Friday 17/ 10/ 2025 

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VIDEO: दुनिया के सबसे ऊंचे गुरुद्वारे की यात्रा की तैयारियां तेज, बर्फ से ढके पहाड़ों के बीच है यह तीर्थस्थल

हेमकुंड साहिब की यात्रा की तैयारियां हुई तेज

हेमकुंड साहिब की यात्रा की तैयारियां हुई तेज

सिखों के पवित्र तीर्थ श्री हेमकुंड साहिब की यात्रा के लिए तैयारियां तेजी से जारी हैं। हाल ही में सेना का एक मुआइना दल श्री हेमकुंड साहिब के मार्ग का निरीक्षण करने के बाद गोविंद घाट वापस लौट आया है। दल ने अपनी रिपोर्ट में जिक्र किया है कि गोविंदघाट से घांघरिया तक राम ढूंगी में बर्फबारी के कारण लगभग पूरी तरह से ग्लेशियर है, जिसे पीडब्ल्यूडी (पब्लिक वर्क्स डिपार्टमेंट) साफ करेगी। 

घांघरिया से श्री हेमकुंड साहिब तक का 6 किलोमीटर का मार्ग बर्फ से ढका हुआ है, जिसकी ऊंचाई 2 फीट से लेकर 7 फीट तक है। आर्मी के दल ने गुरुद्वारे में उपस्थित गुरुद्वारा प्रबंध कमेटी को पूरा मार्ग का निरीक्षण रिपोर्ट प्रस्तुत किया। इस बारे में श्री हेमकुंड साहिब ट्रस्ट और आर्मी के बीच एक महत्वपूर्ण बैठक भी हुई।

बर्फ हटाने का कार्य होगा शुरू

बैठक में तय किया गया कि आर्मी का 25 सदस्यों का दल 18 अप्रैल को गोविंद घाट पहुंचेंगे। वे वहां एक दिन का विश्राम करेंगे और फिर अगले दिन घांघरिया के लिए प्रस्थान करेंगे। घांघरिया में वे तीन दिन का विश्राम करेंगे और इसके बाद श्री हेमकंड साहिब को प्रस्थान कर बर्फ हटाने का कार्य शुरू करेंगे। आर्मी के जवानों का अनुमान है कि वे 18 से 20 मई तक पूरे मार्ग से बर्फ हटा देंगे, ताकि 25 मई को श्री हेमकुंड साहिब के कपाट आम श्रद्धालुओं के लिए खोले जा सकें।

बता दें कि उत्तराखंड की हिमालयी वादियों में स्थित श्री हेमकुंड साहिब, समुद्र तल से लगभग 15,250 फीट की ऊंचाई पर स्थित है और इसे दुनियां का सबसे ऊंचा गुरुद्वारा माना जाता है। यह स्थान न केवल अपनी भव्यता और दिव्यता के लिए प्रसिद्ध है, बल्कि यह सिखों की आस्था का एक अत्यंत महत्वपूर्ण केंद्र भी है।

गुरु गोविंद सिंह जी का पूर्व जन्म और तपस्या

श्री हेमकुंड साहिब का जिक्र सिखों के 10वें गुरु, श्री गुरु गोविंद सिंह जी की आत्मकथा “बिचित्र नाटक” में मिलता है। इसमें उन्होंने बताया है कि उन्होंने अपने पूर्व जन्म में एक तपस्वी के रूप में हिमालय की ऊंचाइयों में तपस्या की थी। वे कहते हैं कि भगवान की आज्ञा से वे पृथ्वी पर जन्म लेकर अधर्म के विनाश और धर्म की स्थापना के लिए आए। यही तपोभूमि हेमकुंड रही, जहां उन्होंने ध्यानस्थ होकर ईश्वर का साक्षात्कार किया।

प्राकृतिक सौंदर्य और आध्यात्मिक अनुभव

हेमकुंड झील के किनारे बर्फ से ढकी सात चोटियों के मध्य स्थित यह स्थल एक अनुपम आध्यात्मिक और प्राकृतिक सौंदर्य से युक्त है। चारों ओर हिमाच्छादित पर्वत, निर्मल जल की झील और गुरुद्वारे की शांत और पवित्रता से भरपूर वातावरण श्रद्धालुओं को ईश्वर की निकटता का अनुभव कराता है।

आवागमन और यात्रा

हेमकुंड साहिब की यात्रा कठिन जरूर है, पर अत्यंत रोमांचक और पुण्यदायी मानी जाती है। यात्रा का आधार स्थल गोविंदघाट है, जहां से लगभग 19 किलोमीटर की चढ़ाई तय कर श्रद्धालु घांघरिया होते हुए हेमकुंड पहुंचते हैं। यात्रा आमतौर पर मई से अक्टूबर के बीच होती है, जब बर्फ पिघल जाती है और रास्ते खुल जाते हैं।

सेवा और श्रद्धा

हेमकुंड साहिब गुरुद्वारे में सेवक बिना किसी स्वार्थ के दिन-रात यात्रियों की सेवा में लगे रहते हैं। लंगर (भोजन सेवा) की परंपरा यहां भी निरंतर चलती है। हर वर्ष लाखों श्रद्धालु यहां आकर गुरु गोविंद सिंह जी के तपोस्थल पर शीश नवाते हैं और आध्यात्मिक शांति प्राप्त करते हैं।

(रिपोर्ट – इन्दर सिंह बिष्ट)

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