Thursday 09/ 10/ 2025 

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Why is Nehru’s name still prominent even after six decades? | राजदीप सरदेसाई का कॉलम: छह दशकों के बाद भी नेहरू का नाम क्यों छाया हुआ है?

2 घंटे पहले

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राजदीप सरदेसाई वरिष्ठ पत्रकार - Dainik Bhaskar

राजदीप सरदेसाई वरिष्ठ पत्रकार

इस हफ्ते लोकसभा में अपने उद्बोधन के दौरान प्रधानमंत्री मोदी ने जहां ऑपरेशन सिंदूर को लेकर सरकार पर सवाल उठाने वालों पर तीखा प्रहार किया, वहीं अतीत का एक जाना-पहचाना नाम भी बार-बार दोहराया गया। कुल 14 मौकों पर मोदी ने पं. जवाहरलाल नेहरू का जिक्र किया। इससे सवाल उठता है कि मोदी का नेहरू-प्रेम आखिर क्या है?

नेहरू का निधन मई 1964 में तब हुआ था, जब मोदी अपनी किशोरावस्था में थे। तब से, भारत में 13 अलग-अलग प्रधानमंत्री हो चुके हैं, जिनमें खुद मोदी भी शामिल हैं। राजनीति से मोदी का पहला परिचय इंदिरा गांधी के दौर में हुआ था।

1975 में एक छात्र कार्यकर्ता के रूप में उन्होंने आपातकाल के खिलाफ संघर्ष किया था। ऐसे में अगर किसी पूर्व प्रधानमंत्री से मोदी को नाराज होना चाहिए, तो वे इंदिरा हैं। फिर इंदिरा के बजाय नेहरू क्यों उनकी बातों के केंद्र में रहते हैं?

नेहरू देश के सबसे प्रतिबद्ध ‘सेकुलर’ प्रधानमंत्री थे। यह सुनिश्चित करने की अपनी उत्कट इच्छा के चलते कि भारत कभी ‘हिंदू राष्ट्र’ या ‘हिंदू पाकिस्तान’ न बने, वे अकसर हिंदुत्ववादी ताकतों से उलझते रहते थे, उन्हें हाशिए पर डालने की हरसंभव कोशिश करते थे। महात्मा गांधी की हत्या ने हिंदू साम्प्रदायिकता को चुनौती देने के उनके संकल्प को और मजबूत कर दिया था।

उस समय, संघ के लिए नेहरू ही प्रमुख ‘शत्रु’ थे। इसके विपरीत, इंदिरा गांधी ऐसी नेता थीं, जिनके बारे में संघ को लगता था कि उनसे संवाद किया जा सकता है। यहां तक कि उनकी ‘राष्ट्रवादी’ साख के लिए उनकी सराहना भी की जा सकती है, जिसमें बाद के वर्षों में एक खास ‘सॉफ्ट हिंदू’ तत्व भी चला आया था।

संघ परिवार के प्रश्रय में पले-बढ़े मोदी के लिए नेहरू हमेशा ऐसे व्यक्ति रहे हैं, जिन्होंने भगवा भाईचारे को कुचलने की कोशिश की थी। मोदी की राजनीतिक मान्यताओं को आकार देने वाले सबसे प्रभावशाली व्यक्तियों में से एक गोलवलकर रहे हैं।

2008 में मोदी ने ज्योतिपुंज (बीम्स ऑफ लाइट) नामक पुस्तक लिखी थी, जिसमें उन्हें प्रेरित करने वाले संघ के 16 व्यक्तित्वों की जीवनियां थीं। इनमें गोलवलकर को गौरवपूर्ण स्थान दिया गया था और उनकी तुलना बुद्ध, शिवाजी और तिलक से की गई थी। 1940 से 1973 तक सरसंघचालक के रूप में अपने कार्यकाल के दौरान गोलवलकर ने नेहरू को ही मुख्य विरोधी माना था।

मोदी बनाम नेहरू समीकरण का दूसरा कारण कांग्रेस पार्टी है। नेहरू के निधन के बाद, कांग्रेस ने नेहरू को लगभग किसी दैवीय-पुरुष की तरह प्रस्तुत किया। नेहरू के इर्द-गिर्द एक स्तुति-कथा गढ़ी गई, जिसने प्रधानमंत्री के रूप में उनके 17 साल लंबे कार्यकाल पर गंभीर बहस को हतोत्साहित किया।

कांग्रेस के दौर में नेहरू के आलोचनात्मक विश्लेषण- चाहे वह समाजवाद पर हो या उनकी कश्मीर और चीन नीतियों पर- से कतराने का ही यह परिणाम था कि सत्ता में आते ही भाजपा ने नेहरूवादी विरासत को व्यवस्थित रूप से कमजोर करने का कोई मौका नहीं गंवाया।

इसी से एक तीसरा मुद्दा सामने आता है : नेहरू-गांधी वंश का उदय। नेहरू के बाद की कांग्रेस मुख्यतः एक ही परिवार के इर्द-गिर्द घूमती वंशवादी राजनीति के प्रभुत्व से आकार लेती रही है। यूं तो इंदिरा ने ही पार्टी को पारिवारिक विरासत बनाया था, फिर भी नेहरू पर ‘वंशवाद’ के प्रणेता होने का आरोप लगाया जाता रहा। जबकि वास्तविकता यह है कि उनके उत्तराधिकारी लाल बहादुर शास्त्री चुने गए थे।

न केवल नेहरू की प्रतिमाएं देशभर में खड़ी की गईं, बल्कि 2013 में आरटीआई के तहत एक उत्तर में बताया गया कि देश में 450 से अधिक योजनाओं, निर्माण परियोजनाओं और संस्थानों का नाम नेहरू, इंदिरा और राजीव के नाम पर रखा गया था। इस अंधभक्ति ने भी मोदी के नेतृत्व वाली भाजपा को नेहरू पर निशाना साधने का मौका दिया।

भारत के सबसे महान प्रधानमंत्री के रूप में पहचाने जाने की मोदी की आकांक्षा के रास्ते में अब केवल नेहरू ही खड़े हैं। लगातार सबसे लंबे कार्यकाल वाले प्रधानमंत्री के रूप में वे इंदिरा को पहले ही पीछे छोड़ चुके हैं। मोदी को इसलिए भी लगातार नेहरू पर ध्यान केंद्रित करना होगा ताकि अपने अनुयायियों को यकीन दिला सकें कि उन्होंने नेहरूवादी भारत के विचार से अलग होकर एक नए भारत का निर्माण किया है।

पुनश्च : 75 की उम्र में ‘रिटायरमेंट’ की चर्चा के दौरान हाल में मैंने एक भाजपा नेता से पूछा कि अगर कभी मोदी कुर्सी छोड़ने पर विचार करेंगे, तो कब? जवाब मिला, कम से कम 2031 तक तो नहीं, क्योंकि यही वो साल होगा, जब मोदी नेहरू को पीछे छोड़कर सबसे लंबे समय तक प्रधानमंत्री रहने वाले व्यक्ति बन जाएंगे!

भारत के सबसे महान प्रधानमंत्री के रूप में पहचाने जाने की नरेंद्र मोदी की आकांक्षा के रास्ते में अब केवल पं. नेहरू ही खड़े हैं। लगातार सबसे लंबे कार्यकाल वाले प्रधानमंत्री के रूप में वे इंदिरा गांधी को पहले ही पीछे छोड़ चुके हैं।

(ये लेखक के अपने विचार हैं)

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