Pt. Vijayshankar Mehta’s column – People should not start buying values with money | पं. विजयशंकर मेहता का कॉलम: कहीं संस्कारों को भी पैसे से न खरीदने लग जाएं लोग

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3 घंटे पहले
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पं. विजयशंकर मेहता
जहां कहीं भी रुपया-पैसा आता है, अच्छे से अच्छे इंसान की भी नीयत ऊपर-नीचे होने लगती है। सब एक-दूसरे को संदेह की दृष्टि से देखते हैं। अमीर-गरीब की खाई बढ़ती जा रही है। अगर आप स्वयं से यह सवाल पूछें कि बाजार हावी है या संस्कार, तो बड़ा सरल जवाब है- बाजार ने संस्कारों पर काबू पा लिया है।
अब तो संस्कारों का रास्ता भी बाजार से होकर ही जाता है। मशीन और कस्टमर- इन दोनों के माध्यम से अमीर, और अमीर होते गए। सामान्य आदमी तो शंका-कुशंका में ही डूबा रहता है। आप देख सकते हैं- घर से सामान का वजन करिए, एयरलाइंस के काउंटर पर वो वजन बदल जाता है।
पेट्रोल पम्प की रीडिंग गड़बड़ है। व्यापारी के तराजू का तो कहना ही क्या। बिजली का बिल भटका-भटका-सा है। सब एक-दूसरे की मजबूरी का फायदा उठा रहे हैं। अगर इसी तरह से पैसे कमाने की इच्छा बलवती होती गई तो लोग संस्कारों को भी पैसे से खरीदने लगेंगे। कुसंस्कार तो धन से अर्जित कर ही रहे हैं लोग। इसलिए मशीन को हम पर हावी ना होने दें और हमारा ग्राहक के रूप में दुरुपयोग न होने दें।
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