N. Raghuraman’s column: Don’t just say ‘no’ to your children, explain why. | एन. रघुरामन का कॉलम: बच्चों को सिर्फ ‘ना’ मत कहिए, इसके कारण भी बताइए

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8 मिनट पहले
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एन. रघुरामन, मैनेजमेंट गुरु
हाल ही में मुझे इस अखबार के एक पाठक का पत्र मिला, जिसमें मुझ पर लोगों को गुमराह करने का आरोप लगाया गया। पत्र में आरोप को लेकर विस्तार से तर्क दिए गए, जो लेखक को एआई से मिले थे। और मैं जानता हूं कि कोई भी एआई से बने उस पत्र को पढ़ेगा तो समझ जाएगा कि इसका कंटेंट लेखक की मौजूदा परिस्थितियों के पक्ष में है।
चूंकि मुझे बहुत सारे पत्र मिलते हैं, इसलिए मैं जवाब छोटे और स्पष्ट रखता हूं। अगर मुझे पता होता कि लेखक एआई का इतना अधिक इस्तेमाल करता है तो मैं सिर्फ ‘नहीं’ कहने के कारण भी गिनाता, जो मैंने अंतिम पत्र के बाद गिनाए।
दुनिया के दूरस्थ हिस्सों में भी लोग बड़ी संख्या में थैरेपी के लिए एआई का रुख कर रहे हैं। इसलिए नहीं कि वह इंसानों से ज्यादा स्मार्ट है, बल्कि यह मिजाजपुर्सी अच्छी करता है, ऑफिस के लोगों से भी ज्यादा। ये एआई टूल्स भ्रमों को चुनौती देने, कड़वी सच्चाई बताने और विविध दृष्टिकोण अपनाने की सलाह के बजाय खोखले आश्वासन और अपनी सलाह सत्यापित करने के अंतहीन दावे करते हैं। इसीलिए ये युवाओं में लोकप्रिय हो रहा है और हम पैरेंट्स धीरे-धीरे विलुप्त प्रजाति बनते जा रहे हैं।
कोई इनकार नहीं कर सकता कि एआई के इन अंतहीन ऑटोमेटेड सुझावों के परिणाम कभी-कभी जानलेवा होते हैं। क्या कोई सोफी रॉटेनबर्ग की कहानी भूल सकता है, जिन्होंने फरवरी 2025 में अपनी आत्महत्या की योजना चैटजीपीटी को बताई थी।
दुर्भाग्य से उसने सिर्फ सांत्वना दी- दखल, सुरक्षा या चेतावनी का प्रयास नहीं किया। उनकी मृत्यु के पांच माह बाद हम और उनके पैरेंट्स जान पाए कि उनकी इकलौती संतान महीनों से हैरी नाम के चैटजीपीटी एआई थैरेपिस्ट से बात कर रही थी।
माता-पिता ने कई घंटों तक सोफी के जर्नल्स और वॉइस मेमो खंगाले ताकि पता चले कि हुआ क्या था। अंतत: उनकी सबसे अच्छी दोस्त को ख्याल आया कि एक अंतिम चीज एआई चैट लॉग भी देखना चाहिए। 29 साल की युवती सोफी को कोई बड़ी समस्या नहीं थी। खुलकर जीवन जीती थी, लेकिन इस साल की शुरुआत में मूड और हॉर्मोन्स संबंधी एक मामूली-सी रहस्यमयी बीमारी के कारण उन्होंने अपनी जान ले ली।
उपरोक्त लेखक की तरह, जब पैरेन्ट्स बच्चों को सिर्फ ‘ना’ कह देते हैं तो वे एआई का सहारा लेते हैं। इसलिए नहीं कि यह हमेशा उपलब्ध है, बल्कि यह नॉन-जजमेंटल है। जानकारी देता है और सुनता है। यह भावनात्मक समर्थन या जुड़ाव पाने का तरीका हो सकता है, लेकिन यह अति विश्वास, भावनात्मक निर्भरता और अनुचित गैर-मानवीय कंटेंट का खतरा भी बढ़ाता है।
विशेषज्ञ जोर देते हैं कि ऐसा नहीं होना चाहिए कि एआई इंसानी रिश्तों की जगह ले ले। पैरेंट्स को इसके जिम्मेदारीपूर्ण इस्तेमाल के प्रति बच्चों को समझाना चाहिए और सुनिश्चित करना चाहिए कि उनके पास भरोसेमंद इंसानी रिश्ते हों।
याद करें, फिल्म ‘लक्ष्य’ में ऋतिक रोशन अपने पिता को स्कूल के एक भी कार्यक्रम में शामिल नहीं होने का दोष देते हैं। पैरेंट्स को बच्चे को समझाना पड़ता है कि वे उनके लिए चौबीसों घंटे उपलब्ध नहीं रह सकते। पैरेंट्स क्या कर सकते हैं, कुछ सुझाव यहां पेश हैं।
1. बच्चों से उनके एआई उपयोग, भावनाओं और ऑनलाइन अनुभवों के बारे में बात करें। धीरे-धीरे सीमाएं तय करें और एआई उपयोग के लिए स्पष्ट नियम बनाएं कि कब और क्यों इसका इस्तेमाल ठीक रहेगा। 2. परिजन या मित्रों जैसे असली दुनिया के रिश्तों के महत्व को समझाना ही काफी नहीं, पैरेंट्स को बच्चों के जीवन में शामिल होना पड़ेगा। शायद ही बहुत-से पैरेंट्स जानते हैं कि उनके बच्चे कौन-से एआई टूल इस्तेमाल कर रहे हैं। इसीलिए उन्हें सुरक्षित और जिम्मेदारीपूर्ण उपयोग के लिए गाइड करना कठिन हो जाता है। खतरा यही नहीं कि बच्चे अनजाने में एआई कंपेनियन के साथ निजी डेटा शेयर कर सकते हैं, बल्कि एआई हानिकारक या अनुचित सामग्री बनाकर बच्चों को दिखा भी सकता है।
फंडा यह है कि जब भी आप बच्चों को किसी चीज के लिए मना करें तो कारण बताते हुए इनकार करें।
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