Pt. Vijayshankar Mehta’s column – If you praise your own success, you will definitely become arrogant. | पं. विजयशंकर मेहता का कॉलम: सफलता का गुणगान स्वयं किया तो अहंकार निश्चित है

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2 घंटे पहले
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पं. विजयशंकर मेहता
सफलता की सहज स्वीकृति आनंद देती है। जब कभी हम सफल हों, उसका उद्घोष न करें। बस, स्वीकार लें। जैसे हम देवस्थान पर जाकर परमात्मा का प्रसाद स्वीकारते हैं, उसका सम्मान करते हैं, ऐसे ही सफलता को प्रभु कृपा मान लें। लेकिन यदि हमने उद्घोष किया कि सफलता हमने पाई है तो फिर अहंकार का प्रवेश निश्चित है।
दूसरे हमारे सफलता की कहानी सुनाएं, वहां तक तो ठीक है, हम खुद ही हल्ला मचाएं, यह खतरनाक है। रावण अपनी हर छोटी-बड़ी सफलता का गुणगान खुद ही करता था। इसी अहंकार में वो मारा गया। हनुमान जी ने भी बहुत बड़ी सफलता अर्जित की थी।
रावण के सामने उसकी लंका ध्वस्त करना और जिस उद्देश्य के लिए श्रीराम जी ने भेजा था, वो पूरा कर लेना। इसके बाद भी जब हनुमान जी लौटकर आए और श्रीराम जी ने जानकारी लेनी चाही तो वे चुपचाप खड़े रहे। जो कुछ भी हनुमान जी करके आए, उसका गुणगान जामवंत और सुग्रीव ने किया। बस हनुमान जी का यही सिद्धांत हम भी अपना लें।
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