N. Raghuraman’s column – Smart teens can also help other teens in trouble | एन. रघुरामन का कॉलम: समझदार किशोर भी मुसीबत में फंसे अन्य किशोरों की सहायता कर सकते हैं

- Hindi News
- Opinion
- N. Raghuraman’s Column Smart Teens Can Also Help Other Teens In Trouble
11 घंटे पहले
- कॉपी लिंक

एन. रघुरामन, मैनेजमेंट गुरु
लॉस एंजेलेस के एक पॉश इलाके में स्थित एक कार्यालय में हर शाम हाई स्कूल के 8 से 12 छात्र दिन भर की कक्षाओं, होमवर्क, खेल अभ्यास और पार्ट-टाइम नौकरियों के बाद आते हैं। वे पहले स्नैक रूम में जाते हैं और कुछ खाते हैं। फिर अपने क्यूबिकल्स में बैठते हैं, जहां हर क्यूबिकल में दो बड़े कंप्यूटर स्क्रीन एक-दूसरे से जुड़े हैं।
वे हेडसेट उठाते हैं और अगले 3 से 5 घंटे सहायता मांगने वाले किशोरों से बातचीत और टाइपिंग में बिताते हैं। इमरजेंसी हॉटलाइन के लिए काम करने वाले वयस्कों के साथ कार्यालय साझा करने वाले इन किशोरों के क्यूबिकल्स को आसानी से पहचाना जा सकता है, क्योंकि उनकी कुर्सियों के पास स्टफ्ड टॉय्ज और हाथ से पेंट किए कैनवास देखे जा सकते हैं। 70 से अधिक ऐसे छात्र 65 घंटे के प्रशिक्षण के बाद संगठन में हर माह 5-5 घंटे की शिफ्टों में सेवाएं देते हैं।
अमेरिका में “टीन लाइन’ मानसिक स्वास्थ्य सहायता की जरूरत और उपलब्ध संसाधनों के बीच बढ़ते अंतर को भरने में मदद कर रहा है। पूरे अमेरिका और कनाडा में युवाओं के लिए फोन और टेक्स्ट लाइनें उपलब्ध हैं। संगठन के ईमेल पते का उपयोग दुनिया भर के किशोर कर सकते हैं।
इन देशों के लिए अलग-अलग नंबर हैं और गारंटीशुदा तौर पर हर कॉल का जवाब उनके हमउम्र साथी देते हैं, जो संभवत: वयस्कों की तुलना में यह बेहतर समझते हैं कि “आज के समय में किशोर होना कैसा होता है?’ इन वॉलंटियर्स ने 2024 में 8,886 कॉल, टेक्स्ट और ईमेल के जवाब दिए। संगठन को उम्मीद है कि इस साल यह संख्या 10 हजार को पार कर जाएगी।
जाहिर तौर पर, हाल के वर्षों में उन स्कूली छात्रों का प्रतिशत तेजी से बढ़ा है, जिन्होंने लगातार उदासी-अकेलेपन की शिकायत की। एक अध्ययन में पाया गया कि 39.7% छात्रों ने निरंतर उदासी और निराशा अनुभव की। 20.4% ने तो आत्महत्या पर भी गंभीरता से सोचा।
मैं आज क्यों आपसे इतनी दूर हो रही किसी चीज पर बात कर रहा हूं? क्योंकि जब मैं माखनलाल यूनिवर्सिटी में विद्यार्थियों के इंडक्शन प्रोग्राम में हिस्सा लेने भोपाल पहुंचा तो मैंने सुना कि मध्य प्रदेश के शहरी क्षेत्रों में 12 साल उम्र के हर 15 बच्चों में से एक तंबाकू का उपयोग करता है।
भारत में अपनी तरह के पहले राज्य-स्तरीय ओरल हेल्थ सर्वे में एम्स-भोपाल के शोधकर्ताओं ने इस चौंकाने वाले आंकड़े का खुलासा किया। 41 जिलों में 48,000 से अधिक प्रतिभागियों पर हुआ यह सर्वे बताता है कि 12 वर्ष के शहरी बच्चों में अपने समकक्ष ग्रामीण बच्चों की तुलना में गुटखा जैसे धुआं रहित तंबाकू के उपयोग की संभावना अधिक रहती है।
शहरी किशोर अक्सर सहपाठियों के प्रभाव, सामाजिक दबाव और परिपक्व या विद्रोही दिखने की इच्छा के कारण तंबाकू का उपयोग करते हैं। अन्य कारकों में परिवार में तंबाकू का चलन, तंबाकू कंपनियों की आक्रामक मार्केटिंग और निकोटीन उत्पादों तक आसानी से पहुंच शामिल है। अनुभव करने, वजन नियंत्रित करने या तनाव से निपटने के प्रयास भी भूमिका निभा सकते हैं।
मुझे याद है, जब मैं किशोर था और काम शुरू करने से पहले नागपुर के अपने घर से दूर पढ़ाई कर रहा था। वाकई अकेलेपन ने मुझे बहुत परेशान किया। तब मेरे अंकल ने मुझे आश्रय दिया और वह एक अभिभावक से ज्यादा दोस्त की तरह मेरे साथ रहे।
वे हमेशा मुझे काम में व्यस्त रखते और यह सुनिश्चित करते कि शाम को सप्ताह में कम से कम एक बार मैं उनके साथ फिल्म या थिएटर जाऊं। तभी उन्होंने धर्म से मेरा परिचय कराया और बताया कि मंदिर जाना क्यों महत्वपूर्ण है।
संक्षेप में, उन्होंने मुझे आधुनिकता और आस्था का सही मिश्रण समझाया। पैसे के मामले में वे बहुत सख्त थे। 18 साल की उम्र में मैंने कमाना शुरू कर दिया था। लेकिन उन्होंने तब तक मेरे खर्चे नियंत्रित किए, जब तक उन्हें यह नहीं लगा कि मैं पैसों का प्रबंधन कर सकता हूं। मैं आज जो भी हूं, अंकल के उसी सहारे के कारण हूं- जो किशोर से वयस्क होने के तक के संक्रांति-काल के वर्षों में उनसे मिला था।
फंडा यह है कि चूंकि आज वयस्कों के पास समय कम है तो जल्दी समझदार हुए कुछ किशोर भी स्वेच्छा से अन्य किशोरों की मदद के लिए आगे बढ़ सकते हैं।
Source link