Shekhar Gupta’s column – Punjab needs more attention | शेखर गुप्ता का कॉलम: पंजाब पर ज्यादा ध्यान देने की जरूरत है

4 घंटे पहले
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शेखर गुप्ता, एडिटर-इन-चीफ, ‘द प्रिन्ट’
1 सितंबर को तियानजिन से लौटते ही प्रधानमंत्री ने अफगानिस्तान में आए भूकंप पर शोक जताते हुए एक ट्वीट किया। तभी उन्हें एक ट्वीट में जवाब मिला। यह जवाब अकाल तख्त और तख्त श्री दमदमा साहिब गुरुद्वारा के पूर्व मुख्य ग्रंथी ज्ञानी हरप्रीत सिंह की ओर से था। वे सिख राजनीति में नेतृत्व के रूप में खुद को देखते हैं, जो शिरोमणि अकाली दल की अंदरूनी दरारों से खतरनाक रूप से टूटी हुई है।
वे नवां (नया) अकाली दल के प्रमुख के रूप में जगह बनाने की कोशिश कर रहे हैं। हालांकि वे इसे अलग गुट कहने पर आपत्ति जताते हैं। उनका कहना है कि असल में सुखबीर सिंह बादल का अकाली दल अलग हुआ है। सिख राजनीति में तीसरी ताकत अमृतपाल सिंह का शिरोमणि अकाली दल (वारिस पंजाब दे) है। इन हालात का खतरनाक ताकतें, खासकर आईएसआई फायदा उठा रही हैं।
ज्ञानी जी अकसर ट्वीट करते हैं और लगभग हमेशा पंजाबी (गुरुमुखी) में ही ऐसा करते हैं। फिलहाल उनकी टाइमलाइन पंजाब में बाढ़ की तबाही के विजुअल्स से भरी है। नई दिल्ली का विरोध सिख राजनीति का केंद्रीय मुद्दा है। ज्ञानी जी ने प्रधानमंत्री के अफगानिस्तान वाले ट्वीट को तुरंत पकड़ा और इस बार अंग्रेजी में लिखा- माननीय प्रधानमंत्री, अफगानिस्तान के लिए सहानुभूति जताना अच्छा है, लेकिन पंजाब भी इसी देश का हिस्सा है, जहां 17 अगस्त से करीब 1,500 गांव और 3 लाख लोग बुरी तरह प्रभावित हुए हैं।
हमें पता है कि प्रधानमंत्री ने लौटते ही पंजाब के मुख्यमंत्री भगवंत मान से बात की और हर तरह के सहयोग का वादा किया। केंद्रीय कृषि मंत्री शिवराज सिंह चौहान बाढ़ प्रभावित इलाकों में हैं, ज्यादातर समय पैदल, कई बार घुटनों तक पानी में, उखड़ी हुई फसलों को देखते हुए, यहां तक कि कभी-कभी किसी पौधे को फिर से लगाने की कोशिश भी करते हुए।
लेकिन डूबता हुआ पंजाब दशकों में अपने सबसे मुश्किल दौर से गुजर रहा है। वे अपने राज्य में प्रधानमंत्री की मौजूदगी की उम्मीद करते हैं, भले ही वे उस भाजपा से हों, जिसे पंजाब में सिख आम तौर पर वोट नहीं देते। यह पहले से ही अलगाव को बढ़ावा दे रहा है, जो तीन कृषि कानूनों के खिलाफ आंदोलन के बाद से ही पनप रहा है।
भाजपा सबकुछ जीतने की सोच रखने वाली पार्टी है। वो हर उस राज्य में जीतना चाहती है, जहां अब तक उसकी पकड़ नहीं रही। तमिलनाडु, तेलंगाना, केरल और पश्चिम बंगाल उसकी आकांक्षा बने रहे हैं। असम, त्रिपुरा और मणिपुर को उसने दशकों की मेहनत और संघ प्रचारकों की कोशिशों से जीता है। तो पंजाब क्यों नहीं?
पंजाब की दूरी भाजपा को परेशान करती है। अब तक सिर्फ एक बार ही वे यहां सत्ता में साझेदार बने थे, वह भी शिरोमणि अकाली दल के कनिष्ठ साथी के तौर पर। यह कदम अटल बिहारी वाजपेयी ने 1990 के दशक में उठाया था। मौजूदा भाजपा नेतृत्व ने उस गठबंधन को तोड़कर पंजाब में अकेले लड़ने का फैसला किया।
इसका उन्हें कोई फायदा नहीं मिला, लेकिन वोट प्रतिशत 2022 के विधानसभा चुनाव (6.6 फीसदी) से बढ़कर 2024 की लोकसभा में 18.56 फीसदी हो गया। इस तरह वे अपने पुराने वरिष्ठ साथी अकाली दल (13.2 फीसदी) से भी आगे निकल गए। जबकि कांग्रेस और आम आदमी पार्टी को 26-26 फीसदी वोट मिले।
भाजपा एक लगातार चुनाव लड़ने वाली सेना की तरह है और उसके नेता सोच सकते हैं कि अगर सिख वोट तीन हिस्सों में बंट जाएं- शिरोमणि अकाली दल, कांग्रेस और उग्रपंथियों के बीच- और हिंदू वोट एकजुट हो जाएं, तो वह अकेले सत्ता हासिल कर सकती है। हिंदू-मुस्लिम ध्रुवीकरण के जरिए जीतना, खासकर जहां मुसलमान अल्पसंख्यक हैं, पंजाब से बिल्कुल अलग है, जहां सिख बहुमत में हैं।
पिछले लोकसभा चुनावों में भी अकालियों का प्रदर्शन इसलिए इतना खराब रहा था, क्योंकि उनका ठीक आधा वोट, यानी करीब 13 फीसदी, उग्रपंथियों ने ले लिया था। चाहे पसंद आए या न आए, लेकिन पंजाब में उग्रपंथियों की बढ़ती लोकप्रियता एक समस्या बन चुकी है। जनता का अकालियों से मोहभंग बढ़ रहा है और भाजपा को ध्रुवीकरण करने वाली पार्टी के रूप में देखा जा रहा है। अलगाववादी इसी माहौल में सक्रिय हैं और पाकिस्तानी भी इसमें खेल रहे हैं।
कई नए यूट्यूब चैनल और सोशल मीडिया हैंडल बेहद चालाकी से प्रोपगेंडा चला रहे हैं। वे ये संदेश दे रहे हैं कि मुसलमान और सिख, दोनों एकेश्वरवादी और पंजाबी हैं और इस नाते उनके बीच कोई असली समस्या नहीं है। परेशानी हिंदुओं से आती है और इसलिए सिखों को अलग तरह से सोचना चाहिए।
यह प्रोपगेंडा पंजाबी पहचान का भी इस्तेमाल करता है, यानी साझा संस्कृति, भाषा, संगीत और सीमा पार के रिश्तों का। मैंने इनमें से कई चैनल देखे हैं, जिनमें कनाडा और ब्रिटेन से चलाए जा रहे कुछ लोकप्रिय पॉडकास्ट भी शामिल हैं। ये राजनीति पर बहुत चालाकी से बात करते हैं।
मैंने कनाडा से एक 66 मिनट का शो देखा, जिसमें एंकर पाकिस्तान एयरफोर्स के एक वेटरन और ऑपरेशन सिंदूर पर लिखने वाले लेखक से बात कर रहा था। शो में भारतीय वायुसेना की खूब तारीफ की गई, लेकिन संदेश यह था कि छोटी और फुर्तीली पाकिस्तानी वायुसेना ने बेहतर काम किया। पंजाब में ऐसी सामग्री खूब देखी जा रही है।
एक राष्ट्र जो अपने इतिहास से नहीं सीखता, उसे भारी कीमत चुकानी पड़ती है। साठ साल पहले मिजोरम में चूहों ने अनाज के भंडार खा डाले थे और लोग भूखों मरने लगे थे। राज्य सरकार नाकाम रही और केंद्र बहुत दूर था। इस बीच लालडेंगा- जो हाल ही में सेना से छुट्टी लेकर आए थे- ने मिजो नेशनल फैमिन फ्रंट (एमएनएफएफ) बनाया। यह 1966 तक मिजो नेशनल फ्रंट बन गया और दो दशक तक चीन और पाकिस्तान से समर्थन पाकर हिंसक विद्रोह चलाता रहा। भारत वही गलती दोबारा पंजाब में नहीं कर सकता।
उस राज्य के प्रति देश की कुछ जिम्मेदारियां हैं… एक आपदा केंद्र-भाजपा के लिए पंजाब के साथ खड़े होने का अच्छा अवसर होता। यह राज्य से नया रिश्ता बनाने का मौका भी होता। भारत की जिम्मेदारी है कि उस राज्य और उसके लोगों के लिए सबकुछ करे, जिनके योगदान के बिना गणराज्य की कल्पना नहीं की जा सकती। (ये लेखक के अपने विचार हैं)
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