Pt. Vijayshankar Mehta’s column – In this era, listening to the essence means the path to solution. | पं. विजयशंकर मेहता का कॉलम: इस दौर में श्रवण-रस का अर्थ है समाधान का मार्ग

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53 मिनट पहले
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पं. विजयशंकर मेहता
कथावाचन हुनर नहीं, जिम्मेदारी है। आज कथावाचकों की स्टार-वैल्यू लोगों की आंखों में चुभ रही है। सांसारिक व्यक्ति को निंदा में ही रस आता है। बड़े-बड़े संत इस निंदा-शस्त्र से आहत होते रहे हैं। लेकिन समाज का एक बहुत बड़ा वर्ग है, जिन्हें कथा-सत्संगों से मार्गदर्शन मिल रहा है।
अब सावधानी कथावाचकों को भी रखनी पड़ेगी। इनका आचरण लगातार निरीक्षण और परीक्षण से गुजर रहा है। लोग टिप्पणी करते हैं कि कथाओं में किस्से-कहानी, नाच-गाना, इसके अलावा क्या होता है। ये कथावाचक के विवेक पर निर्भर करता है कि इनका कितना उपयोग करे और क्यों करे।
अगर कथावाचक अपना महत्व, ज्ञान स्थापित कर रहा है और श्रोता को उसकी समस्या का समाधान नहीं मिल रहा, तो यह भी तमाशे की श्रेणी में होगा। इस दौर में श्रवण-रस का मतलब है समाधान का मार्ग। कथा कोई भी हो, उसकी भाषा ‘प्रॉब्लम-शूटर’ होनी चाहिए। अशांत, बेचैन, परेशान लोग कथाओं से समाधान चाहते हैं। अब समाधानकारी सत्संग ही स्वीकार होगा।
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