Saturday 18/ 10/ 2025 

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N. Raghuraman’s column – Are adults also liking candy this Diwali? | एन. रघुरामन का कॉलम: क्या इस दीपावली में बड़े लोग भी कैंडी पसंद कर रहे हैं?

7 घंटे पहले

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एन. रघुरामन, मैनेजमेंट गुरु - Dainik Bhaskar

एन. रघुरामन, मैनेजमेंट गुरु

दशकों पहले जो पीढ़ी दीपावली पर चीनी का अतिरिक्त कोटा पाने के लिए राशन की दुकान के बाहर इंतजार करती थी, या वो पीढ़ी जिसने देखा था कि दीपावली की मिठाइयों को लंबा चलाने के लिए माता-पिता उन्हें थोड़ा-थोड़ा करके देते हैं- आज वही पीढ़ी अचानक से चारों तरफ कैंडी खाती हुई देखी या सुनी जा रही है।

मेरा मतलब चॉकलेट से नहीं है। हमारे मॉल और हवाई अड्डों के आसपास देखें। कैंडी की दुकानें महज देखी ही नहीं, सुनी भी जा रही हैं। हां, आपने सही पढ़ा। वे सुनाई दे रही हैं। क्योंकि हमारे बुजुर्ग ना केवल तल्लीनता से इन प्रीमियम मिठाइयों में दांत गड़ा रहे हैं, बल्कि इसमें चप-चप करके खाते हुए सुनाई देने वाली आवाज भी है।

ऐसा नहीं कि उन्होंने अपने दांत खो दिए हैं, बल्कि वे कैंडी चबाने की उस आजादी का आनंद ले रहे हैं- जो उनके बचपन में प्रतिबंधित थी। सोशल मीडिया पर भी ऐसे फीड्स की बाढ़ है, जिनमें हमारे बुजुर्ग रत्नों-सी रंगीन और खिलौनों के आकार की चीनी भरी कैंडीज जोर-जोर से चप-चप करके खाते दिख रहे हैं। दुनिया भर में यूट्यूबर्स ऐसी मिठाइयों को खाते हुए तस्वीरें खींच रहे हैं, जो पहले नहीं देखी गईं।

मसलन, थाईलैंड की ‘लुक-चुप’ मिठाई, जो मूंग के पेस्ट से बनती हैं। कोरिया की ‘मुकबैंग’, जो क्रिस्टल कोटेड ‘अगर-अगर जेली’ या कुरकुरे सोर-फ्रीज-ड्राय फ्रूट रोल अप्स से बनी होती हैं। चीन का कैंडिड फ्रूट, जिसे ‘तांगहुलु’ कहा जाता है या जापान की स्नोबॉल ‘मोकी’। दिलचस्प यह है कि इन फीड्स में पहले फिल्मों जैसी चेतावनी होती है कि ‘ये कॉन्टेंट केवल 16 वर्ष और उससे अधिक उम्र के लोगों के लिए उपयुक्त है।’

इस चेतावनी को ‘मिसोफोनिया अलर्ट’ कहा जाता है। यानी, सोशल मीडिया रील्स में कुछ ऐसी आवाजें हैं, जिनके प्रति कई लोग संवेदनशील होते हैं। ये आवाजें गुस्सा, घृणा, एंग्जायटी या अनैच्छिक भय की भावना पैदा कर सकती हैं।खर्चीले लोगों के घूमने-फिरने की जगहों पर ये कन्फेक्शनरी शॉप्स एक निश्चित आयु वर्ग के लोगों के लिए नए मनोरंजन के तौर पर उभर रही हैं।

इसीलिए 2025 में यह खपत सहजता से दिखाई और सुनाई दे रही है। हाल ही में, मैं पिछले रविवार शुरू हुए एक दीपावली मिलन में गया। अगले दिन फिर मैं उसी घर पर गया और देखा कि वहां बीते दिन मिले उपहारों के साथ बहुत-से कैंडी गिफ्ट भी थे। मिठाइयों के भीतर भरी आइसक्रीम और इसे थर्मल बॉक्स में पैक करना, उपहार देने का नया चलन है।

भारत ही नहीं, दुनियाभर में कैंडी खाना नई बात है। याद करें कुछ दशक पहले हम अकसर स्कूल के बाहर बैठी महिला से 2 या 3 पैसे में इमली खरीदते थे? अच्छे से रैपर में लपेटी इमली की तरह दिखने वाली ‘मैक्सिकन वेरो रेलेरिंदोस’ कैंडी बाहर से खट्टी है और चबाते ही इसमें मिर्च-युक्त कारमेल का स्वाद आता है। इसी तरह, 2024 में स्वीडन का बीयूबीएस ब्रांड सोशल मीडिया पर दुनिया में प्रसिद्ध हो गया था।

इन मिठाइयों का मतलब है टेक्सचर और यादें।मुझे याद है मैं अपने नानाजी के लिए पारले की ‘किस्मी टॉफी’ लाता था। 80 और 90 के दशक में उनके पास एक भी दांत नहीं था। जब वे खुश होते, बरामदे में बैठकर इसे चबाते और गुजरने वालों को अपनी बिना दांतों की मुस्कान दिखाते थे।

आज हम लोग- जो हवाई अड्डे पर बोर्डिंग का इंतजार कर रहे होते हैं या पत्नी के लिए तमाम शॉपिंग बैग लेकर मॉल में इंतजार कर रहे होते हैं- तनाव के समय में इन कैंडीज की तलाश में रहते हैं, और शुगर को फिर से स्ट्रेस कम करने वाले एक ऐसे आनंद के रूप में स्वीकार करते हैं, जो कि आखिरकार वयस्कों के बीच अपराध-बोध से मुक्त है।

जबकि इन दोनों ही जगहों पर हमारे साथ इंतजार कर रहे अधेड़ उम्र के एग्जीक्यूटिव्ज़ हमारी रेगुलर कैडबरी से परे की एक बड़ी दुनिया की खोज करते हुए (कैंडी खाते हुए) अपनी चिपचिपी अंगुलियों को चाट रहे होते हैं। दोनों के लिए ही कैंडी उस पल की साथी है।फंडा यह है कि हमें गंभीरता से सोचना पड़ेगा कि ये बड़े लोग अचानक से कैंडी क्यों खाने लगे हैं। इस दीपावली अपने चीनी के उपभोग पर नजर रखें। यह आपके, आपके परिवार के और देश के लिए बेहतर होगा।

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