Column by Lt Gen Syed Ata Hasnain – Being at par with the US is Russia’s strategic victory | लेफ्टिनेंट जनरल सैयद अता हसनैन का कॉलम: अमेरिका के समकक्ष होना ही रूस की रणनीतिक जीत

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4 घंटे पहले
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लेफ्टिनेंट जनरल सैयद अता हसनैन कश्मीर कोर के पूर्व कमांडर
एंकरेज में ट्रम्प और पुतिन के बीच हुई समिट में यूक्रेन में युद्धविराम को लेकर अंतिम सहमति नहीं बनी। ट्रम्प, पुतिन और जेलेंस्की के लिए युद्ध अब भी जारी है, लेकिन यूरोप से लेकर भारत तक दुनिया को युद्ध के खत्म होने के इंतजार की कीमत, इस मामले में अपने लचीलेपन की सीमा और शांत कूटनीति की जरूरत का आकलन करना होगा। ट्रम्प-पुतिन वार्ता को लेकर वादा किया गया था कि उसमें यूक्रेन पर कोई फैसला लिया जाएगा। लेकिन नतीजे सीमित ही रहे।
खबर यह है कि चीजें और ज्यादा नहीं बिगड़ीं। अगर कोई समझौता नहीं हुआ तो कोई कड़वाहट भी नहीं आई। यह अपने आप में एक सकारात्मक बात है। ट्रम्प ने कहा कि कई मुद्दों पर सहमति बनी है, सिवाय एक या दो के। आप मान सकते हैं कि ये अनसुलझे मुद्दे डोनबास पर रूस के द्वारा कब्जा बनाए रखने और क्रीमिया के हालिया स्टेटस के इर्द-गिर्द घूमते हैं। युद्धविराम की घोषणा एक अंतरिम उपाय के रूप में की जा सकती थी, जबकि व्यापक समझौते के विवरण बाद में तैयार किए जाते रहते।
लेकिन ऐसा न होना यह दर्शाता है कि असहमति काफी गंभीर थी। शायद पुतिन ने खुद इस बात पर जोर दिया हो कि युद्ध तब तक जारी रहे, जब तक उनकी मुख्य मांगें पूरी नहीं हो जातीं।एंकरेज में ट्रम्प या पुतिन की बॉडी लैंग्वेज नकारात्मक नहीं थी। अगर अंततः कोई समझौता हो जाता है, तो ट्रम्प संघर्ष के एक और क्षेत्र यानी गाजा पर ध्यान केंद्रित कर सकते हैं। यूक्रेन में युद्धविराम होने से अंतरराष्ट्रीय मान्यता के लिए उनकी साख मजबूत होगी, और शायद नोबेल पुरस्कार के लिए दावा भी।
जेलेंस्की को आगे की बातचीत के लिए व्हाइट हाउस बुलाने का उनका प्रयास यह दर्शाता है कि एंकरेज कूटनीति का अंत नहीं, बल्कि एक विराम मात्र था। हालांकि, फिलहाल तो लड़ाई जारी है। यूक्रेनी सेनाएं रक्षात्मक मोर्चों पर डटी हुई हैं और यह स्थिति 2024 के अंत से शायद ही बदली है। जबकि रूसी सेनाएं अपनी अधिक ताकत और बेहतर हथियारों के साथ आगे बढ़ रही हैं। युद्ध लंबे समय से एक गतिरोध की स्थिति में है। पुतिन ने रणनीतिक लचीलापन बनाए रखा, अपनी सेना को आश्वस्त किया और घरेलू प्रतिष्ठा को चमकाया।
एंकरेज में उनकी उपस्थिति और एक अमेरिकी राष्ट्रपति से बराबरी की मुलाकात ही अपने आप में एक प्रतीकात्मक जीत थी। इसने मास्को के इस कथन को पुष्ट भी किया कि प्रतिबंधों ने रूस की वैश्विक प्रासंगिकता को कम नहीं किया है। लेकिन यूक्रेन को इस सबसे कोई फायदा न हुआ। उसे न तो युद्धविराम मिला और न ही रोजाना की बमबारी से कोई राहत। जेलेंस्की की अनुपस्थिति ने कीव में बेचैनी बढ़ा दी है। यह बताता है कि यूक्रेन की स्थिति अभी भी नाजुक बनी हुई है। पुतिन की रणनीति में बदलाव की संभावना नहीं है।
इधर यूरोप गहरी दुविधाओं का सामना कर रहा है। उसके नेता एंकरेज की इस नाटकीय-वार्ता को बेचैनी से देख रहे थे। उनके लिए मूल मुद्दा हमेशा से यूरोप के लिए रूसी खतरा रहा है। अब यूरोप को खुद से पूछना होगा कि क्या वह यूक्रेन को नाटो से बाहर स्वीकार कर सकता है और इसके बावजूद उसे एक अनौपचारिक सुरक्षा साझेदारी का लाभ दे सकता है? क्या वह रचनात्मक- फिर चाहे वो उसके लिए कितने ही असुविधाजनक क्यों न हों- समझौतों पर विचार कर सकता है?
जैसे कि क्रीमिया में साझा या संयुक्त राष्ट्र के पर्यवेक्षण में कोई बंदोबस्त, आंशिक रूप से असैन्यीकृत क्षेत्र या मिश्रित सुरक्षा गारंटी? ये आसान सवाल नहीं हैं, लेकिन स्पष्ट दृष्टिकोणों से इस युद्ध का अंत नहीं होने वाला। मिले-जुले समाधान ही कारगर होंगे। शांति अभी दूर है। रूस अपने कब्जे वाले क्षेत्र को अपने पास रखने पर अड़ा है, जबकि यूक्रेन अपनी सम्प्रभुता को होने वाली किसी भी क्षति को अपने अस्तित्व पर सवालिया निशान मानता है।
नाटो और यूरोपीय संघ की आकांक्षाएं यूक्रेन का लक्ष्य बनी हुई हैं, लेकिन रूस इसे कभी स्वीकार नहीं करेगा। ट्रम्प, पुतिन और जेलेंस्की के बीच मास्को में एक त्रिपक्षीय शिखर सम्मेलन अभी तो असम्भव लगता है जब तक कि कीव ज्यादा लचीलापन न दिखाए और यूरोप सीधे तौर पर इसमें शामिल न हो। यूरोपीय नेता मूकदर्शक बने नहीं रह सकते; उनकी सुरक्षा दांव पर है। जेलेंस्की की बयानबाजी से ज्यादा उनके झुकने की क्षमता अंतिम नतीजों को प्रभावित करेगी।
- पुतिन ने अपनी सेना को आश्वस्त किया और घरेलू प्रतिष्ठा को चमकाया। ट्रम्प से बराबरी की मुलाकात ही अपने आप में प्रतीकात्मक जीत थी। इसने मास्को के इस कथन को पुष्ट किया कि रूस की वैश्विक प्रासंगिकता कम नहीं हुई है।
(ये लेखक के अपने विचार हैं)
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