Wednesday 08/ 10/ 2025 

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Shekhar Gupta’s column – Our Air Force’s focus is on results | शेखर गुप्ता का कॉलम: हमारी वायुसेना का जोर नतीजों पर रहता है

3 घंटे पहले

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शेखर गुप्ता, एडिटर-इन-चीफ, ‘द प्रिन्ट’ - Dainik Bhaskar

शेखर गुप्ता, एडिटर-इन-चीफ, ‘द प्रिन्ट’

अब जबकि भारतीय वायुसेना (आईएएफ) और पाकिस्तानी वायुसेना (पीएएफ) ने मई महीने में 87 घंटे की लड़ाई में एक-दूसरे के मार गिराए गए विमानों की संख्या के अपने-अपने औपचारिक दावे पेश कर दिए हैं, तब हम कुछ व्यापक मसलों पर चर्चा कर सकते हैं।

भारत-पाकिस्तान के बीच सारे युद्ध और संघर्ष छोटी अवधि के ही रहे हैं। सबसे लंबी लड़ाई भी 22 दिन ही चली थी- 1965 में। ऑपरेशन सिंदूर महज 3 दिन चला। जिस भी लड़ाई में हार मान लेने या सामूहिक आत्मसमर्पण जैसा निर्णायक नतीजा नहीं निकलता, उसमें जीत के दावे करने की गुंजाइश रहती है।

हम भारतीय लोग यह मानते हैं कि हमने पाकिस्तान से हर छोटी-बड़ी लड़ाई जीती है, लेकिन हम यह भी कबूल करते हैं कि 1962 में हम चीन से हार गए थे। इसी तरह पाकिस्तान वाले कबूल करते हैं कि 1971 में उनकी हार हुई थी। पूर्वी सेक्टर में उनकी हार के साथ हथियार डालने वाले 93,000 सैनिकों को युद्धबंदी भी बनाया गया था। अब आप पूछिए कि 1971 में किसकी वायुसेना के कितने विमान पूर्वी सेक्टर में मार गिराए गए थे?

इतिहासकारों ने विमानों के टेल नंबरों और पायलटों के नामों के साथ संख्या का खुलासा कर दिया है कि भारत को 13 और पाकिस्तान को 5 विमान गंवाने पड़े थे। ये नुकसान लड़ाई में हुए थे, किसी हादसे के कारण नहीं। वहीं युद्ध के पांचवें दिन पीएएफ के पायलट 11 सेबर विमानों को छोड़कर एक असैनिक परिवहन साधन का इस्तेमाल करते हुए बर्मा भाग गए थे।

और आईएएफ ने 13 विमान कैसे गंवाए? दो विमान हवाई युद्ध में गंवाए, जैसे पीएएफ ने 5 विमान गंवाए। बाकी विमान जमीन से छोटे हथियारों द्वारा निशाना बनाकर मार गिराए गए। आईएएफ के लिए युद्ध पीएएफ की हार के साथ समाप्त नहीं हो गया था। वह जीत को जल्दी से पक्की करने और कम से कम सैनिकों के हताहत होने के लिए जमीनी सेना की सहायता में जुट गई थी।

गिराए गए 13 में से 11 विमान नीची उड़ान भरते हुए जमीनी हमले के शिकार हुए। दोनों देशों की वायुसेनाओं में यही मूल अंतर है। एक वायुसेना सुरक्षात्मक हवाई युद्ध पर जोर देती है, तो दूसरी व्यापक राष्ट्रीय प्रयास के हिस्से के रूप में पूर्ण आक्रामक कार्रवाई पर जोर देती है। जैसा कि एयर मार्शल एके भारती ने एक प्रेस वार्ता में कहा, युद्ध में नुकसान तो होता ही है। पीएएफ आंकड़ों पर जोर देती है, आईएएफ नतीजे पर।

पीएएफ और पाकिस्तानी जनमत के लिए सिर्फ यह महत्वपूर्ण है कि उसने कितने विमान मार गिराए। इसलिए आश्चर्य नहीं कि ऑपरेशन सिंदूर के बाद पाकिस्तान में हुए एक सर्वे ने जाहिर किया कि 96 फीसदी पाकिस्तानी मानते हैं कि ‘जंग’ उन्होंने जीत ली है।

लोगों के जोश का यह हाल है कि आर्मी-चीफ को हास्यास्पद रूप से पांचवें स्टार से सज्जित कर दिया गया है। जबकि वायुसेना के चीफ का कार्यकाल उसी पद पर अनिश्चित काल के लिए बढ़ाकर उन्हें सांत्वना पुरस्कार दिया गया है। नौसेना चीफ के लिए आप सहानुभूति महसूस कर रहे होंगे।

यह दोनों वायुसेनाओं में मूल सैद्धांतिक अंतर को उजागर करता है। पीएएफ एक ‘सुपर डिफेंसिव’ बॉक्सर जैसी है, जो दस्तानों के बीच अपना चेहरा छिपाए प्रतिद्वंद्वी बॉक्सर के हमले का इंतजार करता चहलकदमी करता रहता है कि कब मौका मिले और वह घूंसा जमाए।

इसके विपरीत आईएएफ ऐसे बॉक्सर की तरह है, जो कुछ घूंसे खाने की परवाह न करते हुए प्रतिद्वंद्वी पर टूट पड़ने के सिद्धांत पर चलता है। पीएएफ अगर जोखिम से बचने में यकीन करती है, तो आईएएफ जोखिम उठाने में। और यह वह शुरू में अक्सर कुछ नुकसान उठाकर अपने प्रशंसकों को निराश करने की कीमत पर भी करती है। लेकिन अंततः भारत की ही जीत होती है। एअर मार्शल भारती ने बड़ी शांति से यह कहकर इस सोच को रेखांकित किया कि युद्ध में नुकसान उठाना ही पड़ता है।

इतिहास बताता है कि पीएएफ अपने प्रदर्शन को हवाई जंग में हासिल किए गए अपने ‘स्कोर’ के आधार पर आंकती रही है, चाहे जंग का जो भी नतीजा निकला हो। उसका सोच सीमित है- आईएएफ के खिलाफ ऐसी रक्षात्मक लड़ाई लड़ो कि उसे ज्यादा नुकसान हो।

इतिहास बताता है कि उसका अपना लक्ष्य सीमित रहा है, जबकि बड़ा लक्ष्य प्रायः ओझल होता रहा है। जबकि लंबी हो या सीमित, कोई भी जंग वायुसेना, थलसेना या नौसेना केवल अपनी दुश्मन वायुसेना, थलसेना या नौसेना से ही नहीं लड़ती। मुख्य बात यह होती है कि आपके राष्ट्र के लक्ष्य क्या हैं, और क्या आपने उन्हें हासिल करने के लिए सेनाओं को सक्षम बनाया?

ऑपरेशन सिंदूर के तीन लक्ष्य थे। एक, मुरीदके में लश्कर-ए-तय्यबा के कुख्यात मुख्यालय और बहावलपुर में जैश-ए-मोहम्मद के मुख्यालय को नेस्तनाबूद करना। दूसरे, पाकिस्तानी सेना की ओर से किसी जवाबी हमले को रोकना और अपनी रक्षा करना। और तीसरे, अगर पाकिस्तान डटा रहता है तो उसे प्रदर्शनीय जवाब देना। आईएएफ ने तीनों लक्ष्यों को पूरा किया।

हकीकत यह है कि 15 दिन पहले दी गई चेतावनी के बावजूद पीएएफ अपने ठिकानों की रक्षा करने में विफल रही। आईएएफ को रोकना तो दूर, वह उसके हमलों में खलल भी नहीं डाल सकी। 8 मई को वह हारोप/हार्पी ड्रोनों के हमलों से कई अहम एयर डिफेंस तथा ‘एसएएम’ सिस्टम्स की रक्षा करने में भी विफल रही।

उसकी एयर डिफेंस सिस्टम जोखिम से बचाव के लिए स्विच-ऑफ थी, इसलिए 10 मई को मानो वह बंकर में सो रही थी। आईएएफ के विमान पीएएफ के ठिकानों, एअर डिफेंस के स्थलों और अहम हथियारों के भंडारों पर मिसाइलों से हमले कर रहे थे, पीएएफ उन्हें चुनौती तक देने के लिए कभी आगे नहीं आई। आप निश्चित मान सकते हैं कि अगर ये हमले एक दिन और जारी रहते तो सिंधु के पश्चिम में उसके सभी अड्डे निशाने पर आ जाते। पीएएफ मुकाबले में कहीं नहीं थी।

पाकिस्तान से लड़ाई में जीत भारत की ही होती है… पाकिस्तान की वायुसेना अगर जोखिम से बचने में यकीन करती है, तो भारत की वायुसेना जोखिम उठाने में। और यह वह शुरू में अक्सर कुछ नुकसान उठाकर अपने प्रशंसकों को निराश करने की कीमत पर भी करती है। लेकिन अंततः भारत की ही जीत होती है। (ये लेखक के अपने विचार हैं)

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