Wednesday 15/ 10/ 2025 

‘मुझे क्यों तोड़ा’, फेमस मीम बना डायलॉग, TV एक्टर को मिली शोहरत, कैसे मिली थी ‘वेलकम’ फिल्म? – tv actor paresh ganatra mujhe kyu toda meme anees bazmi welcome tmovaRajat Sharma's Blog | शहबाज़ और मुनीर ने पाकिस्तान की इज़्ज़त बेच दीN. Raghuraman’s column: Continuous skill improvement helps achieve goals even at retirement age | एन. रघुरामन का कॉलम: निरंतर कौशल सुधारना रिटायरमेंट आयु में भी लक्ष्य पाने में मददगार हैऑस्ट्रेलिया में रोहित-विराट का संन्यास कंफर्म? पैट कमिंस के बयान से मची खलबली – Rohit sharma and Virat Kohli retirement confirmed in Australia tour Pat Cummins statement ind vs aus ntcpasगोवा के मंत्री और पूर्व CM रवि नाइक की हार्ट अटैक से मौत, PM मोदी ने दी श्रद्धांजलिNanditesh Nilay’s column – Nobel Prize for uniting the world with peace, not war | नंदितेश निलय का कॉलम: पूरी दुनिया को युद्ध नहीं शांति से जोड़ देने वाला नोबेल पुरस्कारGreen Firecrackers पर SC का बड़ा फैसलाचार राज्यों में होने वाले उपचुनाव के लिए बीजेपी ने घोषित किए उम्मीदवार, झारखंड के पूर्व सीएम चंपई सोरेन के बेटे को मिला टिकटMeghna Pant’s column: Divorce isn’t shameful, enduring dowry harassment is. | मेघना पंत का कॉलम: तलाक शर्मनाक नहीं, दहेज प्रताड़ना सहना शर्मनाक हैसंघ के 100 साल: हेडगेवार पर पहला केस, एक साल की जेल और रिहाई पर कांग्रेस दिग्गजों से मिला सम्मान – dr Keshav Baliram Hedgewar first time jail journey congress leaders 100 years rss ntcppl
देश

N. Raghuraman’s column: Continuous skill improvement helps achieve goals even at retirement age | एन. रघुरामन का कॉलम: निरंतर कौशल सुधारना रिटायरमेंट आयु में भी लक्ष्य पाने में मददगार है

  • Hindi News
  • Opinion
  • N. Raghuraman’s Column: Continuous Skill Improvement Helps Achieve Goals Even At Retirement Age

12 घंटे पहले

  • कॉपी लिंक
एन. रघुरामन, मैनेजमेंट गुरु - Dainik Bhaskar

एन. रघुरामन, मैनेजमेंट गुरु

जी वन-अवधि बढ़ने के साथ ही कई श्रमिकों के करियर की अवधि भी बढ़ रही है। 2024 में 75 वर्ष की आयु के लगभग 9% अमेरिकी या तो काम कर रहे थे या नौकरी की तलाश में थे। एक दशक पहले यह आंकड़ा 6% था। कामकाजी आबादी में 65 से 74 वर्ष की आयु के लोगों का शेयर 2004 के 22% से बढ़ कर 2024 में 27% हो गया। वहां की सरकार का अनुमान है कि बढ़ती हुई उम्रदराज आबादी के साथ ये प्रतिशत और बढ़ेगा।

लोग रिटायरमेंट को क्यों टालते हैं, इसके कई कारण हैं। आंत्रप्रेन्योर और सेल्फ-एम्प्लॉइड लोग काम का आनंद लेते हैं, जबकि अधिकतर अन्य लाेग अपनी वित्तीय चिंताओं के कारण काम करते हैं। लेकिन 65 से 74 वर्ष आयु श्रेणी के लोग पैसे की कमी और महंगाई से पार पाने के लिए अपना कौशल निखारते हैं, पेशा बदलते हैं और कुछ ऐसी चीजें भी करते हैं, जो उन्होंने अपने जीवन में पहले कभी नहीं कीं। महाराष्ट्र में जुन्नार के दूरस्थ गांव चिंचोली में एक एकड़ के खेत के मालिक पुष्पा (62) और सुभाष काशिद (67) अपना कौशल सुधारने के शानदार उदाहरण हैं।

अंगूर की खेती आसान काम नहीं है। भारत में किसी को धूप वाली जगह चुनने की जरूरत तो नहीं, क्योंकि यहां बहुतायत में है। लेकिन सफलता के साथ फसल पाने के लिए मिट्टी तैयार करना, पौधों को मजबूत सहारे के लिए ट्रेलिस बनाना, नियमित छंटाई करना, पानी व पोषक तत्वों का प्रबंधन, जलवायु के मुताबिक अंगूर की किस्म का चयन, कीट-बीमारियों का प्रबंधन जैसे काम इतने आसान नहीं।

खासकर, उन दंपतियों के लिए जो 60 के दशक की उम्र में हैं। लेकिन पांच साल पहले काशिद दंपति ने यह करने की ठान ली। काम में बाधाएं बहुत थीं। ग्रामीणों ने संदेह पैदा किया। खेत में कमरतोड़ मेहनत, अप्रत्याशित बारिश और तेंदुए के हमलों का डर भी था।

पहली बात थी वांछित लक्ष्य के प्रति प्रतिबद्धता दिखाना। दंपति ने अपने विनयार्ड के एक कोने में टिन की चादरों से घर बनाया, जिसमें कोई फर्नीचर नहीं था। उनके पास गैस कनेक्शन और कुछ ही बर्तन थे। यह इंतजाम जानबूझकर किए गए थे। पुष्पा आज कहती हैं कि यदि किसी को बेहतरीन किस्म के अंगूर उगाने हैं तो पीक सीजन के दौरान विनयार्ड के पास रहना एक प्रतिबद्धता है।

उनके पास एक मार्गदर्शक भी थे- अमर वायकर। वे उनके रिश्तेदार थे, जिन्होंने दंपति को सिखाने और विनयार्ड का कामकाज देखने के लिए सैकड़ों वीडियो कॉल किए थे। वे खुद आकर प्रगति देखते भी थे। शुरू में वायकर को नहीं लगा था कि बुजुर्ग दंपति अंगूर की खेती की जटिलताओं को समझ पाएंगे। लेकिन काशिद दंपति के समर्पण और मेहनत ने उन्हें गलत साबित कर दिया।

चूंकि पैसे की कमी के चलते वे खेतिहर मजदूर नहीं रख सके, इसलिए उन्होंने खुद मजदूर बनकर सुबह से शाम तक छंटाई, कीटनाशक प्रबंधन, समय पर खाद डालने जैसे सभी काम किए। जिस चीज ने असल में उनके व्यवसाय को गति दी, वह थी उनकी समस्या समाधान की सोच। इसी ने उनकी प्रगति बढ़ाई।

पहले साल वे छंटाई की कला नहीं जानते थे, इसलिए अंगूर कैप्सूलनुमा होने के बजाय ​कंचों के आकार में उगे। उन्होंने 7 लाख रुपए कर्जा लिया था, लेकिन 2 लाख रुपए का घाटा हुआ। यह एक बड़ा झटका था। उन्होंने अतिरिक्त कर्ज के लिए आवेदन किया और सौभाग्य से 3 लाख रुपए मंजूर हो गए।

2024 में उन्होंने अपना पहला कन्साइनमेंट दुबई भेजा और 10 लाख रुपए कमाए। यह उनके जीवन की सबसे बड़ी कमाई थी। लेकिन उत्कृष्टता की चाहत रखने वाले इस दंपति को अचंभा हुआ कि उनके अंगूर यूरोपीय मानकों पर खरे क्यों नहीं उतरे? दृढ़ निश्चयी दंपति ने गुणवत्ता बढ़ाने के लिए और प्रयास किए।

कुछ महीनों तक उन्होंने रोजाना दस घंटे से अधिक समय विनयार्ड में बिताया और अपने बच्चों की तरह फलों की देखभाल की। फिर एक प्राइवेट एजेंसी का अधिकारी आया, जो उनकी फसल देख प्रभावित हुआ। वह उनका कन्साइनमेंट निर्यात करने के लिए राजी हो गया। इससे उन्हें इस साल 17 लाख रुपए मिले।

फंडा यह है कि अगर आप सच में लक्ष्य हासिल करना चाहते हैं तो मेहनत और समर्पण के अलावा अपने कौशल को निखारना जरूरी है। नई चीजें सीखने से कभी न शरमाएं।

खबरें और भी हैं…

Source link

Check Also
Close



DEWATOGEL