तेजस्वी यादव को सीएम कैंडिडेट बनाने से महागठबंधन को फायदा कम, नुकसान ज्यादा – Mahagathbandhan will suffer with Tejashwi Yadav CM candidate declaration in bihar election opns2

बिहार विधानसभा चुनावों के लिए महागठबंधन में तेजस्वी यादव के नाम पर सीएम उम्मीदवार के तौर पर मुहर लग गई है. वैसे भी तेजस्वी खुद को हर सभा, हर मंच पर खुद को सीएम के रूप में प्रस्तुत कर रहे थे. पर कांग्रेस किसी न किसी बहाने उन्हें सीएम के रूप में प्रोजेक्ट करने से अभी तक बच रही थी. पर गुरुवार को महागठबंधन ने तेजस्वी यादव को अपना मुख्यमंत्री पद का आधिकारिक चेहरा घोषित कर दिया .
कांग्रेस नेता अशोक गहलोत ने पटना में संयुक्त प्रेस कॉन्फ्रेंस में इसकी मुहर लगाई, जिसमें VIP प्रमुख मुकेश सहनी को डिप्टी सीएम फेस भी बनाया गया. जाहिर है कि राजनीतिक गलियारों में इसे महागठबंधन का मास्टर स्ट्रोक कहा जा रहा है. आरजेडी और कांग्रेस समर्थकों का कहना है कि विधानसभा चुनावों के लिए महागठबंधन ने इन दोनों के नाम को आगे बढ़ाकर शुरूआती फतह हासिल कर ली है.
वैसे इसमें कोई दो राय नहीं हो सकती है कि महागठबंधन को तेजस्वी यादव और मुकेश सहनी के नाम का बहुत फायदा मिलने वाला है. पर जो लोग पिछले 10 सालों से बीजेपी को नजदीक से देख रहे हैं उन्हें पता है कि किस तरह विपक्ष के हथियार को पार्टी अपने फायदे के लिए इस्तेमाल कर लेती रही है. जाहिर है कि तेजस्वी-सहनी के नाम को भी बीजेपी अपने को मजबूत करने में कोई कसर नहीं छोड़ने वाली है. आइये देखते हैं कैसे?
यादव राज नैरेटिव गढने का बीजेपी के पास मौका
महागठबंधन द्वारा तेजस्वी यादव को मुख्यमंत्री पद का चेहरा घोषित करने से भाजपा को यादव राज का नैरेटिव गढ़ने का मौका मिल गया है. बीजेपी बहुत चतुराई से इस फैसले को जंगल राज की वापसी से जोड़ने वाली है. तेजस्वी का लालू प्रसाद यादव के पुत्र होने के चलते भाजपा के लिए आसान होगा कि वह जनता के बीच यह प्रचारित करे कि बिहार में जंगल राज की वापसी हो सकती है.
यूपी और बिहार में यादव राज की कल्पना से भी कुछ लोग सहम जाते हैं. यूपी में बीजेपी से नाराज होने के बाद भी लोग वोटिंग का दिन आते-आते यादव राज की वापसी से सहम कर के फिर बीजेपी को वोट देते हैं. पिछले 3 दशक से बिहार की राजनीति को बहुत नजदीक से देखने वाले विजयेंद्र कहते हैं कि बीजेपी जानबूझकर कई बार हारने का प्रचार करती है. ताकि वोटिंग के दिन तक यह बात लोगों के दिमाग में बैठ जाए कि बिहार में एक बार फिर यादव राज आ जाएगा. इस तरह लोग मन मारकर भी बीजेपी को वोट देते हैं. जनसुराज पार्टी के फाउंडर प्रशांत किशोर ने भी कहा है कि तेजस्वी के सीएम बनने पर बिहार में जंगलराज की वापसी तय है.
जाहिर है कि बिहार में भी तेजस्वी यादव के सीएम बनने की बात कन्फर्म होने के चलते सवर्ण , बनिया और अति पिछड़े और दलित समुदाय महागठबंधन से दूरी बना सकते हैं. यादव (14%) कोर वोट महागठबंधन का आधार है, लेकिन एंटी-यादव भावना से कोइरी, कुशवाहा (18%) और सवर्ण (13%) एनडीए की ओर झुक सकते हैं.
कांग्रेस के पास कुछ सवर्ण और अति पिछड़े दलित वोट जा सकते थे पर अब उम्मीद कम ही रहेगी
कांग्रेस ने जिस तरह टिकट बंटवारा किया है उससे साफ लगता है कि उसे अपने परंपरागत वोट बैंक सवर्ण और दलित वोटों पर कुछ ज्यादा ही भरोसा है. कांग्रेस ने कुल 61 सीटों में 19 टिकट सवर्णो को दिया है. जाहिर है कि उसे उम्मीद है कि सवर्णों के वोट मिलेंगे. पर अब सवर्णों को यह भरोसा हो जाएगा कि ये गठबंधन हमारे वोट लेकर तेजस्वी यादव और मुकेश सहनी को सीएम और डिप्टी सीएम बनाएगा.
यानि कि फिर से एक बार प्रदेश में सवर्ण बनाम छोटी जातियां का संघर्ष शुरू करने की कोशिश होगी. सवर्ण समुदाय वोट देने के पहले दस बार इस तरह की बात सोचेगा. इसी तरह अति पिछड़ी और दलित जातियों में यह ट्रेंड चलता है कि जहां यादव वोट जाते हैं वहां इनका वोट नहीं पड़ता है. जाहिर है कांग्रेस को अपने कुछ दलित और अति पिछड़ी वोटो का नुकसान झेलना पड़ेगा.
2020 में महागठबंधन ने सवर्ण वोटों में 10-12% का कुछ हिस्सा हासिल किया था, मुख्यतः कांग्रेस के कारण, जो एंटी-भाजपा भावना से प्रेरित था. कांग्रेस राहुल की छवि से 5-7% सवर्ण वोट काट सकती थी, जो भाजपा के 74 सीटों (2020) को 10-15 तक कम करने की क्षमता रखता था. अब, NDA का वोट शेयर बढ़ने की संभावना है, क्योंकि सवर्ण एकजुट होकर भाजपा की ओर लौटेंगे.
एमवाई समीकरण के खिलाफ बाकी हिंदुओं को मोबलाइज करने का मौका
बिहार विधानसभा चुनाव 2025 में महागठबंधन द्वारा तेजस्वी यादव को सीएम चेहरा बनाने से भाजपा को मुस्लिम-यादव (एमवाई) समीकरण के खिलाफ बाकी हिंदू वोटों को मोबलाइज करने का सुनहरा अवसर मिला है. फ्रंटलाइन के विश्लेषण के अनुसार, भाजपा का हिंदुत्व पिच नॉन-यादव सबाल्टर्न जातियों में प्रभावी हो रहा है, जो एमवाई के जातिगत ध्रुवीकरण को काउंटर करता है. आरजेडी कुल 143 सीटों पर चुनाव लड़ रही है. पर उनमें आधी सीट यादव (51 सीट) और मुसलमान (19) को दे दिया है. शेष में सभी जातियों को बांट दिया गया है. जाहिर है कि बाकी जातियां समझ रही हैं कि महागठबंधन की सरकार आती है तो प्रदेश में एमवाई का राज होने वाला है. बीजेपी इस बात को अपना हथियार बनाएगी ये तय है. अगर ये बात प्रदेश की जनता को समझ में आ जाती है तो महागठबंधन को भारी नुकसान होने से कोई रोक नहीं सकता है.
टाइम्स ऑफ इंडिया रिपोर्ट के मुताबिक, यह सोशल जस्टिस और स्ट्रैटेजिक कास्ट ग्रुप्स को टारगेट करता है. अगर एमवाई 90% एकजुट रहा, तो महागठबंधन को 100 से अधिक सीटें मिल सकती हैं, लेकिन हिंदू मोबलाइजेशन से एनडीए का वोट शेयर 45% ले अधिक पहुंच सकता है. कुल मिलाकर, तेजस्वी को सीएम बनाने का फैसला भाजपा के लिए ‘हिंदू कार्ड’ का हथियार है, जो जाति को पार कर सांप्रदायिक ध्रुवीकरण पैदा कर सकता है.
बीजेपी के वंशवादी राजनीति के आलोचना का आधार मिल जाएगा
बिहार विधानसभा चुनाव 2025 में महागठबंधन द्वारा तेजस्वी यादव को मुख्यमंत्री पद का चेहरा घोषित करने से भाजपा को विपक्ष की ‘वंशवादी राजनीति’ की आलोचना करने का मजबूत हथियार मिल गया है. दरअसल भाजपा इस फैसले को ‘परिवारवाद का प्रतीक’ बताएगी जो लालू प्रसाद यादव के पुत्र तेजस्वी को केंद्र में रखकर आरजेडी की ‘राजनीतिक राजतंत्र’ को उजागर करेगा. भाजपा की यह रणनीति राष्ट्रीय स्तर पर कांग्रेस-गांधी परिवार की आलोचना से प्रेरित है, और अब बिहार में इसे स्थानीय संदर्भ देकर तेज किया जाएगा. भाजपा नेताओं ने तुरंत हमला बोला है. भाजपा सांसद नित्यानंद राय ने तेजस्वी पर हमला कहा कि परिवारवाद से विकास नहीं होता.
शाहनवाज हुसैन ने महागठबंधन के आंतरिक मतभेदों को उछालते हुए कहा कि ‘राहुल गांधी और तेजस्वी के बीच सुलह नहीं हो सकी, वंशवाद ही उनकी एकमात्र राजनीति है’
भाजपा ने सोशल मीडिया पर ‘वंशवाद vs विकास’ कैंपेन शुरू कर दिया, जहां पोस्टरों में तेजस्वी की तस्वीर के साथ ‘लालू का बेटा, बिहार का भाग्य?’ जैसे कैप्शन चलाए जा रहे हैं. यह नैरेटिव 2020 के चुनाव में भी इस्तेमाल हुआ था, जब भाजपा ने आरजेडी को ‘पारिवारिक सत्ता’ का आरोप लगाया था, लेकिन अब सीएम फेस घोषणा से यह और तीखा हो गया. भाजपा प्रवक्ता शहजाद पूनावाला ने प्रेस कॉन्फ्रेंस के पोस्टर (जिसमें केवल तेजस्वी की फोटो थी) पर तंज कसते हुए कहा, ‘एक चेहरा, लेकिन परिवार का राज—कांग्रेस का सम्मान चोरी?’
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