मंदारिन भाषा, चाइनीज समाजवाद और एथनिक यूनिटी… तिब्बत बदलने का मॉडल लेकर ल्हासा पहुंचे चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग – xi jinping in Tibet china president Lhasa message for India dalai lama ntcppl

तिब्बती बौद्ध धर्म के सबसे पवित्र स्थल ल्हासा पहुंचकर चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने भू-राजनीतिक संदेश दिया है. इस यात्रा में उन्होंने तिब्बत की क्षेत्रीय, सांस्कृतिक और धार्मिक से इतर चीन के एजेंडे को इस पवित्र शहर पर थोपने का ऐलान किया. राष्ट्रपति जिनपिंग की यात्रा तिब्बती संस्कृति और बौद्ध धर्म को चीनी कम्युनिस्ट पार्टी (CCP) के नियंत्रण में एकीकृत करने की रणनीति का हिस्सा है.
चीन के अखबार साउथ चाइना मार्निंग पोस्ट के अनुसार शी जिनपिंग ने तिब्बत की राजधानी ल्हासा में कम्युनिस्ट पार्टी के कैडरों को कहा कि वे भाषा के रूप में मंदारिन के प्रयोग को बढ़ावा दें. हालांकि इस क्षेत्र की भाषा तिब्बती है. यह तिब्बती लिपि में लिखी जाती है और ल्हासा में बोली जाने वाली बोली को स्टैंडर्ड तिब्बतियन माना जाता है. लेकिन जिनपिंग ने यहां चीनी मेनलैंड की मुख्य भाषा मंदारिन के प्रयोग पर जोर दिया है.
उन्होंने कम्युनिस्ट पार्टी के लोकल कैडरों और अधिकारियों को कहा कि वे तिब्बती बौद्ध धर्म को चाइनीज मॉडल के समाजवाद के साथ जोड़ने के लिए काम करें. उन्होंने तिब्बत को आधुनिक समाजवादी तिब्बत बनाने पर जोर दिया. इसके अलावा उन्होंने स्थानीय कार्यकर्ताओं को एथनिक यूनिटी में सुधार को प्रदर्शित करने के लिए विशेष जिले भी स्थापित करने का आदेश दिया.
तिब्बत पर चीनी सरकार की ग्रिप को मजबूत करने का मैसेज देते हुए शी जिनपिंग ने कहा कि तिब्बत पर शासन करने और उसका विकास करने के लिए सबसे पहले राजनीतिक और सामाजिक स्थिरता सुनिश्चित करनी होगी, साथ ही जातीय एकता और धार्मिक लोगों का समाज के साथ सामंजस्य सुनिश्चित करना होगा.
क्यों तिब्बत पहुंचे हैं शी जिनपिंग
चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग अपने 12 साल के कार्यकाल में तिब्बत दूसरी बार पहुंचे हैं. उनका ये दौरा तब हुआ है जब चीन ने दलाई लामा के उत्तराधिकार प्रक्रिया को मानने से ही इनकार कर दिया है. बता दें कि चीन ने 1950 में तिब्बत पर कब्जा किया था. इसके बाद 1965 में उसने इस एरिया को तिब्बत ऑटोनॉमस रिजन में बदल दिया और इस पर शासन करने लगा.
जब चीन ने 1950 में तिब्बत कर कब्जा कर लिया तो वहां के बौद्धों पर कम्युनिस्ट सरकार की सख्ती बढ़ने लगी. ऐसे माहौल में ही तिब्बती आध्यात्मिक नेता दलाई लामा तिब्बतियों के एक बड़े समूह के साथ 1959 में भारत चले आए थे और तब से वे हिमाचल प्रदेश के धर्मशाला में रह रहे हैं.
इस साल चीन तिब्बत ऑटोनॉमस रिजन की स्थापना के 60 साल मना रहा है. इसी मौके पर शी जिनपिंग तिब्बत पहुंचे हैं. इससे पहले शी जिनपिंग 2021 में तिब्बत पहुंचे थे.
गौरतलब है कि हाल के वर्षों में चीन ने तिब्बत पर अपनी पकड़ मजबूत करनी चाही है.
तिब्बत स्वायत्त रीजन के निर्माण को 60 साल हो जाने के बावजूद अब तक चीन के दो राष्ट्रपति ही यहां आए हैं. इसमें भी शी जिनपिंग खुद यहां दो बार पहुंचे हैं. इससे पहले 1990 में तत्कालीन राष्ट्रपति जियांग जेमिन ने यहां का दौरा किया था.
तिब्बत की भौगोलिक बनावट की वजह से इसे एशिया की छत कहा जाता है. तिब्बत को चीन में जियांग (Xizang) कहा जाता है. यह प्रदेश चीन की सत्ता और उसके राजनीतिक एजेंडे का केंद्र रहा है. 1950 के दशक में चीनी सेना के कब्जे के बाद से ही बीजिंग इसे अपना अभिन्न अंग बताता है, लेकिन लाखों तिब्बती चीन के इस दावे को इनकार करते हैं और ये स्वायत्त क्षेत्र बताते हैं.वे इसे चीनी दमन और सांस्कृतिक हस्तक्षेप बताते हैं.
शी जिनपिंग ने तिब्बत का यह दौरा तब किया है जबकि चीन ने अपने क्षेत्र में ब्रह्मपुत्र नदी पर मेगा डैम बनाने का ऐलान किया है. इसके अलावा दलाई लामा के उत्तराधिकारी को लेकर भी तनाव पैदा हुआ है. चीन ने कहा है कि दलाई लामा के किसी भी उत्तराधिकारी को पहले चीन की सरकार से ग्रीन सिग्नल लेना होगा. जबकि दलाई लामा ने इसे सैकड़ों साल पुरानी बौद्ध परंपरा में हस्तक्षेप करार दिया है.
पंचेन लामा से मुलाकात
चीन के सरकारी टेलीविजन सीसीटीवी के अनुसार शी जिनपिंग बुधवार दोपहर करीब ल्हासा पहुंचे. यहां उनके साथ चीन के शीर्ष राजनीतिक सलाहकार और अधिकारी वांग हुनिंग, राष्ट्रपति के चीफ ऑफ स्टाफ कै क्यू, यूनाइटेड फ्रंट वर्क डिपार्टमेंट के प्रमुख ली गंजी, उप-प्रधानमंत्री हे लिफेंग और लोक सुरक्षा मंत्री वांग शियाओहोंग जैसे उच्च-स्तरीय लोग मौजूद थे.
शी ने क्षेत्र के विभिन्न अधिकारियों, सुरक्षा अधिकारियों और धार्मिक हस्तियों से मुलाकात की, इनमें तिब्बती बौद्ध धर्म के दूसरे सबसे बड़े धर्मगुरु पंचेन लामा भी शामिल थे.
ल्हासा में शी ने जैसे ही रेड कार्पेट पर कदम रखा, जौ के कटोरे लिए हुए निवासियों ने उनका स्वागत किया.
उन्होंने जौ के कुछ दाने उठाए और उन्हें हवा में उछाला, जो तिब्बतियों का पारंपरिक आशीर्वाद था. इसके बाद उन्होंने भीड़ की ओर हाथ हिलाया और लाल कालीन पर चल पड़े, उनके पीछे वांग और तिब्बत पार्टी प्रमुख वांग जुनझेंग भी थे.
तिब्बत के संगठनों ने किया विरोध
तिब्बत की स्वायत्तता की मांग कर रहे संगठनों ने जिनपिंग के दौरे का विरोध किया है. तिब्बत इन वाशिंगटन नाम की संस्था के प्रतिनिधि नामग्याल चोडेप ने कहा, “चीन के नेता शी जिनपिंग द्वारा पिछले पांच वर्षों में दो बार तिब्बत का दौरा करने को इस बात का संकेत माना जा सकता है कि तिब्बत के अंदर सब कुछ उतना अच्छा नहीं है, जैसा बीजिंग दिखा रहा है.”
इस संगठन ने कहा कि, “छह दशकों से ज्यादा समय से सीसीपी के शासन के बावजूद तिब्बत मूल रूप से एक पुलिस राज्य है और संभवतः पूरे चीन में सबसे ज़्यादा निगरानी वाला क्षेत्र है. तिब्बत स्वायत्त क्षेत्र की स्थापना की 60वीं वर्षगांठ मनाने के लिए शी जिनपिंग की ल्हासा यात्रा खोखली लगती है क्योंकि बीजिंग के पास तिब्बत में अपनी मौजूदगी को लेकर ऐतिहासिक और लोकप्रिय दोनों ही तरह की वैधता का अभाव है.”
दरअसल शी जिनपिंग की तिब्बत यात्रा चीन की आंतरिक स्थिरता दिखाने की कोशिश है. लेकिन इसका अहम पहलू तिब्बत की स्वायत्तता को लेकर कई संगठनों का विरोध जारी है.
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