Lt Gen Syed Ata Hasnain’s column – Middle East calm hints at storms ahead | लेफ्टिनेंट जनरल सैयद अता हसनैन का कॉलम: मध्य-पूर्व की शांति आगामी तूफानों का संकेत देती है

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4 घंटे पहले
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लेफ्टिनेंट जनरल सैयद अता हसनैन कश्मीर कोर के पूर्व कमांडर
मध्य-पूर्व आज एक भ्रमित कर देने वाली शांति की स्थिति में है। गाजा में हमास, लेबनान में हिजबुल्ला जैसे उग्रवादी समूहों और सीरिया में असद शासन के पतन ने इस क्षेत्र के चिरस्थायी तूफानों में क्षणिक विराम ला दिया है। जिन छद्म युद्धों का दायरा तेहरान से बगदाद और दमिश्क होते हुए भूमध्य सागर तक फैला था, वो अब बिखरा हुआ मालूम होता है।
यमन के हूती आज इकलौती ऐसी विघटनकारी शक्ति बने हुए हैं, जो लाल सागर और अरब सागर में अंतरराष्ट्रीय समुद्री मार्गों के लिए खतरा बने हुए हैं, लेकिन उस क्षेत्रीय मोमेंटम के बिना जो कभी ईरान समर्थित रणनीतिक महत्वाकांक्षाओं को परिभाषित करता था।
और इसके बावजूद इस स्थिरता के स्थायी रहने की संभावना नहीं है। उलटे यह एक और बड़े, विनाशकारी तूफान का केंद्र हो सकता है। संघर्ष के फिर से उभरने की स्थितियां न केवल बरकरार हैं, बल्कि और बढ़ गई हैं- खासकर इजराइली फौजों द्वारा गाजा में अभूतपूर्व हिंसा और विनाश के बाद।
दुनिया ने देखा कि गाजा पर व्यवस्थित रूप से हमला किया गया, रहवासी बस्तियों को तहस-नहस किया गया और हजारों नागरिक मारे गए। इजराइल ने इसके लिए चाहे जिस राजनीतिक या सैन्य उद्देश्य का दावा किया हो, लेकिन जो तस्वीरें और नैरेटिव सामने आए, उन्होंने फिलिस्तीनियों, व्यापक अरब-जगत और मुस्लिम आबादी के बीच क्रोध, निराशा और पीड़ित होने की भावना को जन्म दिया है।
गाजा का यह जनसंहार एक नई वैचारिक और उग्रवादी लहर के उभरने का आधार बन सकता है। यह समझना जरूरी है कि मध्य-पूर्व ऐसा क्षेत्र नहीं है, जहां ऐतिहासिक शिकायतें चुपचाप मिट जाती हों। बल्कि यह ऐसा क्षेत्र है, जहां पीढ़ियों तक पीड़ा की भावनाओं को संजोया जाता है और जहां प्रतिशोध लेना सांस्कृतिक मुद्रा और राजनीतिक साधन दोनों है।
गाजा युद्ध ने इजराइल-फिलिस्तीनी संघर्ष को समाप्त नहीं किया, केवल इसके परिदृश्य को बदल दिया है। हमास के सैन्य और राजनीतिक रूप से कमजोर होने के साथ ही अब नए संगठनों के उदय का रास्ता खुल गया है, जो अपने लक्ष्यों और तरीकों में अधिक सुगठित, कट्टरपंथी और संभवतः अधिक अंतरराष्ट्रीय हों।
इतिहास एक गंभीर मिसाल पेश करता है। आईएसआईएस का उदय शून्य में नहीं हुआ। यह इराक के सुन्नियों के राजनीतिक हाशिए पर जाने, सद्दाम हुसैन के बाथिस्ट तंत्र के विघटन और कब्जे के घावों से पैदा हुआ था।
आईएसआईएस सिर्फ एक आतंकवादी समूह नहीं था, बल्कि एक अर्ध-राज्यीय शक्ति भी थी, जिसने सीमाओं का पुनर्निर्धारण किया और समांतर युद्ध की वैश्विक समझ को उलट-पुलट कर दिया। आज पूरे क्षेत्र में ऐसे ही तत्व मौजूद हैं : मताधिकार से वंचित युवा, विस्थापित परिवार, पारंपरिक राजनीतिक ढांचों से मोहभंग और अंतरराष्ट्रीय समुदाय द्वारा त्यागे जाने की भावना। ये हालात कट्टरपंथ के लिए उपजाऊ हैं।
इसके अलावा, गाजा के मनोवैज्ञानिक प्रभाव को भी कम करके नहीं आंका जा सकता। विनाश के पैमाने और तीव्रता का अरब-जगत पर खासा प्रभाव पड़ा है। अरब सरकारों ने भले ही सतर्कतापूर्ण या दुविधापूर्ण रुख अपनाया हो, लेकिन जनभावनाएं नाटकीय रूप से भड़क उठी हैं।
प्रदर्शन, सोशल मीडिया अभियान और भूमिगत समर्थन नेटवर्क, सभी में तेजी से वृद्धि हुई है। यह राज्य की नीतियों- जो अक्सर व्यावहारिक राजनीति और विदेशी गठबंधनों द्वारा तय होती हैं- और उनकी जनता की नब्ज के बीच मौजूद एक बड़े अंतर को दर्शाता है।
यह असंगति एक खतरनाक गतिशीलता पैदा करती है, जहां जनाक्रोश पारंपरिक राजनीतिक दायरे से बाहर निकलने का रास्ता तलाशता है। अगर इसे दबाया या नजरअंदाज किया गया तो यह ऊर्जा और भी गुप्त और हिंसक रूपों में अभिव्यक्त होगी।
एक और अनदेखा किया गया पहलू गाजा युद्ध की अंतरराष्ट्रीय प्रतिध्वनि है। दक्षिण एशिया, दक्षिण पूर्व एशिया और पश्चिम के मुस्लिम समुदायों ने इस पर गुस्से और पीड़ा के साथ प्रतिक्रिया व्यक्त की है। ये अभिव्यक्तियां अभी प्रतीकात्मक हैं, लेकिन इतिहास हमें बताता है कि एकजुटता के आंदोलन जल्द ही सैन्य समर्थन प्रणालियों में विकसित हो सकते हैं।
अगला उग्रवादी संगठन गाजा, लेबनान या सीरिया तक ही सीमित नहीं हो सकता है। यह भी याद रखें कि ईरान का प्रॉक्सी-मॉडल भले ही क्षतिग्रस्त हुआ हो, वह अपनी क्षेत्रीय महत्वाकांक्षाओं से पीछे नहीं हटने जा रहा है। तुर्किये भी नए इस्लामवादी आंदोलनों का प्रायोजक बन सकता है।
मध्य-पूर्व का मौजूदा भू-राजनीतिक परिदृश्य भले ही क्षणिक रूप से शांत लग सकता है, लेकिन यह शांति खतरनाक रूप से भ्रामक है। गाजा-संघर्ष के भावनात्मक, वैचारिक और रणनीतिक अभिप्राय धीरे-धीरे सामने आएंगे। (ये लेखक के अपने विचार हैं)
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