Monday 01/ 12/ 2025 

क्या है ‘जिहाद’ का मतलब, इस पर आमने-सामने क्यों हैं मौलाना मदनी और आरिफ मोहम्मद खानकर्नाटक में एक और ब्रेकफास्ट मीटिंग! अब डीके शिवकुमार के घर जाएंगे सिद्धारमैया, बन जाएगी बात?मेरठ में ब्यूटी पार्लर संचालिका की स्कूटी में दारोगा ने लगाई आग, पुलिसकर्मी पर 10 हजार मांगने का आरोप – meerut beauty parlour owner accuses cop of arson lohianagar lclarसंसद में हंगामे को लेकर विपक्ष पर भड़कीं कंगना रनौत, बोलीं- 'वे जितना हारते जा रहे हैं, उतना…'MP में भरभराकर गिरा 50 साल पुराना पुललोकसभा में इस हफ्ते वंदे मातरम् पर होगी चर्चा, पीएम मोदी भी हिस्सा लेंगे-सूत्रबिजनौर: जामा मस्जिद के पास दो बाइक सवारों पर लाठी-डंडों से हमला, CCTV वीडियो वायरल – bijnor bike riders attacked near jama masjid cctv viral lclarआसाराम की जमानत के खिलाफ नाबालिग रेप पीड़िता पहुंची सुप्रीम कोर्ट, गुजरात हाईकोर्ट ने दी है 6 महीने की बेलबवाली गाने, रैलियों में हुड़दंग, SIR पर अलर्ट… बिहार के नतीजों से क्या-क्या सबक ले रहे हैं अखिलेश? – bihar election impact up politics akhilesh yadav style songs sir process ntcpkbPM मोदी के बयान पर अखिलेश ने पूछा-'क्या BLO की मौतें भी ड्रामा', चिराग बोले- 'सदन चलाना सभी की जिम्मेदारी'
देश

Sheela Bhatt’s column – Caste and cash distribution remain the biggest issues | शीला भट्ट का कॉलम: जाति और कैश का वितरण सबसे बड़े मुद्दे बने हुए हैं

  • Hindi News
  • Opinion
  • Sheela Bhatt’s Column Caste And Cash Distribution Remain The Biggest Issues

7 घंटे पहले

  • कॉपी लिंक
शीला भट्ट वरिष्ठ पत्रकार - Dainik Bhaskar

शीला भट्ट वरिष्ठ पत्रकार

भारत में आज गरीब के लिए 10 हजार रुपए की उपयोगिता और ताकत देखनी है तो बिहार घूमकर आइए। गांव-मोहल्लों में ‘प्रधानमंत्री से मिले 10 हजार रुपयों’ की चर्चा है। विधानसभा चुनाव से ठीक पहले राज्य सरकार ने 18 से 60 साल की सभी गैर आयकरदाता गरीब महिलाओं को व्यवसाय शुरू करने के लिए 10-10 हजार रुपए बांटे हैं। 6 और 11 नवंबर को यदि नीतीश के नेतृत्व में एनडीए महिलाओं को पोलिंग बूथों पर लाने में सफल हुआ तो यह तेजस्वी और महागठबंधन के लिए मुश्किल पैदा करेगा।

बिहार चुनाव में आज कैश वितरण से बड़ा कोई मुद्दा नहीं। ऐसा नहीं कि आरजेडी-कांग्रेस का महागठबंधन कमजोर है, लेकिन उसका अतीत उसे सताता है। 2025 के चुनाव में 20 साल पुरानी हकीकतों की चर्चा है और एनडीए ‘जंगलराज’ के नारे को मजबूत चुनावी हथियार बना रहा है।

इसके जवाब में महागठबंधन ने युवाओं के पलायन, ऊंची बेरोजगारी दर और आजीविका के घटते साधन जैसे गंभीर मुद्दे उठाए हैं। दोनों गठबंधनों के घोषणा-पत्रों में रेवड़ियों की भरमार है। ऐसे में कह सकते हैं कि चुनावी मौसम हमेशा सपने दिखाने का खेल है।

बिहार में वोटर वोट देने से पहले अपनी जाति और फायदे-नुकसान का आकलन करते हैं। दलों की जाति आधारित सियासत के आधार पर पूरी जांच-पड़ताल के बाद ही वे वोट देते हैं। वे कहते भी हैं कि ‘बेटी और वोट जाति में ही देने चाहिए।’ यों तो जाति के आधार पर पूरे देश में ही राजनीति की जाती है, लेकिन बिहार में यह परिवार की सुरक्षा का मसला भी है।

बिहार का चुनाव दूसरे राज्यों से अलग है। कर्नाटक, तेलंगाना और तमिलनाडु से तुलना करें तो बिहार में दलों और प्रत्याशियों को कम पैसों की जरूरत होती है। बिहारी मतदाता राजनीतिक रूप से चतुर और अपने रुख में दृढ़ होते हैं।

वर्तमान में मतदाता मोटे तौर पर दो श्रेणियों में बंटे हैं। 14.2% यादव और 17.7% मुस्लिमों में से अधिकतर तेजस्वी और महागठबंधन को समर्थन की बात करते हैं। वे कहते हैं कि ‘जंगल राज’ महज भाजपा का चुनावी प्रोपेगैंडा है। बीते 2-3 सालों में बिहार में कानून-व्यवस्था लालू के दौर से बेहतर नहीं है।

जन सुराज पार्टी प्रत्याशी दुलारचंद यादव की हत्या के मामले में आरोपी अनंत सिंह जेडीयू और एनडीए के ही उम्मीदवार हैं। एक आरजेडी समर्थक ने मोकामा में एक संवाददाता से कहा कि ‘अब बताइए, नीतीश राज में बिहार में क्या बदला?’

इधर, गैर यादव ओबीसी (14%), अति पिछड़ा वर्ग (36%) के मतदाताओं, महिलाओं और ब्राह्मण, राजपूत, भूमिहार जैसी अगड़ी जातियों (15.52%) के वोटरों से बात करें तो आज भी उनके शब्दों में लालू राज का डर नजर आता है।

नीतीश ने अपने शुरुआती वर्षों में बिहार को आपराधिक अंधकार से निकाला था। लोग आज भी उसकी कृतज्ञता मानते हैं। कहा जाता है कि नीतीश को आंशिक स्मृति लोप है। लेकिन राजगीर के समीप एक युवा मतदाता कहते हैं कि ‘पिता की याददाश्त कमजोर हो तो उन्हें घर से नहीं निकालते।’

बिहार में लंबा शासन करने के बावजूद भाजपा की कमजोरी यह है कि वह नीतीश जैसा भरोसा नहीं कमा पाई। उसके पास करिश्माई नेता नहीं है। नीतीश के बिना वह अति-पिछड़ा वर्ग और दलितों को भी अपनी छतरी तले नहीं ला सकती।

लेकिन तयशुदा तौर पर वह अपने भीतर बदलाव ला रही है। भाजपा उत्तरी और उत्तर-पश्चिमी बिहार के मुस्लिम और यादव वोटर जानते हैं कि नीतीश के सहारे चल रही भाजपा बिहार को लेकर अब किसी नई योजना का खुलासा करेगी।

सरकार के 75 लाख गरीब महिलाओं को 10-10 हजार देने के दावे पर महागठबंधन इसे वोटरों को रिश्वत देना कहता है, जबकि अमित शाह इसे व्यापार शुरू करने के लिए ‘सीड मनी’ बताते हैं। कई मायनों में बिहार का चुनाव एक हाइपर लोकल चुनाव जैसा है।

टिकट वितरण की तुलना करें तो आरजेडी ने यादवों पर भरोसा जताया है और भाजपा ने बड़ी संख्या में अगड़ी जातियों के प्रत्याशियों को टिकट दिया है। सियासत में जातियों का प्रभाव कम करने के लिए बिहार बहुत कुछ नहीं कर पाया है।

बिहार में वोटर वोट देने से पहले अपनी जाति और फायदे-नुकसान का आकलन करते हैं। जाति आधारित सियासत के आधार पर पूरी जांच-पड़ताल के बाद ही वे वोट देते हैं। वे कहते भी हैं कि ‘बेटी और वोट जाति में ही देने चाहिए।’ यह परिवार की सुरक्षा का मसला भी है।

(ये लेखिका के अपने विचार हैं)

खबरें और भी हैं…

Source link

Check Also
Close



DEWATOGEL


DEWATOGEL