Dr. Chandrakant Laharia’s column- Celebrities should understand their social and moral responsibility | डॉ. चन्द्रकान्त लहारिया का कॉलम: सेलेब्रिटीज अपनी सामाजिक और नैतिक जवाबदेही को समझें

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3 घंटे पहले
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डॉ. चन्द्रकान्त लहारिया, जाने माने चिकित्सक
2021 में यूरो कप के दौरान एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में फुटबॉलर क्रिस्टियानो रोनाल्डो ने कैमरे के सामने रखी दो कोला बोतलों को एक तरफ धकेल दिया था और पानी की बोतल उठाकर संकेत किया था कि यही सही पेय है।
इसके परिणामस्वरूप कोला ब्रांड के बाजार मूल्य में 4 अरब डॉलर की गिरावट आई थी। यह घटना उत्पादों को बेचने में सेलेब्रिटी प्रमोशन के महत्व को रेखांकित करती है, साथ ही यह हमें सेलेब्रिटी की ब्रांड पावर के गलत इस्तेमाल के बारे में भी आगाह करती है।
भारत में हाई फैट, नमक और चीनी वाले उत्पादों सहित अस्वास्थ्यकर, अल्ट्रा-प्रोसेस्ड खाद्य पदार्थों के कारण मोटापे की महामारी बढ़ रही है। अनुमानों के अनुसार, 2011-21 के दशक में अल्ट्रा-प्रोसेस्ड और पैकेज्ड खाद्य पदार्थों की बिक्री में 13% की वृद्धि हुई, जो स्वास्थ्य की दृष्टि से चिंताजनक है।
इसके अलावा, भारत में खाद्य रेगुलेशन कमजोर रूप से लागू होते हैं, परिणामस्वरूप भ्रामक मार्केटिंग जैसे कि पैकेज्ड और आर्टिफिशियल जूस को ताजा कहकर बेचा जाना आम है। सरोगेट मार्केटिंग की चुनौती भी है, जहां गुटखा, शराब या सिगरेट जैसे उत्पादों को विज्ञापित करने की अनुमति नहीं है तो वही नाम पानी की बोतलों या अन्य उत्पादों का रख दिया जाता है और मार्केटिंग की जाती है।
खिलाड़ियों और फिल्मी सितारों को अक्सर इस तरह की मार्केटिंग में अच्छा पैसा मिलता है। हालांकि, फिल्मी सितारों को मार्केटिंग सहित कानूनी रूप से स्वीकृत तरीकों से आय अर्जित करने का अधिकार है, लेकिन एक नैतिक सीमा का वे उल्लंघन करते हैं।
कई सेलेब्रिटी निजी तौर पर स्वीकार कर चुके हैं कि वे कोला या उच्च चीनी वाले जूस जैसे खाद्य पदार्थों का स्वयं सेवन नहीं करते, जिनका विज्ञापन वे अपने प्रशंसकों को करते हैं। दूसरे शब्दों में, वे अपने प्रशंसकों को हानिकारक खाद्य उत्पाद बेचकर धन कमाते हैं। यह एक नैतिक बेईमानी है।
अब सेलेब्रिटीज़ द्वारा अपने उत्पाद लॉन्च करने का एक नया चलन चल पड़ा है। कुछ हफ्ते पहले, अभिनेता रणवीर सिंह ने प्रोटीन सप्लीमेंट का अपना ब्रांड लॉन्च किया। इसका प्रचार अब तक की सबसे आधुनिक तकनीक से बने फर्मेंटेड प्रोटीन के रूप में किया जा रहा है और यह प्रीमियम मूल्य पर बेचा जा रहा है।
हालांकि, सवाल यह नहीं है कि किस प्रोटीन सप्लीमेंट में क्या खास है। मुद्दा है कि किसी को प्रोटीन सप्लीमेंट की जरूरत है या नहीं? संक्षिप्त उत्तर यह है कि अधिकांश आबादी को इसकी जरूरत नहीं हैं। आवश्यक प्रोटीन स्वस्थ और संतुलित आहार से प्राप्त किया जा सकता है।
अतिरिक्त प्रोटीन हमारे शरीर के लिए बेकार है, क्योंकि यह हमारे शरीर के लिए ऊर्जा का एक अतिरिक्त स्रोत मात्र है। केवल विशिष्ट व्यक्तियों के लिए ही यह उपयुक्त है, जैसे कि गर्भवती महिलाएं जिनकी भूख कम होती है, या कोई व्यक्ति जो दीर्घकालिक बीमारी से ग्रस्त है या किसी कारण से पर्याप्त भोजन नहीं कर रहा है।
कुछ लोगों- जैसे कि वे जिन्हें गुर्दे की बीमारी है- के लिए तो प्रोटीन सप्लीमेंट नुकसानदेह भी हो सकता है। स्पष्ट रूप से, यदि स्वस्थ लोग अतिरिक्त प्रोटीन सप्लीमेंट लेते हैं, तो उन्हें अधिक कीमत पर बहुत कम लाभ होता है।
अमेरिका जैसे देशों में विटामिन सहित विभिन्न प्रकार के सप्लीमेंट प्रचलन में हैं। भारत में भी इस तरह की संस्कृति विकसित हो रही है। लोग विटामिन और कई अन्य सप्लीमेंट का सेवन कर रहे हैं। यह सच है कि कुछ सूक्ष्म पोषक तत्व और विटामिन ऐसे होते हैं, जो रोजमर्रा के शाकाहारी भोजन में पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध नहीं होते। इसीलिए दूध जैसे रोजमर्रा के खाद्य पदार्थों में विटामिन ए या डी जैसे जरूरी विटामिन की पूर्ति के लिए कुछ सरकारी पहल की गई हैं। इसके अलावा, ज्यादातर स्वस्थ लोगों को किसी सप्लीमेंट की जरूरत नहीं होती।
समय आ गया है कि हम समाज के रूप में सप्लीमेंट के बाजार पर विचार करें। सरकारों को सप्लीमेंट की जरूरत और संभावित नुकसान के बारे में जागरूकता बढ़ाने और शिक्षित करने की जरूरत है। इन उत्पादों के विपणन के बेहतर नियमन आवश्यक हैं। सेलेब्रिटीज को भी अपनी सामाजिक और नैतिक जवाबदेही का एहसास होना चाहिए।
(ये लेखक के अपने विचार हैं)
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