Pt. Vijayshankar Mehta’s column – There is a big difference between being outspoken and being blunt. | पं. विजयशंकर मेहता का कॉलम: स्पष्टवादी होने और मुंहफट होने में बहुत बड़ा अंतर है

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5 घंटे पहले
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पं. विजयशंकर मेहता
आजकल जेन-जी की बहुत चर्चा होती है। कुछ लोग कहते हैं कि ये पीढ़ी बहुत स्पष्टवादी है। लेकिन स्पष्ट बोलने और मुंहफट होने में अंतर है। अधिकांश युवा आज मुंहफट होते जा रहे हैं। जो भी मुंह में आया, बोल दिया। सामने कौन सुनेगा, इसकी उन्हें परवाह नहीं है।
ये पीढ़ी विज्ञान और तकनीक की जानकार है तो उसे मालूम होना चाहिए कि बोलना भी ब्रेन का साइंस है। अगर ये रोज थोड़े समय के लिए मेडिटेशन करे तो इनका एक न्यूरल पाथ-वे बनेगा और शब्द उस रास्ते से बाहर आएंगे। क्योंकि जब हृदय और मस्तिष्क की सही पेयरिंग होती है तो ये जोड़ीदारी वाणी को विनम्रता, मिठास और गरिमा प्रदान करती है।
इसके साथ सबसे बड़ा काम होता है, अनर्गल शब्द प्रकट नहीं होते। जब आप अनर्गल बोलेते हैं तो आपकी ऊर्जा डायवर्ट होती है। आप अकारण ऊर्जा खर्च करते हैं इसलिए चिड़चिड़े हो जाते हैं। थकान महसूस करते हैं। अपनी गलतियों का दोष भी दूसरों को देते हैं। शब्द बचाइए, ऊर्जा बचेगी। ऊर्जा बचेगी तो जो आप हैं, उस रूप में बच जाएंगे।
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