N. Raghuraman’s column – Are kids growing out of ‘pickleball’ parenting now? | एन. रघुरामन का कॉलम: क्या बच्चे अब ‘पिकलबॉल’ पैरेंटिंग से बड़े हो रहे हैं

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3 घंटे पहले
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एन. रघुरामन मैनेजमेंट गुरु
मेरे पीछे बैठी एक युवा मां ने अपना बच्चा सास को सौंपते हुए कहा, ‘मैं वॉशरूम से आती हूं।’ जैसे ही बच्चा दूसरे हाथों में गया, रोने लगा। मां कुछ मिनट बाद जल्दी से लौटी और बोली, ‘यह अब भी क्यों रो रहा है?’
दादी ने शांतिपूर्वक जवाब दिया कि ‘नवजात बच्चे यदि रोते हैं तो इसमें कुछ भी गलत नहीं।’ इस जवाब से चिढ़ी युवा मां बोली, ‘कुछ भी।’ बच्चे को चुप कराने के लिए उसने तुरंत उसके मुंह में पेसिफायर डाल दिया। वह बोली, ‘दूसरे लोग क्या सोचेंगे?’
दादी ने कहा, ‘जैसे उन्हें तो पता ही नहीं कि बच्चे कैसे पाले जाते हैं और तुमने आठ हफ्तों में ही परवरिश की महारत हासिल कर ली।’ इसके बाद उनके बीच हुई हर बातचीत सामान्य हो गई। जैसे, ‘फीडिंग कैसी चल रही है? ठीक है। क्या तुम सो पाती हो? मुश्किल से।’ अचानक मुम्बई में भारी बारिश के कारण फ्लाइट में विलंब की घोषणा हुई और मैं सास-बहू के बीच हुई आगे की बातचीत नहीं सुन पाया।
घोषणा की आवाज धीमी पड़ी तो मैंने मां को कहते सुना कि ‘यह बच्चे के लिए अच्छा नहीं है।’ मुझे लगा कि अब धैर्य टूट चुका है। आवाजें कंपकंपाने लगीं। हो सकता घोषणा के दौरान उनकी बातचीत इतनी तनावपूर्ण हो गई कि बाद में उसने धैर्य की सीमाएं तोड़ दीं। फिर उनमें कोई बात नहीं हुई। जब मैं सिर के ऊपर बने केबिन से किताब लेने उठा तो देखा कि एक की आंखें नम थीं, जबकि दूसरी खिड़की से बाहर आसमान निहार रही थीं।
मैंने महसूस किया कि जब मिलेनियल्स (1981 और 1996 के बीच जन्मे लोग) अपने बेबी बूमर्स (1946 और 1964 के बीच जन्मे) माता-पिता से इस बात पर उलझते हैं कि बच्चे की परवरिश कैसे हो- तो यह भारतीय परिवारों में सर्वाधिक तनाव के क्षण होते हैं। इससे मुझे सोचने पर मजबूर किया कि 1950 से 2025 तक पैरेंटिंग में कैसे बदलाव हुए। कुछ तरीके यहां पेश हैं।
जेंटल पैरेंटिंग : यह परवरिश की ऐसी शैली है, जिसमें बढ़ते बच्चों में सहानुभूति, समझ और सम्मान पर जोर दिया जाता है। इसमें बच्चे की जरूरतों के प्रति जिम्मेदार होना, उनके व्यक्तित्व को पहचानना और संचार, मान्यता एवं मर्यादाएं निर्धारित करके उनके भावनात्मक विकास को बढ़ावा देना शामिल है। जेंटल पैरेंटिंग ऐसी परवरिश नहीं, जिसमें बच्चों को बहुत छूट दी जाती है। इसमें अब भी अपेक्षाएं और मार्गदर्शन देना शामिल है। लेकिन यह सजा के बजाय भावनात्मक जुड़ाव और सिखाने पर जोर देती है।
फ्री-रेंज पैरेंटिंग : फिर इस शैली ने जोर पकड़ा, जो बच्चों को अधिक स्वतंत्रता और बिना निगरानी वाला समय देने पर जोर देती है। ताकि आयु संबंधी सीमाओं के भीतर वे खुद खोजबीन कर सकें और अनुभवों से सीख सकें। यह आत्मनिर्भरता, समस्या-समाधान के कौशल और परिस्थिति के मुताबिक दृष्टिकोण अपनाने से संबंधित है। इसमें प्रत्यक्ष निगरानी धीरे-धीरे कम करके बच्चों को खुद चुनौतियों से निपटने का अवसर दिया जाता है।
टाइगर पैरेंटिंग : यह एक कठोर, डिमांडिंग और अत्यधिक अंकुश वाली परवरिश है, जो शिक्षा और पाठ्येत्तर गतिविधियों में उच्च स्तर हासिल करने पर केंद्रित है। इसमें बच्चों की निजी पसंद और भावनात्मक स्वास्थ्य की कीमत पर उन्हें पढ़ाई, संगीत या खेल जैसे क्षेत्रों में उत्कृष्टता की ओर धकेला जाता है। यह नजरिया अनुशासन, उच्च अपेक्षाओं के साथ पारिवारिक दायित्व और शैक्षणिक उपलब्धियों पर जोर देता है।
हैलीकॉप्टर पैरेंटिंग : यह हाल ही में लोकप्रिय हुई। इसमें जरूरत से अधिक संरक्षण और अत्यधिक सहभागिता शामिल है। इसमें माता-पिता बच्चे के जीवन पर निगरानी और नियंत्रण रखते हैं। माता-पिता बच्चे के सिर पर किसी हैलीकॉप्टर की भांति मंडराते हैं। बच्चे की सुरक्षा और सफलता को लेकर अत्यधिक चिंतित रहते हैं। विशेषज्ञों का कहना है इससे कभी-कभी बच्चे की स्वतंत्रता और अनुभवों से सीखने की क्षमता को नुकसान होता है।
फंडा यह है कि लगता है, जैसे वर्तमान बच्चे ‘पिकलबॉल पैरेंटिंग’ में बड़े हो रहे हैं, जिसमें ऊपर बताईं विधियों के सभी नजरिए इस्तेमाल होते हैं। जैसे पिकलबॉल खेल टेनिस, बैडमिंटन, पिंग-पॉन्ग, स्क्वैश और टेबल टेनिस को जोड़कर बनता है। कृपया मुझे लिखें कि यह अच्छा है या नहीं?
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