Monday 01/ 12/ 2025 

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N. Raghuraman’s column – Raising a generation that knows problems will come | एन. रघुरामन का कॉलम: ऐसी पीढ़ी बनाएं जिसे पता हो कि समस्या तो आएगी ही

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1 घंटे पहले

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एन. रघुरामन, मैनेजमेंट गुरु - Dainik Bhaskar

एन. रघुरामन, मैनेजमेंट गुरु

अमा डबलम (ऊंचाई 6,812 मीटर), नेपाल की सबसे तकनीकी हिमालयी चोटियों में से एक है। इसे अक्सर ‘हिमालय का मैटरहॉर्न’ भी कहते हैं। इसे अपनी खूबसूरती के साथ खड़ी चढ़ाइयों, बर्फीली दीवारों और तेजी से बदलते मौसम के लिए जाना जाता है। अनुभवी पर्वतारोही भी इसे जटिल चढ़ाई में से एक मानते हैं।

ऐसे में, ब्लू बेबी सिंड्रोम से पीड़ित व्यक्ति के लिए तो और मुश्किल होगी, जो कि हृदय संबंधी रोग है, जिससे खून में ऑक्सीजन कम होती है और त्वचा नीली पड़ जाती है। इससे पीड़ित व्यक्ति को पहाड़ चढ़ना तो दूर, मेहनतभरी गतिविधि तक की मनाही होती है। लेकिन लखनऊ में जन्मी, सौम्या रक्षित (30) ने जन्म से ही इसका शिकार होने और बचपन में दो ओपन हार्ट सर्जरी होने के बावजूद, इस चोटी की चढ़ाई सफलतापूर्वक पूरी की। माउंट अमा डबलम की चढ़ाई की योजना 27 दिनों की थी, लेकिन उन्होंने 16 दिन ही लिए।

वे कहती हैं, ‘इस चढ़ाई का मतलब सिर्फ चोटी पर पहुंचना नहीं था, बल्कि यह साबित करना था कि कोई भी बीमारी आपकी सीमा तय नहीं करती।’ सौम्या इस चोटी पर चढ़ने वाली तीसरी भारतीय महिला हैं और उनका अगला लक्ष्य कंचनजंगा और अंततः एवरेस्ट है!

हाल ही में, भारतीय महिला क्रिकेटरों ने 2025 ओडीआई वर्ल्ड कप के दौरान जीत की अतुलनीय पटकथा लिखी, जो सोच में लचीलेपन, कौशल और सामूहिक प्रयास का मिश्रण थी। शुरुआती झटकों से उबरकर, बढ़ते दबाव के बीच, टीम रिकॉर्डतोड़ चेज़ और शानदार प्रदर्शन के बल पर, देश में छा गई। अनुभवी से लेकर नई खिलाड़ियों तक, सभी ने अहम भूमिका निभाई, जिससे भारतीय महिला क्रिकेट के भविष्य की नई इबारत लिखी गई।

याद रहे, इसी टीम को कई साल अंतरराष्ट्रीय मैच खेलने नहीं मिले, लेकिन इसकी महिलाओं ने लगन की अलख बुझने नहीं दी और महिला क्रिकेट को लगातार आगे बढ़ाया।एक तरफ हम ऐसे युवाओं की सफलता देखते हैं, वहीं सोशल मीडिया पर दिनभर सक्रिय रहने वाले ऐसे लोग भी हैं, जो सोचते हैं कि यह दुनिया परफेक्ट है क्योंकि सोशल मीडिया पर हर कोई आत्मविश्वास से लबरेज, सफल और खुश नज़र आता है। हो सकता है कि बतौर पैरेंट, हम अपने बच्चों को ऐसा फरफेक्ट जीवन देना चाहें।

शायद हमारी ‘हेलिकॉप्टर पैरेंटिंग’ (हमेशा बच्चों के आसपास मंडराना ताकि उन्हें कोई समस्या न झेलना पड़े) के कारण वे सोचने लगे हैं कि परफेक्शन बनाया जा सकता है। जबकि सच्चाई यह है कि समस्या तो आएगी ही। मुझे मनोचिकित्सक, पेक एम स्कॉट की किताब ‘द रोड लेस ट्रैवल्ड’ याद आ रही है, जिसमें अनुशासन, प्रेम और करुणा के ज़रिए मुश्किल वक्त का सामना करने का तरीका बताते हुए, वैज्ञानिक और आध्यात्मिक विचार साझा किए गए हैं।

उनमें से कुछ बिंदु ये रहे –

1.कुछ युवा सोचते हैं कि समुद्र में अनंत शांति है। उन्हें बताएं कि यह भ्रम है। समस्या कहीं से भी आ सकती है।

2. आशावाद मूड नहीं, एक कौशल है। आशावाद, संघर्ष पर चिपकी मुस्कान नहीं है, सोच का अनुशासन है।

3. पेशेवर ज़िंदगी में असफलता को डेटा मानें। परिवार, असफलता पर विचार को बढ़ावा देते हैं, शर्मिंदा होने को नहीं। स्कूलों में, गलती होना प्रयास का प्रमाण है, असफलता का नहीं। ‘यह मुझे परिभाषित करता है’ की बजाय ‘यह मुझे सिखाता है’ की सोच अपनाएं।

4. किसी आघात से निकलना सिखाएं। यह बताता है कि लोग कैसे सराहना, शक्ति और उद्देश्य के साथ मुश्किल से उबरते हैं।

5. विचारों में लचीलापन महज व्यक्तिगत कौशल नहीं है, बल्कि सांस्कृतिक मूल्य है। बच्चों में इसे विकसित करें।

फंडा यह है कि बच्चों को जीवन में कोई समस्या न आए, इसकी कल्पना करना और इसे सुनिश्चित करना अच्छा है, लेकिन ज़रूरी है कि बच्चों को पता हो कि अचानक समस्या आए, तो सामना कैसे किया जाए।

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