N. Raghuraman’s column – Police and doctors have a great contribution in a happy society | एन. रघुरामन का कॉलम: एक खुशहाल समाज में पुलिस और डॉक्टरों का बहुत योगदान है

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8 घंटे पहले
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एन. रघुरामन, मैनेजमेंट गुरु
वर्ष 1994 में गुजरात में राजकोट के जंक्शन प्लॉट इलाके में स्थित मृदुला के घर में चोरों ने घुसकर नकदी और गहने चुरा लिए। शिकायत के चार साल बाद 1998 में पुलिस ने एक संदिग्ध को गिरफ्तार कर 201.4 ग्राम सोना बरामद किया, जो कथित तौर पर उन्हीं चुराए गए गहनों को पिघलाकर बनाया गया था।
यह अलग बात है कि बाद में आरोपी बेल लेने के बाद फरार हो गया, जबकि बरामद किया गया सोना पुलिस हिरासत में ही रहा। अंतत: तीन दशक बाद मई 2024 में कोर्ट ने आदेश दिया कि सोना मृदुला को लौटाया जाए।
इन तीन दशकों में भारत में 10 ग्राम सोने की कीमत 4598 रुपए से बढ़कर 73 हजार 330 रुपए हो गई। लेकिन खुशी के बजाय परिवार सदमे में था, क्योंकि यह एक नई अग्निपरीक्षा की शुरुआत थी। मृदुला जब कोर्ट का आदेश लेकर प्रद्युम्न नगर थाने गईं तो अधिकारियों ने कहा कि मामला पुराना है और ‘मुद्दामाल’ (कानूनी भाषा में जांच के दौरान जब्त की गई संपत्ति या साक्ष्य) को ढूंढने में समय लगेगा। बार-बार फॉलो-अप के बाद भी जब मृदुला को संतोषजनक जवाब नहीं मिले तो उन्होंने अदालती आदेश के पालन के लिए फिर से कोर्ट में गुहार लगाई।
सुनवाई के दौरान पुलिस ने स्वीकार किया कि सोना गायब हो चुका था। ‘मुद्दामाल’ गायब होने के मामले में एक पुलिसकर्मी के खिलाफ एफआईआर दर्ज की गई, जिसने कथित तौर पर सोना अपने निजी उपयोग में ले लिया था। लेकिन उस व्यक्ति की अब मृत्यु हो चुकी है।
फिर कोर्ट ने अपने आदेश में कहा- ‘जब पुलिस द्वारा जब्त ऐसी मूल्यवान संपत्ति, जिसका विवरण पंचनामे में है, पुलिस स्टेशन से चोरी हो जाती है या गायब हो जाती है या थाने का कोई कर्मचारी इसे बदनीयती से हासिल कर लेता है तो ऐसी संपत्ति की जिम्मेदारी पुलिस इंस्पेक्टर की होती है।’ अतिरिक्त मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट आरआर मिस्त्री ने 19 जुलाई को आदेश दिया कि अधिकारी 60 दिनों के भीतर भुगतान करे, अन्यथा परिवादी इंस्पेक्टर की संपत्ति से यह राशि वसूल सकता है।
परिवादी के वकील निशांत जोशी ने कहा कि कोर्ट ने फैसला सुनाया है कि मृदुला गायब ‘मुद्दामाल’ के वर्तमान बाजार मूल्य के बराबर मुआवजे की हकदार हैं, जो लगभग 20 लाख रुपए है। कोर्ट ने 10 हजार रुपए का जुर्माना भी लगाया है।
यह राशि पुलिस इंस्पेक्टर के वेतन से काटकर जिला विधिक सेवा प्राधिकरण (डीएलएसए) में जमा कराई जाएगी। अब कई लोगों का अनुमान है कि अभी कोर्ट का एक और चक्कर लगाना पड़ सकता है, क्योंकि इंस्पेक्टर अपील कर सकता है कि उसके एक दिवंगत सहकर्मी के कृत्य के लिए उसे कैसे दंडित किया जा सकता है?
इधर, मेरठ के सुदूरवर्ती इलाके में एक और घटना हुई, जिस पर विश्वास करना मुश्किल है। इस रविवार को मेरठ के बाहरी इलाके में एक अज्ञात वाहन ने 30 वर्षीय सुनील कुमार की बाइक को टक्कर मार दी, जिससे उनके पैर में गंभीर चोट लगी।
हालांकि उन्हें लाला लाजपत राय मेमोरियल मेडिकल कॉलेज ले जाया गया, लेकिन उनकी मौत हो गई। कैसे? परिजनों का दावा है कि चूंकि घंटों तक उन्हें देखने कोई डॉक्टर नहीं आया, इसलिए अत्यधिक रक्तस्राव के कारण उनकी मौत हो गई।
अपने दावे के समर्थन में परिवार ने एक वीडियो जारी किया, जो उच्च अधिकारियों तक भी पहुंचा। इसमें एक जूनियर डॉक्टर को एसी के सामने सोते हुए दिखाया गया, जिसकी एक टांग पास रखी टेबल पर फैली थी। जबकि सुनील के परिजन तत्काल चिकित्सा सहायता की गुहार लगा रहे थे। वीडियो का संज्ञान लेते हुए मेडिकल कॉलेज के प्राचार्य डॉ. आरसी गुप्ता ने सोमवार को संबंधित डॉक्टर को निलंबित कर दिया और परिवार के आरोपों की जांच के लिए तीन सदस्यीय समिति गठित कर दी।
फंडा यह है कि पुलिस और चिकित्सा विभाग- खासतौर पर सरकारी अस्पताल- दो ऐसी महत्वपूर्ण सेवाएं हैं, जिनसे आम जनजीवन सीधे तौर पर प्रभावित होता है। समाज को खुशहाल रखने के लिए इन विभागों से हर परिस्थिति में ‘सेवा भाव’ बनाए रखने की अपेक्षा की जाती है।
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