Mustafa Suleiman’s column – We must understand that AI is not like a ‘real’ human | मुस्तफा सुलेमान का कॉलम: हमें समझना होगा कि एआई किसी ‘वास्तविक’ मनुष्य जैसा नहीं है

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12 घंटे पहले
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मुस्तफा सुलेमान माइक्रोसॉफ्ट एआई के सीईओ
मेरे जीवन का लक्ष्य एक ऐसे सुरक्षित और लाभकारी एआई का निर्माण करना रहा है, जो दुनिया को बेहतर बनाए। लेकिन हाल के दिनों में, मैं इस बात को लेकर चिंतित होता रहा हूं कि लोग एआई को एक सचेत (कॉन्शस) इकाई के रूप में इतनी दृढ़ता से मानने लगे हैं कि जल्द ही वे एआई अधिकारों और यहां तक कि नागरिकता की भी वकालत करने लगेंगे! यह एक खतरनाक मोड़ होगा। हमें इससे बचना होगा। हमें याद रखना होगा कि एआई हम मनुष्यों की मदद करने के लिए है, इसलिए नहीं है कि वो हम जैसा ही बन जाए।
इस संदर्भ में, इस पर बहस करना कि क्या एआई वास्तव में कॉन्शस हो सकता है, खुद को मूल विषय से भटकाना होगा। निकट भविष्य में जो चीज मायने रखती है, वो है चेतना का भ्रम। हम पहले से ही उस “सीमिंगली कॉन्शस एआई’ (एससीएआई) के करीब पहुंच रहे हैं, जो कि चेतना की पर्याप्त रूप से नकल कर सकता है।
एक एससीएआई भाषा का धाराप्रवाह उपयोग करने में सक्षम होगा और वह प्रेरक और भावनात्मक प्रतिक्रिया देने वाले व्यक्तित्व का भी प्रदर्शन करेगा। उसकी याददाश्त बहुत लंबी और सटीक होगी, जो किसी में भी स्वयं के एक अनवरत बोध को बढ़ावा दे सकती है।
वह इस क्षमता का उपयोग व्यक्तिपरक अनुभवों (अतीत की बातचीत और यादों का संदर्भ देकर) का दावा करने के लिए कर सकता है। इन मॉडलों के भीतर जटिल रिवॉर्ड फंक्शन आंतरिक प्रेरणा का अनुकरण करेंगे, और उनका उन्नत लक्ष्य-निर्धारण और योजनाएं बनाने की क्षमता हमारी इस भावना को मजबूत करेगी कि एआई किसी वास्तविक मनुष्य की तरह व्यवहार कर रहा है।
एआई में ये क्षमताएं या तो पहले से ही मौजूद हैं या जल्द ही आने ही वाली हैं। हमें यह समझकर कि ऐसी प्रणालियां जल्द ही सम्भव होंगी, इनके निहितार्थों पर विचार करना शुरू करना होगा और एआई की मायावी-चेतना के विरुद्ध एक मानक स्थापित करना होगा।
कई लोगों को एआई के साथ बातचीत करना पहले ही एक समृद्ध और प्रामाणिक अनुभव लगने लगा है। इससे जुड़ी मनोविकृतियां भी सामने आ रही हैं। लोग एआई की बातों को दैवीय-सत्य की तरह सही मानने लगे हैं। चेतना के विज्ञान पर काम करने वाले लोग मुझे बताते हैं कि उनके पास ऐसे लोगों के ढेरों प्रश्न आने लगे हैं, जो जानना चाहते हैं कि क्या उनका एआई कॉन्शस है? और क्या उसके प्रेम में पड़ जाना ठीक होगा?
भले ही यह कथित चेतना “वास्तविक’ न हो (हालांकि यह एक ऐसा विषय है, जिस पर अंतहीन बहस छिड़ सकती है), लेकिन इसका सामाजिक प्रभाव तो निश्चित रूप से वास्तविक होगा। चेतना हमारी पहचान की भावना और समाज में नैतिक व कानूनी अधिकारों की हमारी समझ से गहराई से जुड़ी हुई है।
अगर कुछ लोग एससीएआई विकसित करना शुरू कर देते हैं, और अगर ये प्रणालियां लोगों को यह विश्वास दिला देती हैं कि मनुष्यों की तरह उन्हें भी पीड़ा होती है या उन्हें यह अधिकार है कि उन्हें स्विच-ऑफ न किया जाए, तो उनके समर्थक मनुष्य उनकी सुरक्षा के लिए पैरवी करने लगेंगे। पहचान और अधिकारों को लेकर पहले ही ध्रुवीकृत तर्कों से घिरी दुनिया में हम एआई-अधिकारों के पक्ष और विपक्ष के बीच विभाजन की एक नई धुरी जोड़ देंगे।
एआई के कष्ट झेलने में सक्षम होने के दावों का खंडन करना मुश्किल होगा, खासतौर पर वर्तमान के हमारे विज्ञान की सीमाओं को देखते हुए। कुछ शिक्षाविद पहले ही “मॉडल वेलफेयर’ के विचार पर सोचते हुए तर्क दे रहे हैं कि हमारा कर्तव्य है कि हम उन “बीइंग्स’ के प्रति भी नैतिकता के अपने विचार को बढ़ाएं, जिनके “कॉन्शस’ होने की नगण्य ही सही, किन्तु संभावना है।
लेकिन इस सिद्धांत को लागू करना जल्दबाजी भरा और खतरनाक दोनों होगा। यह लोगों के भ्रमों को और बढ़ाएगा और उनकी मनोवैज्ञानिक कमजोरियों का फायदा उठाएगा, साथ ही अधिकार-धारकों की एक नई विशाल श्रेणी बनाकर अधिकारों के मौजूदा संघर्षों को और जटिल बना देगा। फिलहाल तो हमारा पूरा ध्यान मनुष्यों, पशुओं और प्राकृतिक पर्यावरण के कल्याण और अधिकारों की रक्षा पर ही होना चाहिए।
(© प्रोजेक्ट सिंडिकेट)
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