Pt. Vijayshankar Mehta’s column – Recognize the humanity within you in companionship | पं. विजयशंकर मेहता का कॉलम: साहचर्य में अपने भीतर की इंसानियत को पहचानें

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5 घंटे पहले
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पं. विजयशंकर मेहता
स्त्री हों या पुरुष, साथ रह रहे हों तो भीतर की इंसानियत को समझना और जीने का प्रयास करना। स्त्री-पुरुष के रूप में हम कई रिश्तों में रह सकते हैं, लेकिन सबसे महत्वपूर्ण रिश्ता है पति-पत्नी का। सामान्य रूप से यह रिश्ता बनता है विवाह के पश्चात। लेकिन अब भारतीय घरों में विवाह नामक संस्था डगमगा रही है।
पहले तो लोगों ने इसका स्वरूप बदला और लिव-इन रिलेशनशिप पर लाकर छोड़ा। अब एक और खतरनाक स्वरूप सामने आ रहा है। कई परिवारों के बच्चे या बच्चियां यह कहते मिल रहे हैं कि विवाह की क्या जरूरत, मैं अपनी गर्लफ्रेंड या बॉयफ्रेंड के साथ रह रहा या रही हूं।
इन पंक्तियों में उन्होंने पति-पत्नी नाम के दिव्य रिश्ते को छिन्न-भिन्न कर डाला। अब ऐसे स्त्री-पुरुष जो साथ रहते हैं, उनके लिए दो ही चीजें महत्वपूर्ण हैं- धन और तन- और वो भी भोगने के लिए। सांस्कृतिक और सामाजिक समझ और भाव तो जैसे खत्म ही हो गए।
शायद आज ऐसे रिश्तों का महत्व पता न लगे, लेकिन आने वाले पंद्रह-बीस साल में भारत के परिवार जिन बातों की कीमत चुकाएंगे, उनमें ऐसे रिश्ते भी होंगे।
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