Wednesday 08/ 10/ 2025 

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Rashmi Bansal’s column – Because love is reflected in discipline and culture, remember this | रश्मि बंसल का कॉलम: क्योंकि अनुशासन और संस्कार में झलकता है प्यार, इसे याद रखें

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10 घंटे पहले

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रश्मि बंसल, लेखिका और स्पीकर - Dainik Bhaskar

रश्मि बंसल, लेखिका और स्पीकर

जब पहले सुना कि “क्योंकि सास…’ फिर टीवी पर आने वाला है, तो मुझे हंसी आई। कौन देखेगा ऐसा शो, पच्चीस साल बाद? समय बदल गया, लोग बदल गए। लेकिन पता चला कि इस सीरियल ने फिर से रिकॉर्ड तोड़ दिया है। ​आखिर ऐसा क्या है विरानी परिवार की कहानी में, जो दर्शकों के दिल-दिमाग को छू गया?

तो भाई, मैंने भी देखना शुरू किया। और सबसे पहली, सबसे अच्छी बात मुझे यह लगी कि तुलसी विरानी के कैरेक्टर ने सचमुच एक सास का रूप ले लिया है। जहां 55 की उमर में भी हर एक्ट्रेस सर्जरी के सहारे 25 की दिखना चाहती है, स्मृति ईरानी का एक अलग अंदाज है।

हां, मैं पहले जैसी नहीं हूं, मेरा शरीर भारी हो गया है। इस बात का स्क्रिप्ट में भी जिक्र है कि मिहिर तो आज भी फिट है- “जब तुलसी के साथ खड़ा होता है तो जोड़ी अटपटी लगती है’- ऐसी किसी ने टिप्पणी भी दी। लेकिन मिहिर समझदार है, वो अंदर की बात समझता है।

तुलसी परिवार की देखभाल में लगी है, सबको खुश रखती है। उसने अपने को इम्पोर्टेंस कभी दी नहीं। इसका असर उसकी हेल्थ पर पड़ा है। हमारे घरों में ना जाने कितनी मम्मियां हैं, जो तुलसी के जैसे जी रही हैं, परिवार की खुशी के लिए। तो यह कैरेक्टर काफी सच्चा है, और रिलेटेबल भी।

दूसरा, विरानी परिवार एक आलीशान मकान में रहता है, जो मुम्बई में नामुमकिन है। लेकिन इस बात को इग्नोर करें तो बाकी चीजें पहले से काफी रियलिस्टिक हैं। किचन में लोग शादी वाले कपड़े पहनकर काम नहीं कर रहे। अब तो एक हेल्पर भी है- मुन्नी।

तीसरा यह कि सीरियल में मनोरंजन है, हंसी-मजाक है, खुशी और गम है। पर इन सब के पीछे कुछ संदेश भी। जैसे 19 80 और 19 90 के दशक में सीरियल्स में होता था। उस वक्त का “हम लोग’ आज भी याद है, हर एपिसोड के अंत में अशोक कुमार प्रकट होकर कुछ सीख देते थे।

“क्योंकि सास…’ में कोई ऐसा डायरेक्ट ज्ञान नहीं है, पर दर्शक समझ जाते हैं। बड़ों का आदर कीजिए, संस्कारों का पालन कीजिए, भगवान में आस्था रखो, सच्ची राह पर चलो… यह वो सारी चीजें हैं, जिन्हें आज हम “क्लीशे’ मानते हैं। कि यार कलयुग में यह सब नहीं चलता।

आज ओटीटी पर हमें देखने को मिल रहे हैं सीरियल- जो स्कैमस्टर्स और क्रिमिनल्स के जीवन को ग्लैमराइज करते हैं। एक औरत, जिस पर अपनी बेटी की हत्या का इल्जाम है, उस पर भी फिल्म बनी है। इन चैनल्स ने मान लिया है कि हम ऐसी गंदगी ही देखना चाहते हैं। अखबारों में भी ज्यादातर खबरें ऐसी छपती हैं, जो दिल दहला दें।

आम जिंदगी की छोटी खुशियां, लोगों के अच्छे काम, मदद करने वाले इंसान- इनकी कहानियां हमें सुनने को मिलती नहीं। खैर, यह नहीं कि सही रास्ते पर चलना आसान है। तुलसी जब अपने बेटे की बेल करने से मिहिर को रोकती है, तो कोई उसका नजरिया समझ नहीं पाता। लेकिन आखिर होती है सच की जीत। यही सीख रामायण और महाभारत में थी, लेकिन हर पीढ़ी को बार-बार, लगातार याद दिलानी पड़ती है।

सीरियल के लेखक ने एक ऐसा सिचुएशन लिया है, जो काफी कॉमन है- देर रात लौटते वक्त एक रईसजादे की गाड़ी का एक्सीडेंट। असली दुनिया में जब हुआ, लड़के की मां ने ब्लड टेस्ट के लिए अपना खून दे दिया, ताकि लड़का पीकर गाड़ी चला रहा है, ऐसा साबित ना हो पाए।

दूसरी ओर तुलसी विरानी अपने बेटे से ज्यादा उस लड़के की चिंता में डूबी है, जो अस्पताल में है। हां, यह थोड़ा “फिल्मी’ है, लेकिन मैंने मन ही मन सोचा, मां हो तो ऐसी। जिसके कुछ सिद्धांत हों, जो प्यार के मायाजाल में फंसकर ना रह जाए। पता नहीं, मुझ में भी इतनी शक्ति है या नहीं, लेकिन ऐसे कैरेक्टर को मेरा नत-मस्तक।

छोटी-सी बात- क्या स्कूल में हर छोटी बात पर आप शिकायत करने पहुंच जाती हैं? यह मानकर कि मेरे लड़के के साथ किसी टीचर ने ज्यादती की है। लेकिन अगर आपके बच्चे से गलती हुई हो तो? ऐसे में थोड़ी डांट पड़े तो आगे चलकर उन्हीं का फायदा होगा। क्योंकि डिसिप्लिन और संस्कार में झलकता है प्यार। इस बात पर गांठ बांध लीजिए। (ये लेखिका के अपने विचार हैं)

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