Pt. Vijayshankar Mehta’s column – At least don’t listen to the story or sermon on mobile | पं. विजयशंकर मेहता का कॉलम: कम से कम कथा या प्रवचन को मोबाइल पर ना सुनिए

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4 घंटे पहले
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पं. विजयशंकर मेहता
चांदनी घर जलाने आई है। इसका सीधा मतलब है, मोबाइल की रोशनी अब हमारे जीवन में नुकसान के दूसरे चरण में चल रही है। स्ट्रीमिंग के दौर में सबकुछ लोग हथेली पर कर रहे हैं। हमारा विषय है कम से कम कथा, प्रवचन मोबाइल या अन्य डिजिटल माध्यम पर ना सुनिए। इसके लिए लाइव ही अच्छा है।
अब तो न्यूरोसाइंटिस्ट भी मानते हैं कि आंखें दृश्यों को मस्तिष्क में ले जाती हैं और अमिग्डाला- यानी मस्तिष्क का वो भाग, जहां से भावना, संवेदना जागती है- उसको प्रभावित करती है। ये काम आंख करती है। लाइव कथा सुनने से भावना, संवेदना, धैर्य, समझ और चरित्र सब आपकी पकड़ में आ जाते हैं।
यदि आप यही सबकुछ मोबाइल या टीवी के परदे से सुन रहे हैं, तो उसका असर लाइव के मुकाबले कमजोर होगा। आंखें ठोकर पहले खाती हैं, उसके बाद पैर लड़खड़ाते हैं। तो आंख बड़ी महत्वपूर्ण है। कोशिश करिए कि महीने में एक बार कुछ ना कुछ लाइव जाकर सुनिए। रूबरू होकर ज्ञान मिलना अलग प्रभाव देगा।
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