Nina Khrushcheva’s column – Why does Trump want the Nobel Peace Prize? | नीना खुश्चेवा का कॉलम: आखिर ट्रम्प को नोबेल शांति पुरस्कार किसलिए चाहिए?

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7 घंटे पहले
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नीना खुश्चेवा न्यू स्कूल यूनिवर्सिटी, न्यूयॉर्क में अंतराष्ट्रीय मामलों की प्रोफेसर
नोबेल पुरस्कार के लिए समर्थन जुटाना नई बात नहीं है। वैज्ञानिक, अर्थशास्त्री और यहां तक कि कवि भी ऐसा करते हैं। लेकिन नोबेल शांति पुरस्कार के लिए ट्रम्प जैसा अशिष्ट और अतिशयोक्ति से भरा कैम्पेन दुनिया ने पहले कभी नहीं देखा।
यह शांति की स्थापना और बहाली के लिए विश्व का सबसे प्रतिष्ठित सम्मान है। पुरस्कार का निर्णय नॉर्वे की संसद द्वारा नियुक्त एक समिति करती है। ऐसी कल्पना करना भी कठिन है कि वे प्रबुद्धजन ट्रम्प को इस पुरस्कार के योग्य समझेंगे।
इसका एक कारण यह भी है कि ट्रम्प हर मौके पर यूरोप को नीचा दिखाते हैं। वे नॉर्वे के पड़ोसी डेनमार्क के स्वायत्त क्षेत्र ग्रीनलैंड को कब्जाने की धमकी देते रहे हैं। नॉर्वे की सदस्यता वाले नाटो गठबंधन को कमजोर करने के लिए वे उत्सुक नजर आते हैं।
इतना ही नहीं, ट्रम्प द्वितीय विश्व युद्ध के बाद यूरोप के सबसे बड़े युद्ध के लिए जिम्मेदार तानाशाह पुतिन को तो सलाम ठोकते हैं, लेकिन अपनी रक्षा कर रहे देश के राष्ट्रपति जेलेंस्की के प्रति दम्भ से भरा कृपाभाव दिखाते हैं।
यों भी ट्रम्प सामान्य रूप से तानाशाहों का समर्थन करते ही दिखते हैं। ब्राजील ने जब 2022 में ट्रम्प की शह पर तख्तापलट के प्रयास के लिए पूर्व राष्ट्रपति जेयर बोल्सोनारो को जिम्मेदार ठहराने की कोशिश की तो ट्रम्प ने सजा के तौर पर ब्राजील पर कड़े टैरिफ लगा दिए।
उन्होंने इजराइल के प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू का जबरदस्त समर्थन किया है। जबकि नेतन्याहू ने गाजा पर अमानवीय हमले करते हुए उस ओस्लो समझौते के ताबूत में आखिरी कील ठोक दी, जो नॉर्वे की सबसे बड़ी कूटनीतिक उपलब्धि रहा था।
हालांकि, ओस्लो समझौते ने इसका स्पष्ट रूप से समर्थन नहीं किया था कि भविष्य में इजराइल के साथ एक फिलिस्तीनी राष्ट्र की स्थापना भी हो, लेकिन वेस्ट बैंक और गाजा में स्व-शासित फिलिस्तीनी संस्थानों की स्थापना करके “दो-राष्ट्र’ संबंधी समाधान की बुनियाद रख दी गई थी।
लेकिन अब इजराइल ने गाजा को नेस्तनाबूद करने और वहां की आबादी को भुखमरी में धकेलने के अलावा वेस्ट बैंक में एक नई बस्ती बनाने की परियोजना को मंजूरी दे दी है– जो वहां एक फिलिस्तीनी राष्ट्र के निर्माण को प्रभावी रूप से रोकती है। लेकिन ट्रम्प न केवल नेतन्याहू के कार्यों का बचाव करते हैं, बल्कि उनके आलोचकों को दंडित भी करते हैं- जिसमें नॉर्वे भी शामिल है।
अपने देश में भी ट्रम्प का व्यवहार संवाद और सुलह के प्रति ऐसी ही अवज्ञा को दर्शाता है। वे नेशनल गार्ड के सैनिकों को उन शहरों में तैनात कर रहे हैं, जहां न तो उनकी जरूरत है और ना लोग उन्हें चाह रहे हैं। शरणार्थियों, प्रवासियों और यहां तक कि अमेरिकी नागरिकों और बच्चों को भी बिना उचित प्रक्रिया के हिरासत में लिया और निर्वासित किया जा रहा है।
लेकिन ट्रम्प की दुनिया में कुछ भी सम्भव है, जहां जवाबदेही मनमानी है, तथ्य नकारे जाते हैं और झूठ ही स्थायी है। हम पहले ही एक के बाद एक वैश्विक नेताओं को ट्रम्प की चापलूसी करते और उनके आगे सिर झुकाते देख चुके हैं।
वास्तव में, उन्हें पहले ही नोबेल के लिए दो देशों के नामांकन मिल चुके हैं। पहला है पाकिस्तान, जो यकीनन शांति का प्रतीक नहीं है। और दूसरा है कम्बोडिया, जिसका नेतृत्व वैसे ही तानाशाह करते हैं, जिनकी ट्रम्प तरफदारी करते हैं।
अलबत्ता नोबेल समिति अतीत में ट्रम्प से भी बड़े बेतुके दिखावे देख चुकी है। 1939 में नेविल चैंबरलेन को नोबेल शांति पुरस्कार के लिए नामांकित किया था। लेकिन उस साल किसी को पुरस्कार नहीं दिया गया। यह एक दूरदर्शी निर्णय था, क्योंकि नाजी शासन को चेकोस्लोवाकिया के सुडेटेनलैंड पर कब्जे को हरी झंडी देने वाले चैंबरलेन ने सिर्फ और सिर्फ हिटलर को अन्य देशों के खिलाफ आक्रामकता के लिए उकसाया था। विडम्बना है कि ट्रम्प सोचते हैं यूक्रेन को अपनी जमीन रूस को सौंपने के लिए मजबूर करने पर वे भी नोबेल के दावेदार हो गए हैं।
ट्रम्प को नोबेल शांति पुरस्कार क्यों चाहिए? क्योंकि अतीत में यह ओबामा को दिया जा चुका है। यकीनन, 2009 में ओबामा काे जल्दबाजी में नोबेल दे दिया गया था, लेकिन ट्रम्प काे यह पुरस्कार देना तो पूरी तरह से हास्यास्पद होगा। (© प्रोजेक्ट सिंडिकेट)
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