N. Raghuraman’s column – Like a clock, our ‘third hand’ brings us success! | एन. रघुरामन का कॉलम: घड़ी की तरह, हमारा ‘तीसरा हाथ’ हमें सफलता दिलाता है!

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1 घंटे पहले
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एन. रघुरामन, मैनेजमेंट गुरु
हम सभी जानते हैं कि सटीक समय बताने के लिए घड़ी को तीन सुइयों की आवश्यकता होती है- घंटा, मिनट और सेकंड। इसी तरह से कई लोग जानते होंगे कि किसी चुनौतीपूर्ण परियोजना को समय पर अच्छी तरह से पूरा करने के लिए हम इंसानों को भी तीन हाथों की जरूरत होती है। लेकिन हममें से ज्यादातर दो ही हाथों का इस्तेमाल करते हैं और तीसरे की मदद नहीं लेने के कारण समय से काम पूरा नहीं कर पाते।
ऐसे में बात जब किसी ज़रूरी परियोजना को पूरा करने की हो तो यही तीसरा हाथ, एक सफल व्यक्ति को, पूरी कोशिश करने के बावजूद असफल रह गए व्यक्ति से अलग बनाता है। यह सच है कि किसी परियोजना को समय पर पूरा करने के लिए ‘समय’ और ‘धन’ दो महत्वपूर्ण फैक्टर हैं। लेकिन मैं एक और पहलू की ओर ध्यान आकर्षित कराना चाहता हूं, जो वास्तव में इन दोनों को बहुत सफल बना देता है।
ऐसा नहीं है कि मैं समय और धन के महत्व को कम कर रहा हूं। मैं मानता हूं कि दोनों ही महत्वपूर्ण हैं। लेकिन तीसरे फैक्टर के बिना कई बार वो वांछित परिणाम नहीं दे पाते हैं। सर्वोच्च न्यायालय (एससी) के हाल ही के एक फैसले पर मेरे कुछ तर्क इस प्रकार हैं।
दिल्ली और एनसीआर क्षेत्र में आवारा कुत्तों के संबंध में सुप्रीम कोर्ट के आदेश ने एक गंभीर बहस छेड़ दी है। कुछ ने इसे लोगों की सुरक्षा के लिए जरूरी बताया है, वहीं कुछ ने इसे जानवरों के प्रति अमानवीय बताते हुए इसकी निंदा की है। अदालत ने अधिकारियों को निर्देश दिया है कि वे आवारा कुत्तों को तुरंत पकड़ें, उनके लिए शेल्टर्स बनाएं और उन्हें सार्वजनिक स्थानों पर वापस आने से रोकें।
मैं 2014 का एक उदाहरण देना चाहता हूं, जब गोवा- जो देश के सबसे छोटे राज्यों में से एक है और आज भी पर्यटन से होने वाली कमाई पर निर्भर रहता है- में रेबीज का खतरा बढ़ गया था। उस साल कम से कम 17 लोगों की इस वायरस से मौत हो गई थी।
इसके अलावा, स्थानीय नगरीय निकायों के पास कुत्तों की संख्या का कोई डेटा नहीं था। यही वह समय था, जब मिशन रैबीज सक्रिय हुआ। यह पायलट निगरानी परियोजना वाला एक विश्वव्यापी पशु चिकित्सा सेवा एनजीओ था।
उन्होंने गोवा में दो मुख्य उद्देश्यों को ध्यान में रखते हुए एक कार्यक्रम तैयार किया- रेबीज के उन्मूलन के लिए टीकाकरण, ताकि कुत्तों और इंसानों दोनों को बचाया जा सके और कुत्तों को आगे प्रजनन करने से रोकने के लिए उनका स्टरिलाइजेशन।
तब से गोवा में रेबीज के टीके की 4,00,000 से अधिक खुराकें भेजी जा चुकी हैं, जिससे यह भारत में अब तक का सबसे अधिक समय तक जारी रहने वाला रेबीज नियंत्रण प्रयास बन गया है। इस अभियान का उद्देश्य राज्य के अधिकांश कुत्तों को हर साल रेबीज का टीका लगवाना था। इसके तहत तमाम स्कूली बच्चों को भी रैबीज के खतरों के प्रति जागरूक किया गया।
सबसे अच्छी बात यह है कि कहां से शुरू करें, यह सोचने के बजाय वे 30 दिनों में 50,000 कुत्तों का टीकाकरण करने का लक्ष्य लेकर सड़कों पर उतर पड़े थे। ध्यान दीजिए कि समय सीमा बहुत कम थी। लेकिन महीने के अंत तक, 16 अलग-अलग देशों के 500 से ज्यादा पशु चिकित्सकों ने स्थानीय टीमों के साथ मिलकर 63,000 कुत्तों का टीकाकरण किया और इस तरह लक्ष्य से ज्यादा हासिल कर दिखाया! उन्होंने यह कैसे किया? उन्होंने अपना काम करने और लक्ष्य हासिल करने पर ध्यान केंद्रित किया था, बस।
यही लय अगले साल राज्य की नीति में भी नजर आई। 2015 में, दिवंगत और तत्कालीन मुख्यमंत्री मनोहर पर्रिकर ने मिशन रेबीज के साथ एक एमओयू साइन किया, जिसके तहत पूरे राज्य में व्यापक टीकाकरण और स्टरिलाइजेशन अभियान शुरू हुआ।
इसके बाद, गोवा में 24 घंटे रेबीज निगरानी, आपातकालीन हॉटलाइन, त्वरित प्रतिक्रिया दल बनाने की शुरुआत हुई और हर तालुके में फैले स्वयंसेवक, कुत्तों का टीकाकरण और स्टरिलाइजेशन कर रहे थे और डॉग-बाइट के शिकार लोगों की सहायता कर रहे थे।
सितंबर 2017 से गोवा में मनुष्यों में रेबीज के मामले लगभग समाप्त हो गए। कोविड के दौरान भोजन की कमी के कारण सीमावर्ती राज्यों से कुछ कुत्ते पलायन करके गोवा चले आए। राज्य ने 2021 से फिर से बड़े पैमाने पर स्टरिलाइजेशन अभियान चलाया, जिसमें उन्होंने जहां केवल 2,265 कुत्तों की नसबंदी की थी, वहीं वे 2024-2025 में 12,085 कुत्तों की नसबंदी करने में सफल रहे। इस प्रकार कुल स्टरिलाइजेशन का आंकड़ा 40,000 को पार कर गया।
फंडा यह है कि अगर फोकस न हो तो समय और पैसे का असर थोड़ा कम हो जाता है। फोकस ही वह तीसरा हाथ है, जिससे न केवल समय और पैसे पूरे असरदार तरीके से काम कर पाते हैं, बल्कि इससे किसी प्रोजेक्ट को समय पर अच्छे से पूरा करने में भी मदद मिलती है।
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