Wednesday 19/ 11/ 2025 

Margshirsha Amavasya 2025: मार्गशीर्ष अमावस्या पर भूलकर भी न करें ये गलतियां, मां लक्ष्मी हो जाएंगी नाराज – margshirsha Amavasya 2025 don’t do these mistakes or follow these precautions tvisgहर मिनट में बने 21 शौचालय, 2 अक्टूबर 2014 से भारत में अब तक कुल कितनी हुई इनकी संख्या?Priyadarshan’s column – Nithari is not the only village where the path to justice is blocked | प्रियदर्शन का कॉलम: निठारी अकेला गांव नहीं है, जहां न्याय की गली बंद है‘मिडिल ईस्ट में किसी और को दिया तो…’,सऊदी को F-35 देने के ट्रंप के ऐलान पर भड़का इजरायल – us saudi f35 fighter jet deal raises israel security concerns middle east tension ntcprkबांग्लादेश के खिलाफ भारतीय तटरक्षक बल ने की बड़ी कार्रवाई, तीन नौकाएं जब्त, 79 गिरफ्तारPt. Vijayshankar Mehta’s column – Recognize the humanity within you in companionship | पं. विजयशंकर मेहता का कॉलम: साहचर्य में अपने भीतर की इंसानियत को पहचानेंसंघ के 100 साल: जब RSS के कार्यक्रम में आने से नेपाल के राजा को रोक दिया था भारत सरकार ने – rss 100 years sangh nepal king stopped coming India congress ntcpplWeather Update Today: दिल्ली समेत इन शहरों में धुंध-सर्दी का डबल अटैक! यहां होगी बारिश, जानें IMD का लेटेस्ट अपडेटRuchir Sharma’s column: The world is changing rulers, but the trend is the opposite in India. | रुचिर शर्मा का कॉलम: दुनिया सत्ताधीशों को बदल रही है, पर भारत में ट्रेंड उलटाToday’s Horoscope: आज कैसा रहेगा आपका दिन, क्या होगा SUCCESS मंत्र? जानें राशिफल
देश

Priyadarshan’s column – Nithari is not the only village where the path to justice is blocked | प्रियदर्शन का कॉलम: निठारी अकेला गांव नहीं है, जहां न्याय की गली बंद है

  • Hindi News
  • Opinion
  • Priyadarshan’s Column Nithari Is Not The Only Village Where The Path To Justice Is Blocked

7 घंटे पहले

  • कॉपी लिंक
प्रियदर्शन लेखक और पत्रकार - Dainik Bhaskar

प्रियदर्शन लेखक और पत्रकार

जर्मन कवि बर्तोल्त ब्रेख्त की पंक्तियां हैं- “हम सबके हाथ में/ थमा दिए गए हैं/ छोटे-छोटे न्याय/ताकि जो बड़ा अन्याय है, उस पर परदा पड़ा रहे।’ लाल किले के पास बम धमाके के बाद आतंकियों को याद रखने लायक जवाब देने के वादे और बिहार के चुनावी नतीजों पर मन रहे उल्लास के बीच क्या किसी को वाकई न्याय और लोकतंत्र की परवाह है? यह सवाल इन दिनों देश के औद्योगिक विकास का एक भव्य नगर बन रहे नोएडा के एक गांव निठारी के वे बच्चे पूछने लायक नहीं रह गए हैं, जिनके शवों के टुकड़े एक नाली में पड़े मिले थे।

बीस बरस पहले एक-दो नहीं, सत्रह बच्चों के कंकाल बता रहे थे कि बीते कुछ महीनों से इस इलाके में क्या कुछ चल रहा था और इन खोए हुए बच्चों के मां-बाप की शिकायत को मजाक में उड़ाने वाली पुलिस ने कैसी आपराधिक लापरवाही की थी।

जब यह मामला सुर्खियों में आया, तब अचानक न्याय तंत्र सक्रिय हुआ- वहीं के एक बंगले के मालिक मोनिंदर सिंह पंढेर और उसका नौकर सुरेंदर कोली पकड़े गए। तब बताया कि उनके खिलाफ कई सबूत मिल चुके हैं। लेकिन पहले पंढेर सारे मामलों से बरी हुआ और उसके बाद बीते हफ्ते कोली भी छूट गया।

किसी के कान पर जूं तक नहीं रेंगी। किसी राजनीतिक दल, नेता, मंत्री या उससे भी ऊपर बैठे शख्स को तब न्याय का खयाल नहीं आया। अखबारों के पन्नों पर और टीवी चैनलों में बेशक यह अपराध-कथा दिखी, लेकिन बताया गया कि किस बुनियाद पर सुप्रीम कोर्ट ने इन्हें बरी किया।

सुप्रीम कोर्ट के अपने आधार होंगे, लेकिन सवाल यह है कि इन बच्चों को किसी ने मारा तो जरूर। उन्हें पकड़ा क्यों नहीं जा सका? और जिन्हें पकड़ा गया, उनका अपराध साबित क्यों नहीं किया जा सका? ठीक है कि सुरिंदर कोली ने फिर भी 19 बरस की जेल काट ली- लेकिन अगर वह बेगुनाह था, तो उसके साथ यह अन्याय क्यों हुआ? और अगर वह गुनहगार है तो उसे इस तरह बरी किए जाने का गुनहगार कौन है?

निठारी अकेला मोहल्ला या गांव नहीं है, जहां न्याय की गली बंद है। दरअसल इस देश में गरीब आदमी के लिए न्याय पाना लगातार असंभव होता जा रहा है। अव्वल तो पुलिस केस दर्ज नहीं करती, दर्ज हो जाए तो ठीक से जांच नहीं करती, अगर मामला अदालत तक पहुंच जाए तो गरीब को करीने के वकील नहीं मिलते।

क्या यह सच नहीं है कि देश के सबसे अच्छे वकील सबसे मोटे पैसे वाले अपराधियों के बचाव में व्यस्त रहते हैं? यह जानकारी आम है कि इस देश के सबसे अच्छे वकील एक-एक पेशी के लिए 25 से 50 लाख रुपए तक ले लिया करते हैं। इतने पैसे में न्याय हो नहीं सकता, वह खरीदा या बेचा ही जा सकता है।

इन बड़े वकीलों की बात छोड़ भी दें तो हिंदुस्तान की कचहरियां और जेलें शायद अकल्पनीय भ्रष्टाचार और अमानुषिक दमन के सबसे बड़े केंद्रों के रूप में पहचानी जाती हैं। हमारी जेलों में सबसे ज्यादा यहां के गरीब लोग भरे पड़े हैं।

उनकी सामुदायिक शिनाख्त बताती है कि देश के दलित, आदिवासी और मुसलमान जेल के भीतर सबसे बड़ी आबादी बनाते हैं। इनमें से बहुत बड़ी तादाद ऐसे बेचारों की है, जिनका मामला व्यवस्था में बरसों नहीं, दशकों से ‘विचाराधीन’ है।

निठारी के बच्चों को न्याय नहीं मिलेगा- यह लगभग पहले दिन से तय था। उनके मां-बाप की ऐसी आर्थिक हैसियत नहीं थी कि वे अपने लिए न्याय खरीद सकें। फिर उनका सामना एक अमीर शख्स से और ऐसे अमीरों पर मेहरबान एक बेईमान पुलिस तंत्र से था।

अब तो स्थिति यह है कि हमारे न्याय-तंत्र में जाति और धर्म देखकर जेल और जमानत का फैसला होता जान पड़ता है, जुर्म और सबूत देखकर नहीं। देश में कानून जितने सख्त होते जा रहे हैं, उनका दुरुपयोग उतना ही बढ़ता जा रहा है। एक तरफ तो निठारी का अन्याय है और दूसरी तरफ वह “बुलडोजर न्याय’, जो जब भी चलता है तो सबसे पहले हमारे न्याय-तंत्र के प्रति भरोसे की छाती पर ही चलता है!

निठारी के बच्चों को किसी ने मारा तो जरूर। उन्हें पकड़ा क्यों नहीं जा सका? और जिन्हें पकड़ा गया, उनका अपराध साबित क्यों नहीं किया जा सका? लेकिन निठारी के बच्चों को के मां-बाप की ऐसी आर्थिक हैसियत नहीं थी कि वे अपने लिए न्याय खरीद सकें। (ये लेखक के अपने विचार हैं)

खबरें और भी हैं…

Source link

Check Also
Close



DEWATOGEL


DEWATOGEL