Wednesday 08/ 10/ 2025 

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N. Raghuraman’s column – Why should we make the world a better place for the elderly? | एन. रघुरामन का कॉलम: हमें दुनिया को बुजुर्गों के लिए बेहतर क्यों बनाना चाहिए?

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1 घंटे पहले

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एन. रघुरामन, मैनेजमेंट गुरु - Dainik Bhaskar

एन. रघुरामन, मैनेजमेंट गुरु

शुक्रवार की रात इंदौर हवाई अड्डे पर काफी भीड़ थी। कोई 80 साल के उन बुजुर्ग ने विनम्रता से बोर्डिंग गेट के कर्मचारियों के पास जाकर कहा, “मेरे हाथ-पैर कांप रहे हैं, क्या मैं पहले बोर्डिंग कर सकता हूं?’ कोई बीस साल की एक लड़की ने कर्कश स्वर में सिर्फ एक शब्द कहा- “नहीं’। और वो कहीं देखने लगी मानो बहुत व्यस्त हो और किसी ऑपरेशनल रणनीति के बारे में सोच रही हो।

इतने सारे यात्रियों के सामने उन बुजुर्ग की अस्मिता को ठेस पहुंची थी, इसलिए उन्होंने सिर झुका लिया और चुपचाप एक तरफ खड़े हो गए। जब उनकी सीट संख्या घोषित हुई, तो वे धीरे-धीरे बोर्डिंग गेट की ओर चल पड़े। जिस लड़की ने रूखेपन से उन्हें “नहीं’ कहा था, अब उसका धैर्य जवाब दे रहा था, क्योंकि उन बुजुर्ग के कारण उनके पीछे आने वाले दूसरे लोगों की संकरी जगह रुक रही थी।

जैसे ही वे उस लड़की के पास आए, उसने उनसे बोर्डिंग पास मांगा। उनके शरीर की प्रतिक्रियाएं धीमी थीं, इसलिए उन्हें इसमें भी समय लगा। उन्होंने अपने प्लास्टिक बैग- जो लगभग किसी ग्रॉसरी बैग जैसा दिख रहा था- को अपने दाएं से बाएं हाथ में शिफ्ट किया।

बैग के प्लास्टिक हैंडल से उनकी सफेद, झुर्रियों वाली कलाई पर पहले ही लाल रंग की लकीर बन चुकी थी। उन्होंने हवाई अड्डे की दुकान से कुछ नमकीन और मिठाइयां अपने पोते-पोतियों के लिए खरीदी थीं। फिर उन्होंने बोर्डिंग पास निकालने के लिए धीरे से अपना दायां हाथ अपनी कमीज की बाईं जेब की ओर बढ़ाया।

इससे पहले कि वे बोर्डिंग पास को उस युवती को दे पाते, उसने उसे जोर से उनके हाथ से खींच लिया, मेज पर रखी एक छोटी-सी मशीन पर स्कैन किया और उसे वापस उनके हाथ में खोंसने की कोशिश की। बोर्डिंग पास लेते समय उनका दाहिना हाथ हवा में किसी पत्ते की तरह कांप रहा था।

मैंने देखा कि उनका हाथ पहले से भी ज्यादा कांप रहा था, जब उन्होंने अपने लिए जल्दी बोर्डिंग का अनुरोध किया था। यह दूसरी बार था जब उनकी अस्मिता को ठेस पहुंचाई गई थी। उन्होंने अपना सिर झुकाए रखा और लगभग विरोध-स्वरूप उस लड़की की ओर नहीं देखा। फिर वे धीरे-धीरे विमान की ओर चल दिए।

विमान में वे मुझसे कुछ पंक्तियां पीछे बैठे थे और मैंने अपनी सीट उनके बगल वाले यात्री से बदल ली, क्योंकि मैं उनसे बातें करके उन्हें शांत करना चाहता था। जैसे ही मैं बैठा, उनका फोन बज उठा। मैंने अनुमान लगाया कि यह उनके पोते का फोन था, जो उनके आने से बहुत उत्साहित था।

बुजुर्ग उस बच्चे से कह रहे थे, “चिंता मत करो, हम सोमवार को स्कूल जाएंगे और तुम्हें तंग करने वाले उस लड़के को एक घूंसा मारेंगे।’ मैं सोच ही रहा था कि ये बुजुर्ग स्कूल में अपने पोते को तंग कर रहे एक छोटे-से लड़के को भला कैसे घूंसा मारेंगे, जबकि वे उनका अपमान करने वाली लड़की के रवैए पर मुंह तक नहीं खोल पाए थे।

दूसरी तरफ से पोते ने पूछा, “आप यह कैसे करेंगे, दादू?’ बुजुर्ग ने एक कहानी सुनानी शुरू की कि कैसे उन्होंने स्कूल में तब यह किया था, जब वे पोते की उम्र के थे। उन्होंने कहा, “यह 1951 की बात होगी। उस बदमाश लेकिन ताकतवर लड़के ने मेरा दोपहर का खाना चुरा लिया था।

मैंने उसे रंगे हाथों पकड़ लिया था।’ दूसरी तरफ बैठे बच्चे ने पूछा, “फिर?’ बुजुर्ग ने धीमे स्वर में कहा, “मैंने उसका चेहरा देखा और मुझे लगा कि उसे बहुत भूख लग रही थी। तब मैंने उसे अपना आधा खाना दे दिया। इस पर उसने मुझे गले लगा लिया और तब से लेकर स्कूल से निकलने तक वह मेरी रक्षा करता रहा।’

बच्चा जोर से हंसा और बोला, “अपने स्कूल के दिनों के और किस्से सुनाओ ना दादू, प्लीज।’ बुजुर्ग ने कहा, “मैं जरूर सुनाऊंगा, लेकिन अभी फोन रखो, हम रात में मिलेंगे।’ मैं कुछ नहीं बोला। मुझे पता चल गया था कि उनका आत्मसम्मान फिर से लौट आया है।

फंडा यह है कि 80 से ज्यादा उम्र के उन लोगों को नजरअंदाज मत कीजिए, जिनके बारे में कुछ लोगों को लगता है कि वे अब इस दुनिया के लिए उपयोगी नहीं रह गए हैं। वे बच्चों के पालन-पोषण में बहुत योगदान देते हैं और उन्हें सही मायनों में मजबूत महसूस कराते हैं।

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