Wednesday 08/ 10/ 2025 

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Prof. Chetan Singh’s column- Trump has inadvertently given an opportunity to improve climate | प्रो. चेतन सिंह का कॉलम: ट्रम्प ने अनजाने ही जलवायु सुधार का मौका दे दिया है

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8 घंटे पहले

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प्रो. चेतन सिंह सोलंकी आईआईटी बॉम्बे में प्रोफेसर - Dainik Bhaskar

प्रो. चेतन सिंह सोलंकी आईआईटी बॉम्बे में प्रोफेसर

मिस्टर ट्रम्प, आपके द्वारा छेड़े गए टैरिफ युद्ध के लिए पूरी दुनिया चिंतित है, नाराज है, और आपका मजाक भी उड़ा रही है- आपके अपने अमेरिकी साथी भी- लेकिन मैं यहां चुपचाप मुस्करा रहा हूं, और कह रहा हूं, धन्यवाद, मिस्टर ट्रम्प। क्योंकि आपके टैरिफ की अराजकता में, मुझे एक अजीब-सी उम्मीद की किरण दिखाई दे रही है- एक ऐसा लाभ, जिसका आपने तो कभी इरादा नहीं किया होगा, लेकिन जिसकी हमारी पृथ्वी को सख्त जरूरत है।

मैं जलवायु परिवर्तन की तात्कालिकता से ग्रस्त हूं, और मेरी नजर में हर चीज जलवायु सुधार का एक अवसर बन जाती है। मिस्टर ट्रम्प, अनजाने में ही आपने कुछ ऐसा किया है, जिसकी जलवायु सुधारक समूह मन ही मन सराहना कर सकता है। पेरिस समझौते से आपके प्रसिद्ध बहिष्कार के लिए नहीं, न ही जलवायु परिवर्तन को एक छलावा बताकर खारिज करने के लिए- बल्कि किसी और चीज के लिए : आपके टैरिफ, मिस्टर ट्रम्प!

जी हां, आपके अमेरिका फर्स्ट टैरिफ- जिनका उद्देश्य अमेरिकी उद्योग की रक्षा करना और वैश्विक प्रतिद्वंद्वियों को दंडित करना है। लेकिन वो अनजाने में ही दुनिया को उस ओर धकेल रहे हैं, जिसकी मेरे जैसे जलवायु उत्साही लंबे समय से वकालत करते आ रहे हैं : स्थानीय उत्पादन और उपभोग। राजनयिक, नीति-निर्माता और वैश्विक संधियां जो करने में विफल रहीं, उसे आपके टैरिफ ने गति दे दी है।

जरा सोचिए : भारत में, सरकार ने वोकल फॉर लोकल की और फिर से जोर दिया; कनाडा में, आपकी टैरिफ धमकियों के जवाब में बाय कैनेडियन लहर के बढ़ने की सुर्खियां बनीं; और यूरोपीय संघ में, ब्रसेल्स अब स्कूलों पर मेड इन यूरोप फलों, सब्जियों और डेयरी उत्पादों को प्राथमिकता देने का दबाव बना रहा है। लेकिन नीतियां फुसफुसाती हैं, जबकि आपके टैरिफ चीखते हैं- और अचानक स्थानीयता वैकल्पिक नहीं; जरूरी हो जाती है।

खैर, विडम्बना शायद ही कभी इतनी पर्यावरण-अनुकूल रही हो! दशकों से, वैश्विक अर्थव्यवस्था महासागरों के पार माल की ढुलाई पर फलती-फूलती रही है, इकॉनोमी ऑफ स्केल की झूठी मूर्ति की पूजा करते हुए, जबकि इसकी अदृश्य कीमत यानी कार्बन को सुविधाजनक रूप से अनदेखा कर दिया जाता है।

एशिया के किसी दुकान में मिलने वाली 1 डॉलर की टी-शर्ट सस्ती नहीं थी- उसके पीछे कार्बन उत्सर्जन का एक बड़ा प्राइस-टैग था- उसे दम तोड़ते मालवाहक जहाजों, डीजल ट्रकों, ऊर्जा-खपत करने वाले गोदामों और प्लास्टिक पैकेजिंग के पहाड़ों द्वारा सब्सिडी दी गई थी। राष्ट्रों ने पेरिस समझौतों पर हस्ताक्षर किए, सीओपी का आयोजन किया, बुलंद घोषणाएं कीं; फिर भी खपत आसमान छू गई, और उत्सर्जन सीमाएं लांघ गया।

लेकिन फिर कहानी में मोड़ आया, और आपने टैरिफ लगा दिया, अचानक गणित पलट जाता है। सस्ता आयात अब सस्ता नहीं रहा। स्थानीय कारखाना, जिसे कभी गैर-आर्थिक माना जाता था, अब प्रतिस्पर्धी दिखता है। और रातोंरात, स्थानीय वस्तु खरीदना एक प्रतीकात्मक देशभक्तिपूर्ण इशारे से आर्थिक रूप से तर्कसंगत विकल्प में बदल जाता है।

विशाल मालवाहक जहाज- जो पूरे देशों जितना प्रदूषण फैलाते हैं- अचानक अपना लाभ खो देते हैं। दूर-दराज के कारखानों से आने वाली सस्ती फास्ट-फैशन जींस टैरिफ बढ़ने के बाद अब उतनी सस्ती नहीं लगतीं। इस बीच, आस-पास उगाए गए फल या स्थानीय रूप से उत्पादित दूध ज्यादा उपयोगी लगने लगते हैं।

हम सबको पृथ्वी की क्षमता के भीतर रहने की जरूरत है, यह समझते हुए कि इस सीमित ग्रह पर, हम केवल सीमित उपभोग ही कर सकते हैं। मिस्टर ट्रम्प, आपने अनजाने में ही दुनिया को यह सिखाया है कि स्थानीय जीवन ज्यादा पर्यावरण-अनुकूल, स्वच्छ और स्मार्ट है!

दशकों के शिखर सम्मेलन, भाषण और संधियां कूटनीतिक शिष्टाचार में डूब गई थीं। लेकिन ट्रम्प की जिद ने कारखानों, व्यवसायों और नागरिकों को वैश्वीकृत अति-उपभोग के तर्क पर पुनर्विचार करने के लिए मजबूर कर दिया। (ये लेखक के अपने विचार हैं)

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