Prof. Chetan Singh Solanki’s column – Climate change is here and now, wake up before it’s too late | प्रो. चेतन सिंह सोलंकी का कॉलम: जलवायु परिवर्तन यहीं और अभी है, देर होने से पहले जागें

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12 घंटे पहले
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प्रो. चेतन सिंह सोलंकी आईआईटी बॉम्बे में प्रोफेसर
वर्ष 2004 में अपनी पीएचडी के बाद मैंने एक युवा प्रोफेसर के रूप में पढ़ाने और इनोवेशन के लिए उत्सुक व्यक्ति के रूप में आईआईटी बॉम्बे में प्रवेश किया था। लेकिन दो दशक से भी ज्यादा समय के बाद मैंने इस्तीफा देने का फैसला किया। इसलिए नहीं कि संस्थान में किसी चीज की कमी थी, बल्कि इसलिए कि हमारे पास समय की कमी है।
पिछले पांच सालों से बिना वेतन की छुट्टी पर मैं ऊर्जा स्वराज यात्रा पर एक सौर ऊर्जा से चलने वाली बस में रहा हूं, देश भर में यात्रा कर रहा हूं और छात्रों, नागरिकों और नेताओं से जलवायु संकट पर बात कर रहा हूं। इस यात्रा ने मुझे बदल दिया!
दिन-ब-दिन मैं उन बच्चों से मिला जिनका भविष्य खतरे में है, बढ़ती गर्मी से जूझ रहे परिवार, किसानों की फसलें बर्बाद हो रही हैं, और शहर बाढ़ और गर्मी से जूझ रहे हैं। मुझे इस बात का एहसास हुआ कि जलवायु संकट हमारी कल्पना से कहीं तेजी से बढ़ रहा है।
वर्ष 2024 मनुष्य जीवन के इतिहास का सबसे गर्म वर्ष रहा। वैज्ञानिकों ने चेतावनी दी है कि 20 से 25 वर्षों के भीतर, हम 2° के ग्लोबल वार्मिंग के लेवल को पार कर सकते हैं। यह एक ऐसी सीमा है, जिसके आगे जलवायु सुधार की दिशा में कोई भी कदम कारगर नहीं होगा।
उस समय तक हम जलवायु परिवर्तन की लक्ष्मण रेखा को पार कर जाएंगे, जिसके बाद फिर से लौटना संभव नहीं होगा। इसके बाद सिर्फ कष्ट ही होगा। और फिर भी, दुनिया ऐसे चल रही है मानो कुछ हो ही नहीं रहा हो। माता-पिता अपने बच्चों के भविष्य को लेकर बेचैन नहीं हैं। प्रोफेसर अपने छात्रों को लेकर बेचैन नहीं हैं। राजनेता अपने नागरिकों के प्रति बेचैन नहीं हैं। जब घर में आग लगी है, तो हम क्यों सो रहे हैं?
तो हम इस संकट का समाधान कैसे करें? दशकों से नीतियां घोषित की जा रही हैं, फिर भी कार्बन उत्सर्जन- जलवायु परिवर्तन का मुख्य कारण- बढ़ता जा रहा है। तकनीकें उन्नत हुई हैं, फिर भी समस्या तेजी से बढ़ रही है। हमारे जलवायु सुधार के प्रयास विफल हो रहे हैं। क्यों? क्योंकि हम एक सरल से सत्य को भूल गए हैं।
वो यह कि हमारी इस धरती पर विज्ञान विकसित हो सकता है, टेक्नोलॉजी विकसित हो सकती है, अर्थव्यवस्थाएं प्रगति कर सकती हैं- लेकिन हम सब मिलकर, धरती को खींच-तान के बड़ा नहीं कर सकते। धरती के सारे संसाधन सीमित हैं।
हम जो कुछ भी उपयोग करते हैं वह पृथ्वी से ही आता है। और चूंकि धरती सीमित है, सारे संसाधन सीमित हैं तो अलमारी में कपड़े, गाड़ियों का साइज और बिल्डिंगों की संख्या लगातार कैसे बढ़ रही है? जैसे वेतन निश्चित होने पर खर्च भी निश्चित होने चाहिए, उसी तरह जब पृथ्वी सीमित है, तो हमारी खपत भी सीमित होनी चाहिए। पर हम रोज धरती की सीमितता को नजरअंदाज करते हैं।
फिर सवाल उठता है : उपभोक्ता कौन है? आप और मैं ही तो हैं, बल्कि इस धरती पर रहने वाले सभी 8 अरब लोग हैं। हमारे दैनिक उपभोग के प्रत्येक कार्य से कार्बन उत्सर्जन होता है। प्रत्येक भोजन, प्रत्येक खरीदारी, प्रत्येक गैजेट ग्रीनहाउस गैसों के रूप में अदृश्य कचरा पीछे छोड़ता है। प्रत्येक व्यक्ति ग्लोबल वार्मिंग में योगदान देता है, और इसलिए प्रत्येक व्यक्ति को समाधान का हिस्सा होना चाहिए। हां कि नहीं? हम सभी को धरती की सीमितता को ध्यान में रखते हुए अपनी जरूरतों को सीमित करना चाहिए या नहीं।
जब मैंने देखा कि हर कोई जलवायु परिवर्तन की समस्या को बढ़ा रहा है, तो मेरे सामने विकल्प स्पष्ट हो गया। क्या मुझे वेतन की सुरक्षा में ही रहना चाहिए? या जोखिम उठाना चाहिए और लोगों तक धरती की सीमितता का संदेश पहुंचाने की यात्रा में समर्पित हो जाना चाहिए? कई लोग मुझसे पूछते हैं कि आपको नौकरी छोड़ने का कठोर निर्णय लेने की प्रेरणा कैसे मिली?
मेरा उत्तर सरल है : जब आपके पीछे एक बाघ होता है, तो आपको दौड़ने के लिए प्रेरणा की आवश्यकता नहीं होती। मैं अपने पीछे बाघ को देख सकता हूं- जो हम सभी के पीछे है। आप उसे देख नहीं पा रहे हैं। आशा करता हूं कि आप भी जल्द से जल्द अपने पीछे खड़ी इस विकराल समस्या को देखें। (ये लेखक के अपने विचार हैं)
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