, क्योंकि इन बुजुर्गों का घर से निकलना प्रतिबंधित होता है और उन्हें हर वक्त किसी की जरूरत होती है।
चूंकि अकेलापन बड़ा रोग बन जाता है, इसलिए ये युवा पेशेवर थोड़े कम उम्र वाले किन्तु रिटायर्ड व्यक्ति की तलाश में होते हैं, जो राजनीति और जनता के सामान्य मुद्दों पर चर्चा कर सके। वास्तव में तो इन बुजुर्गों को कोई चाहिए, जो उनकी कहानियां सुने और तात्कालिक घटनाओं पर चर्चा करे।
चूंकि ऐसे कामकाज की कोई संगठित एजेंसियां नहीं हैं और डिमांडिंग वर्क शेड्यूल वाले इन आईटी पेशेवरों के पास समय की किल्लत होती है, तो वे इस मसले को लेकर सोशल मीडिया और पड़ोसियों के वॉट्सएप ग्रुप्स पर चर्चा करते हैं, ताकि रेफरेंस से किसी को नियुक्त कर सकें।
याद रखें कि जब सहयोगी नियुक्त करने की बात है तो सुरक्षा सबसे अहम है, क्योंकि बुजुर्गों के साथ वह अकेला ही रहने वाला है। सुधीर जैसे लोग तीन घंटे के लिए 500 रुपए से लेकर दिन भर के एक हजार रुपए तक कमा लेते हैं और महीने में 15-20 दिन नियोजित रहते हैं। यदि आप देखभाल या उद्यमी मानसिकता के युवा हैं तो बाजार में ऐसी गुंजाइशों और मांगों पर नजर रखिए।
फंडा यह है कि नौकरी के अवसर पैदा करते और तलाशते वक्त हमारे नए परिवर्तनों और कॉम्बिनेशन को आजमाएं। किसे पता कि यह जापान जैसे दुर्लभ कॉम्बिनेशंस वाले नए वेंचर तैयार कर दे।
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