Wednesday 08/ 10/ 2025 

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N. Raghuraman’s column – Be a detective for your child’s mental, physical safety | एन. रघुरामन का कॉलम: अपने बच्चे की मानसिक, शारीरिक सुरक्षा के लिए जासूस बनें

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38 मिनट पहले

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एन. रघुरामन, मैनेजमेंट गुरु - Dainik Bhaskar

एन. रघुरामन, मैनेजमेंट गुरु

किसी सिक्के की तरह समाज के भी दो पहलू होते हैं। अच्छा पहलू सराहना योग्य है, जबकि बुरा पहलू कभी-कभार डरावना होता है। सोशल मीडिया पर हाल ही एक ऐसी घटना वायरल हुई, जिससे आप कांप उठेंगे।

जैसा आमतौर पर युवा कामकाजी माता-पिता वाले हर परिवार में होता है, इन माता-पिता ने भी 4 अगस्त को अपनी 15 महीने की छोटी बच्ची को नोएडा के सेक्टर 137 के उस आवासीय परिसर स्थित डे-केयर सेंटर में छोड़ा, जहां वे रहते थे। इस सेंटर में बच्ची रोज 2 घंटे रहती थी। उस दिन जब मां ने बच्ची को सेंटर से वापस लिया तो वो रो रही थी।

मां ने देखा कि बच्ची की जांघ पर अजीब निशान थे। वह तत्काल उसे डॉक्टर के यहां लेकर गई, जिसने बताया कि ये काटने के निशान हैं। मां ने डे-केयर सेंटर वापस आकर सीसीटीवी फुटेज देखे। उसने क्या देखा कि बच्ची की देखभाल के लिए रखी गई एक टीन-एज अटेंडेंट कथित तौर पर उसे थप्पड़ मारती, मारपीट करती और फर्श पर पटकती दिख रही है। यहां तक कि बच्ची दर्द से चीख रही थी। 10.28 मिनट के वीडियो में दिखा कि अटेंडेंट बच्ची को गोद में लेकर सेंटर के एक कमरे का दरवाजा बंद कर रही है।

पहले उसने फर्श पर पड़े हरे रंग के प्लास्टिक बैट को पैर से उठाया और कथित तौर पर बच्ची के सिर पर कई दफा मारा। फिर वो कमरे में घूम-घूमकर बच्ची का सिर दीवार पर मार रही है और बाद में उसे फर्श पर पटक दिया। फुटेज में वो बच्ची को थप्पड़ मारती भी दिखी। महज 10 दिन पहले ही डे-केयर सेंटर जॉइन करने वाली इस अटेंडेंट को पुलिस ने पकड़कर स्वास्थ्य परीक्षण के लिए भेज दिया।

हालांकि अधिकांश डे-केयर सेंटर बच्चों को सुरक्षित व देखभाल भरा माहौल देने की कोशिश करते हैं, फिर भी दुर्व्यवहार-अनदेखी के मामले होते हैं। अधिकांश माता-पिता भी शारीरिक-लैंगिक तौर पर नुकसान के प्रति तो सचेत होते हैं, लेकिन उन्हें कई दूसरे प्रकार के नुकसानों की निगरानी व आकलन का समय नहीं मिलता। ऐसे कुछ क्षतियां यहां पेश हैं।

1. भावनात्मक क्षति: इसमें मौखिक दुर्व्यवहार, डराना-धमकाना या ऐसे कार्य शामिल हो सकते हैं, जो बच्चे के भावनात्मक स्वास्थ्य पर विपरीत असर डालते हैं।

2. उपेक्षा: इसमें पर्याप्त देखरेख, चिकित्सा जरूरतों की पूर्ति और सुरक्षित वातावरण बनाए रखने जैसी चीजों में विफलता शामिल हो सकती है।

3. लापरवाही भरी निगरानी: इसमें देखरेख की लापरवाही शामिल है, जिसके कारण दुर्घटना और चोट लग सकती है।

4. असुरक्षित वातावरण: इसमें विषाक्त चीजें, खेलने का असुरक्षित स्थान, गंदगी जैसे जोखिम हो सकते हैं।

इन्हें कैसे पहचानें? ऊपर दिए गए मामले में बच्चे को आई चोटों को दुर्व्यवहार या अनदेखी के संभावित संकेतों के तौर पर देखा जा सकता है। इसके अलावा माता-पिता को बच्चे के व्यवहार में आए बदलावों जैसे डर,आक्रामकता, अलगाव के प्रति सावधान रहना चाहिए। ये भी ध्यान देना चाहिए कि बच्चे को सोने में तकलीफ या डरावने सपने तो नहीं आ रहे।

हमेशा ध्यान रखें कि डे–केयर सेंटर जाने में बच्चा हिचक रहा है तो इसकी जांच भी गंभीरता से की जानी चाहिए कि क्या ऐसा लंबे समय वहां रुकने के कारण है या कारण कुछ और है? विकासात्मक मानकों पर बच्चा पिछड़ रहा है तो भी देखना चाहिए। माता-पिता और क्या कर सकते हैं? संभावित डे-केयर सेंटरों पर गहन रिसर्च करें। उनके लाइसेंस व कर्मचारियों की योग्यता जांचें।

वास्तव में आपको केयरगिवर्स से खुला संवाद करना चाहिए, जिसमें अपनी हर चिंता बताएं। बिना बताए डे-केयर सेंटर जाएं। वहां के वातावरण-केयरगिवर्स व बच्चों के बीच हो रहे संवाद देखें। बच्चे के व्यवहार पर करीब से ध्यान दें, किसी भी उपेक्षा या दुर्व्यवहार के संकेत देखें। यदि डे-केयर के बारे में अच्छी फीलिंग नहीं है, तो मन की बात पर भरोसा कर वैकल्पिक व्यवस्था करना बेहतर होगा।

फंडा यह है कि जब तक आपका बच्चा खुलकर अपनी बात कहने की उम्र तक ना पहुंच जाए, सहजता से उसके लिए एक जासूस जैसे बने रहें।

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