Pt. Vijayshankar Mehta’s column – If you go to do something good, end the feeling of being superior | पं. विजयशंकर मेहता का कॉलम: कुछ अच्छा करने जाएं तो बड़े होने का भाव समाप्त करें

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6 घंटे पहले
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पं. विजय शंकर मेहता
पद, प्रतिष्ठा और योग्यता मनुष्य को भेदभाव करने के लिए मजबूर कर देती है। जब आप बड़े लोगों की गिनती में आ जाते हैं तो आपको दूसरे छोटे ही लगने लगते हैं। शंकर जी, पार्वती जी को बता रहे थे कि मैं काकभुशुंडि के यहां कथा सुनने गया- तब कछु काल मराल तनु धरि तहं कीन्ह निवास, सादर सुनि रघुपति गुन पुनि आयउं कैलास।
तब मैंने हंस का शरीर धारण कर कुछ समय वहां निवास किया और रघुनाथ जी के गुणों को आदर सहित सुनकर फिर कैलास को लौट आया। तीन बातें हैं- पहला, हंस का शरीर यानी श्रेष्ठ। आदर सहित सुना, यानी वक्ता का सम्मान किया। और कैलास लौटे, यानी अपने धरातल पर आ गए।
शंकर जी की कक्षा बहुत ऊंची है, लेकिन वे बता रहे हैं कि समाज में कथा सुनने, यानी कोई अच्छा काम करने जाएं तो अपने बड़े होने का भाव समाप्त करें। समान धरातल पर आकर सब लोगों से व्यवहार करें।
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