Thursday 09/ 10/ 2025 

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बिहार चुनाव नतीजों के साथ क्या खत्म हो जाएगी नीतीश-लालू जैसे नेताओं की विरासत? – Bihar elections will decide legacy of Nitish kumar and Lalu prasad yadav opns2

बिहार की राजनीति में प्रदेश के मुख्यमंत्री व जनता दल यूनाइटेड के अध्यक्ष नीतीश कुमार और पूर्व मुख्यमंत्री व आरजेडी के मुखिया लालू प्रसाद यादव दो दिग्गज हैं, जिन्होंने दशकों तक राज्य ही नहीं बल्कि देश की राजनीति को आकार दिया है. लोकनायक जयप्रकाश नारायण के दोनों शिष्यों ने एक साथ, एक विचारधारा की राजनीति शुरू की पर आज की तारीख में दोनों दो ध्रुव बन चुके हैं.

नीतीश कुमार बिहार में सुशासन के प्रतीक बन चुके हैं. एक बार तो उन्होंने अपनी ऐसी छवि बनाई कि उन्हें भविष्य का पीएम कहा जाने लगा था. दूसरी तरफ लालू प्रसाद यादव ने सामाजिक न्याय की लड़ाई से पिछड़ों और वंचितों को इतना सशक्त किया कि आज देश के सभी राजनीति दलों की मुख्य विचारधारा ही यही हो गई है.

फिलहाल अपनी लंबी राजनीतिक पारी और अपनी उपलब्धियों के चलते ये दोनों दिग्गज अब लीजेंड्री लीडर्स का दर्जा पा चुके हैं. सबसे खास बात यह है कि अभी तक बिहार को इनके लेवल का कोई दूसरा नेता भी नहीं मिला. इनके उत्तराधिकार की बात तो बहुत दूर है.
2025 के विधानसभा चुनावों के जब 14 नवंबर को नतीजे आएंगे तो न केवल सत्ता का फैसला होगा  बल्कि यह भी तय होगा कि इनकी विरासत का क्या होगा? 

 नीतीश (74 वर्ष) और लालू (77 वर्ष) की उम्र और दोनों के स्वास्थ्य को देखते हुए यह सवाल और प्रासंगिक हो गया है. 7.4 करोड़ मतदाता, जिसमें 14 लाख नए वोटर जिसमें 51% महिलाएं शामिल हैं इन नेताओं की विरासत तय करेंगे. 

क्या होगा नीतीश कुमार की विरासत का

नीतीश कुमार के समर्थकों का कहना है कि 2005 में उन्होंने बिहार को लालू-राबड़ी के जंगलराज से निकालकर विकास की राह पर लाया. उनके नेतृत्व में बिहार में सड़कों का जाल (2.5 लाख किमी) बिछ गया, 24×7 बिजली, स्कूलों में लड़कियों की शिक्षा (साइकिल योजना), शराबबंदी, और महिला सशक्तिकरण (50% पंचायत आरक्षण) आदि मील का पत्थर साबित हुआ.  नीतीश ने कुर्मी-कोइरी (8%) और अति पिछड़ा वर्ग (EBC, 36%) का मजबूत गठजोड़ बनाया, जो जेडीयू का आधार है.  2023 की जाति जनगणना और 75% आरक्षण नीति ने सामाजिक न्याय को नया आयाम दिया. लेकिन बार-बार गठबंधन बदलने से उन्हें पलटीबाज की छवि दी. उनकी बीमारी को भी विपक्ष बार बार मुद्दा बना रहा है. जाहिर है कि जेडीयू के लिए यह मुश्किल घड़ी है.

नीतीश ने अपने बेटे निशांत कुमार (47 वर्ष, इंजीनियर) को अभी तक राजनीति से दूर रखा है. अगर निशांत कुमार राजनीति में आते हैं तो कुछ दिनों के लिए जरूर नीतीश कुमार के पुत्र होने के नाम पर उन्हें सपोर्ट मिले. जिस तरह तेजस्वी को मुस्लिम और यादव का सपोर्ट लालू यादव के नाम पर आज तक मिल रहा है. पर निशांत के सक्रिय नहीं होने पर गैर यादव ओबीसी और ईबीसी जातियों की नेचुरल पसंद बीजेपी बन जाएगी. निशांत यदि सक्रिय हुए, तो कुर्मी-कोइरी आधार बरकरार रह सकता है; अन्यथा, जेडीयू बीजेपी की छाया में सिमट जाएगी.

नीतीश ने स्पष्ट किया कि वह 2025 में खुद सीएम फेस हैं, लेकिन उनकी उम्र और स्वास्थ्य आदि उनके उत्तराधिकार की चर्चा को जरूरी बनाते हैं.  जेडीयू में अन्य चेहरे भी हैं पर उनकी व्यापक स्वीकार्यता सीमित है.  यदि एनडीए 130-160 सीटें जीतता है, जैसा कि कई पोल्स बता रहे हैं तो नीतीश की सुशासन विरासत कुछ समय तक बरकरार रहेगी.  

लेकिन यदि जेडीयू 40 से नीचे सीटें जीतती है, तो बीजेपी हावी हो सकती है. बीजेपी, जो ऊपरी जातियों (15%) और पासवान (5%) पर निर्भर है, नीतीश की विरासत को हिंदुत्व और विकास के साथ जोड़ सकती है.  जाहिर है कि बीजेपी के नेता जेडीयू की जगह ले लेंगे. नीतीश का करिश्मा और ईबीसी गठजोड़ उनके बिना टिकना मुश्किल है, क्योंकि जेडीयू में दूसरी पंक्ति का नेतृत्व कमजोर है. नीतीश ने अपने ठीक पीछे किसी नेतृत्व को पनपने ही नहीं दिया. 

लालू प्रसाद यादव की विरासत

लालू प्रसाद यादव ने 1990 के दशक में मंडल आंदोलन के जरिए बिहार में सामाजिक न्याय की नींव रखी, जिसने पिछड़ों, दलितों और मुस्लिमों को सशक्त किया.  उनका मुस्लिम-यादव (MY, 31%) गठजोड़ आरजेडी का आधार है.  लालू ने पंचायतों में ओबीसी आरक्षण और सामाजिक सशक्तिकरण को बढ़ावा दिया. लेकिन चारा घोटाला, जंगलराज और खराब प्रशासन ने उनकी छवि को नुकसान पहुंचाया.  जेल और स्वास्थ्य समस्याओं (किडनी प्रत्यारोपण) के बावजूद, लालू की रणनीति ने 2020 में आरजेडी को 75 सीटें और 23% वोट शेयर दिलाया. उनकी विरासत सामाजिक न्याय, ओबीसी-दलित-मुस्लिम सशक्तिकरण और करिश्माई नेतृत्व है.

लालू की विरासत का स्पष्ट उत्तराधिकारी तेजस्वी यादव (35 वर्ष) हैं. जनवरी 2025 में राष्ट्रीय कार्यकारिणी ने उन्हें लालू के बराबर शक्तियां दीं.  तेजस्वी ने ‘एमवाई बाप’ फॉर्मूला अपनाकर यादव (14%), मुस्लिम (17%) और कुछ गैर-यादव ओबीसी-दलितों को जोड़ा है.  उनके 10 लाख नौकरियों का वादा और नीतीश के खिलाफ युवा अपील 41% लोगों के लिए सीएम पद की पसंद बनाया है. जिसके चलते 2020 में आरजेडी को सबसे बड़ी पार्टी बन सकी.  

लेकिन जंगलराज की छवि, गठबंधन में कांग्रेस-वाम के साथ तालमेल और परिवारिक कलह (तेज प्रताप का मई 2025 में निष्कासन) उनकी चुनौतियां हैं.  तेजस्वी की ताकत उनकी युवा अपील और लालू की विरासत को राष्ट्रीय स्तर पर ले जाने की महत्वाकांक्षा है, लेकिन वह लालू के करिश्मे को पूरी तरह दोहरा नहीं पाए हैं. 

तेजस्वी इस बार हारे तो लालू की विरासत खत्म 

तेजस्वी की उम्र अभी बहुत कम है. उनके पास राजनीति के लिए बहुत वक्त है.पर बिहार की राजनीति दिन प्रतिदिन और कठिन हो रही है. अगर इस बार तेजस्वी मुख्यमंत्री नहीं बन सके तो अगली बार जनसुराज और बड़ी पार्टी के रूप में चुनाव में मौजूद होगी. दूसरी तरफ कांग्रेस लगातार अपने परंपरागत वोटर्स को साथ लेने के लिए तैयार है. मतलब साफ है कि तेजस्वी के लिए अभी नहीं तो कभी नहीं की स्थिति है.नेतृत्व कमजोर होने पर पहले परिवार में विघटन होता है फिर पार्टी में. तेज प्रताप यादव और रोहिणी आचार्य ने तेजस्वी के खिलाफ दम भर दिया है.मीसा भारती भी शायद नाखुश लोगों की श्रेणी में ही हैं. 

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