Wednesday 15/ 10/ 2025 

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Nanditesh Nilay’s column – Nobel Prize for uniting the world with peace, not war | नंदितेश निलय का कॉलम: पूरी दुनिया को युद्ध नहीं शांति से जोड़ देने वाला नोबेल पुरस्कार

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10 घंटे पहले

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नंदितेश निलय वक्ता, एथिक्स प्रशिक्षक एवं लेखक - Dainik Bhaskar

नंदितेश निलय वक्ता, एथिक्स प्रशिक्षक एवं लेखक

हमारे जीवन में ऐसी बहुत सारी घटनाएं होती हैं, जो हमें पल भर में बदलकर रख देती हैं। वह बदलाव इतिहास में कालजयी हो जाता है और हमें एक नई ऊंचाई, नए प्रयोजन से जोड़ देता है। ऐसा ही अल्फ्रेड नोबेल के साथ भी हुआ। लेकिन पहले यह जानना जरूरी है कि अल्फ्रेड नोबेल ने 1886 में डायनामाइट का आविष्कार किया था। इसका प्रयोग स्वेज नहर से लेकर तमाम तरह की खदानों, उद्योगों और अन्य संसाधनों के लिए किया गया, लेकिन इसने विनाश और युद्ध की संभावना भी दिखाई।

“नोबेल पुरस्कार और समकालीन विश्व साहित्य का निर्माण’ (2025) नामक पुस्तक में लेखक पॉल टेन्गार्ट ने उस घटना और एक मृत्युलेख का हवाला दिया है, जिसमें लिखा था कि “एक ऐसे व्यक्ति का कल निधन हो गया, जो मानवता के लिए मुश्किल से ही उपकारी साबित हुआ था। वह व्यक्ति थे- श्री नोबेल, डायनामाइट के आविष्कारक।’ हालांकि इसमें चूक हुई थी।

वास्तव में अल्फ्रेड के भाई लुडविग की मृत्यु हुई थी, लेकिन इस मृत्युलेख को पढ़कर अल्फ्रेड नोबेल का जीवन दर्शन ही बदल गया। उन्होंने अपनी विल में एक ऐसे पुरस्कार की चर्चा की, जिसको संसार के हर उस व्यक्ति को दिया जा सके, जिसने विज्ञान, चिकित्सा, साहित्य और शांति के लिए विशिष्ट कार्य किया, जिसने पृथ्वी और प्रकृति को स्वस्थ और सुरक्षित रखना चाहा।

और अल्फ्रेड नोबेल ने यह शर्त रखी कि उनके मरने के बाद उनकी सम्पत्ति को पांच बराबर भागों में बांटा जाएगा : जिसमें से एक हिस्सा उस व्यक्ति को दिया जाएगा, जिसने भौतिकी के क्षेत्र में सबसे महत्वपूर्ण खोज की हो, एक हिस्सा रसायन, एक चिकित्सा, एक अर्थशास्त्र और एक साहित्य के क्षेत्र में विशिष्ट योगदान देने वाले के लिए। और अंत में, एक हिस्सा उस व्यक्ति को दिया जाए, जिसने तमाम राष्ट्रों के बीच सद्भाव, भाईचारा बढ़ाने, स्थायी सेनाओं को कम या समाप्त करने और शांति को बढ़ावा देने के लिए काम किया हो।

ऐसे तो संसार में बहुत सारे पुरस्कार साख बनाए हुए हैं, लेकिन नोबेल का कोई सानी नहीं। हाल ही में नोबेल काफी सुर्खियों में रहा। इस पुरस्कार की सबसे खास बात है कि यह आज भी संसार के हर कोने को प्रभावित करता है और साहित्य से लेकर शांति, विज्ञान से अर्थशास्त्र तक- हर क्षेत्र में किए अभूतपूर्व कार्य को एक पहचान देता है। एक तरह से नोबेल हमें संसार से जोड़ देता है। उन देशों से, उन कृतियों से, उन कार्यों से, उन महान व्यक्तियों से- जिनको किसी कारण हम नहीं जान पाए।

नोबेल पूरे विश्व को मानो एक कर देता है और संसार को शांति के रास्ते पर चलने के लिए प्रेरित करने लगता है। यह हम सभी को उस समाज, मुल्क, मनुष्य की जिजीविषा से जोड़ने लगता है, जहां सामाजिक मूल्यों की प्रतिष्ठा बड़ी हो जाती है। युद्ध और सत्ता के बीच इस एकल और सिमटी दुनिया की अनभिज्ञता और पूर्वग्रहों में जकड़ी मानसिकता को नोबेल पुरस्कार पल भर में तोड़ना चाहता है और पूरे विश्व को एक नागरिक और एक समाज में परिवर्तित करना चाहता है।

चाहे हम संसार के किसी भी कोने में क्यों न हों, लेकिन इस साल नोबेल पुरस्कारों की घोषणा होते ही कभी वेनेजुएला तो कभी हंगरी को नक्शे में ढूंढने लगे और उन देशों की राजनीति और सामाजिक परिदृश्य को और समझना चाहा। नोबेल दुनिया को बताता है कि दूर-देशों का साहित्य भी अनूदित होकर पाठकों तक पहुंचाया जा सकता है।

कोरिया की सबसे बड़ी किताबों की दुकान क्योबो में 23 लाख किताबें है। इसकी हर दीवार पर किताबें सजी हैं, पर एक दीवार दशकों से सूनी थी। उस पर टंगे बोर्ड पर लिखा रहता था- नोबेल विजेता कोरियाई लेखक के लिए आरक्षित। उस बोर्ड का सूनापन तब दूर हुआ, जब हान कांग को नोबेल पुरस्कार मिला।

नोबेल ने मानो सारी दुनिया के संघर्ष को, नेतृत्व को एक दिशा दी है और वर्चुअल दुनिया के नागरिकों को इस यकीन से जोड़ा है कि दुनिया युद्ध से नहीं बल्कि शांति से ही बच सकती है। और कोई अशोक या अल्फ्रेड नोबेल कलिंग युद्ध या डायनामाइट के आविष्कार से नहीं बनता, बल्कि बनता है सभी के बारे में सोचकर, थोड़ा संजीदा, थोड़ा दयालु होकर। (ये लेखक के निजी विचार हैं)

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