Virag Gupta’s column – Lessons for India on social media ban in Nepal | विराग गुप्ता का कॉलम: नेपाल में सोशल मीडिया बैन पर भारत के लिए सबक

59 मिनट पहले
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विराग गुप्ता सुप्रीम कोर्ट के वकील
सोशल मीडिया की वजह से भ्रष्टाचार, वंशवाद, कुशासन के खिलाफ जागरूकता बढ़ती है। नेपाल, बांग्लादेश, श्रीलंका में सरकारों के तख्तापलट में तमाम कारणों के अलावा इसने भी भूमिका निभाई है। लेकिन हिंसा, आगजनी और संस्थाओं को ध्वस्त करने के बाद जन-आकांक्षाओं को पूरा करने के लिए जेन-जी के पास गवर्नेंस और नव-निर्माण का रोडमैप नहीं दिखता।
महाभारत काल में मूर्च्छित पांडवों को होश में लाने के लिए यक्ष-युधिष्ठिर संवाद हुआ था। उसी तर्ज पर गरीबी, बेरोजगारी, असमानता से निपटने और राष्ट्र-निर्माण में जेन-जी को जोड़ने के लिए सोशल मीडिया के सबसे बड़े बाजार भारत में इन 4 पहलुओं पर संवाद के साथ ही मुकम्मल कार्रवाई की भी जरूरत है :
टेक कम्पनियां : संसार का सबसे बड़ा आश्चर्य क्या है? यक्ष के इस प्रश्न का आधुनिक जवाब कुछ ऐसा होता कि फेसबुक, वॉट्सएप, यूट्यूब जैसी मुफ्त में सेवाएं देने वाली कम्पनियों का मुनाफा कहां से आता है? अमेरिका में फेडरल ट्रेड कमीशन की नई रिपोर्ट के अनुसार ये कम्पनियां विज्ञापन, ट्रैकिंग और एआई प्रोजेक्ट्स के लिए अरबों लोगों के डेटा का गैर-कानूनी इस्तेमाल कर रही हैं। सोशल मीडिया को नियंत्रित करने वाले धन्नासेठों के साथ ट्रम्प ने बैठक की थी। कयास हैं कि चीन के सामने नतमस्तक नेपाली पीएम ओली के तख्तापलट के पीछे टेक कम्पनियों की बड़ी भूमिका है।
डेटा प्रोटेक्शन नियमन : शिकायत अधिकारी की नियुक्ति समेत कई नियमों के पालन के लिए नेपाली सरकार ने दो साल पहले आदेश जारी किया था। पिछले साल टेक कम्पनियों के संगठन ने नियमों के पालन में असमर्थता जताई।
पिछले महीने सुप्रीम कोर्ट ने सोशल मीडिया कम्पनियों के रजिस्ट्रेशन के लिए आदेश दिया। उसके अनुसार सरकार ने इन कम्पनियों को एक सप्ताह में रजिस्ट्रेशन करवाने की चेतावनी जारी की। सुप्रीम कोर्ट के आदेश की अवहेलना और नियमों का पालन नहीं करने वाली फेसबुक, मैसेंजर, यूट्यूब, इंस्टाग्राम, वॉट्सएप, लिंक्डइन समेत 26 कम्पनियों को बैन कर दिया था। विद्रोह भड़कने के बाद बैन हटाया गया। सवाल है कि यूरोप में जनरल डेटा प्रोटेक्शन रेगुलेशन (जीडीपीआर) का पालन करने वाली टेक कम्पनियां नेपाल में नियमों का पालन क्यों नहीं कर रहीं?
भारत सरकार : ट्रम्प के टैरिफ युद्ध के ऐलान के बाद प्रधानमंत्री मोदी ने स्वदेशी से आत्मनिर्भर भारत का आह्वान किया है। लेकिन सरकारी काम में विदेशी एेप्स के गैरकानूनी इस्तेमाल और समाज को सोशल मीडिया के नशे से मुक्त करने के प्रयास नहीं हो रहे हैं।
संसद की स्थायी समिति की रिपोर्ट में फेक न्यूज के खतरे के मद्देनजर सेफ हार्बर कानून पर पुनर्विचार की बात कही गई है। यह दिलचस्प है कि भारत में फेक न्यूज की स्पष्ट कानूनी परिभाषा नहीं है। विदेशी कम्पनियों के दबाव की वजह से दो साल पहले पारित डेटा सुरक्षा कानून को अभी तक लागू नहीं किया गया है।
सोशल मीडिया के सिक्के का पहला पहलू अभिव्यक्ति की आजादी है। संविधान और लोकतंत्र की इस आत्मा को सुरक्षित रखना बेहद जरूरी है। लेकिन दूसरा पहलू यह है कि टेक कम्पनियों को बेलगाम छूट के कारण रोजगार खत्म हो रहे हैं और इससे गरीब-अमीर की खाई बढ़ रही है। विदेशी कम्पनियों के लिए कानून में शिथिलता और टैक्स चोरी की छूट, संविधान के समानता के सिद्धांत का बड़ा उल्लंघन है।
सुप्रीम कोर्ट : सोशल मीडिया में बड़े पैमाने पर अश्लील, हिंसक और आपत्तिजनक सामग्री होती है। कुछेक मामलों में विरोधियों को निशाना बनाने के लिए सिलेक्टिव तरीके से एफआईआर दर्ज करने के बाद गिरफ्तारी भी हो जाती है। कानून का यह दुरुपयोग भाजपा और विपक्ष शासित सभी राज्यों में हो रहा है।
तेलंगाना हाईकोर्ट के नए आदेश के अनुसार सोशल मीडिया पोस्ट्स के मामलों में बेवजह की एफआईआर दर्ज करने और मुकदमेबाजी पर पुलिस और अदालतों को रोक लगानी चाहिए। सुप्रीम कोर्ट में ऐसे मामलों पर बड़े वकीलों की लम्बी बहस के बाद जमानत मिल जाती है, लेकिन मुकदमेबाजी चलती रहती है।
सोशल मीडिया कम्पनियों के नियमन से जुड़े अनेक लम्बित मामलों पर कई सालों से सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई नहीं हो रही। सुप्रीम कोर्ट के जज सूर्यकांत ने एक नए मामले में सोशल मीडिया गाइडलाइंस बनाने के लिए सरकार को आदेश दिया है। जज के अनुसार व्यावसायिक मुनाफा कमाने वाले इन्फलुएंर्स को अभिव्यक्ति की आजादी के मौलिक अधिकार की कानूनी ढाल नहीं मिलनी चाहिए।
भारत में टेक कम्पनियां कानूनी प्रक्रिया और टैक्स जवाबदेही से बचने के लिए गैर-कानूनी लॉबीइंग कर रही हैं और दूसरे हथकंडे अपना रही हैं। यक्षप्रश्न यह है कि टेक कम्पनियों की बिल्ली के गले में नियमन की घंटी कौन बांधेगा? (ये लेखक के अपने विचार हैं)
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