Pt. Vijayshankar Mehta’s column- If there is confusion, one should attend satsang, one will get the solution | पं. विजयशंकर मेहता का कॉलम: भ्रम हो तो सत्संग कर लेना चाहिए, निदान मिल जाएगा

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1 घंटे पहले
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पं. विजयशंकर मेहता
सुख, सफलता, सुर्खियों, साजिश के दौर में भ्रम हो जाना कोई बड़ी बात नहीं है। अच्छे-अच्छों को गलतफहमी हो जाती है कि हम सब कर सकते हैं। लेकिन यदि भ्रम हो और उसको मिटाना चाहें, तो दो तरीके हैं। या तो किसी धर्मग्रंथ का सत्संग कर लें, या किसी संत का सान्निध्य प्राप्त कर लें।
राम कथा में श्री राम जब शक्ति से बंधे तो गरुड़ ने उनके बंधन खोले। और गरुड़ जी को यहीं से गलतफहमी हो गई कि ये सेवा मैंने की है, और वो भी श्री राम की। उनको जो गलतफहमी हुई, उसकी चर्चा शिव जी ने पार्वती से की- खेद खिन्न मन तर्क बढ़ाई, भयउ मोहबस तुम्हरिहिं नाई। गरुड़ जी ने अपने मन को समझाया, लेकिन भ्रम बहुत अधिक हो गया था।
तो दु:ख से दु:खी होकर, मन में कुतर्क बढ़ाकर वे तुम्हारी ही भांति मोहवश हो गए। शिव जी की यह पंक्तियां हमारे लिए बड़े काम की हैं। इस संसार में हम बहुत सारे ऐसे काम करेंगे कि हमें भ्रम हो सकता है कि हमने यह किया। तुरंत सत्संग कर लेना चाहिए, निदान मिल जाएगा।
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