N. Raghuraman’s column – What to learn from competitors’ business best practices | एन. रघुरामन का कॉलम: प्रतिस्पर्धियों के बिजनेस के बेस्ट तरीकों से क्या सीखना चाहिए

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12 घंटे पहले
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एन. रघुरामन, मैनेजमेंट गुरु
कोलकाता अचानक से हरा-भरा हो गया है। ऐसा नहीं कि उन्होंने भीड़भाड़ भरे शहर में पेड़ उगा लिए हैं, बल्कि इस सोमवार मेट्रो लाइनों के उद्घाटन के एक दिन बाद ही एक लाख से अधिक कार्यालय जाने वाले लोग और शहरवासी सड़क परिवहन के बजाय मेट्रो रेल में सफर करने लगे हैं।
देश का यह सबसे पहला शहर था, जिसने ब्लू लाइन के नाम से 24 अक्टूबर 1984 को मेट्रो परिवहन शुरू किया था। 3.4 किमी से शुरू होकर धीरे-धीरे यह मेट्रो 16 किमी तक विस्तारित हुई। अब 41 साल बाद शहर में तीन और लाइनें शुरू की गई हैं- येलो, ऑरेंज और ग्रीन। ये 58 सक्रिय स्टेशनों के साथ 74 किमी क्षेत्र को कवर करती हैं। लेकिन आज भी कई इंटरचेंज स्टेशनों की कमी है, जिससे यात्रियों को असुविधा होती है।
मुंबई ने 2014 में 11 किमी की पहली मेट्रो शुरू की और प्रमुख रेलवे स्टेशनों और हवाई अड्डों को जोड़ने वाले स्थानों पर इंटरचेंज स्टेशन बनाकर शहर को जोड़ा। मुंबई मेट्रो नेटवर्क में अभी भी बड़े पैमाने पर विस्तार जारी है।
2025 के मध्य तक देश की वित्तीय राजधानी में चार लाइनें संचालित हैं, जो 68.93 किमी के मार्ग पर चलती हैं। 2026 तक इसके 300 किमी से ज्यादा दूरी तक विस्तारित होने की उम्मीद है। आज की तारीख में दिल्ली मेट्रो सबसे बड़ी है।
इसमें 395 किमी के ऑपरेशनल ट्रैक पर 10 कलर-कोडेड लाइनें हैं, जो उत्तरप्रदेश और हरियाणा समेत राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र के चारों तरफ सेवाएं देती हैं। 24 दिसंबर 2002 को शुरू हुई इस मेट्रो सेवा के अगले साल तक 450 किलोमीटर तक पहुंचने की उम्मीद है।
कोलकाता पर वापस आते हैं। तीन लाइनों के उद्घाटन के बाद भी यात्री शहर के मेट्रो नेटवर्क में भीड़भाड़, सेवाओं में देरी और घोषणाओं को लेकर असमंजस का सामना कर रहे हैं। हालांकि, कोलकाता के अधिकतर यात्री मान रहे हैं कि कनेक्टिविटी और यात्रा समय कम होने का लाभ इन शुरुआती परेशानियों से ज्यादा महत्व रखता है। पूर्व में यात्रा के दौरान लंबे ठहराव और भीड़भाड़ भरे इंटरचेंज के लिए मजबूर यात्रियों ने अनुभव किया कि नए नेटवर्क ने थकाऊ यात्रा वाली उनकी दिनचर्या को बदल दिया है।
मुंबई मेट्रो से जुड़ाव के नाते हमें समझ आया कि कोलकाता में महसूस होने वाली शुरुआती दिक्कतें 2014 में उद्घाटन से पहले मुंबई के यात्रियों को भी हो सकती थीं। इसलिए हमने ऐसी सभी जगहों पर सैकड़ों अतिरिक्त अस्थायी कर्मचारियों की तैनाती का निर्णय किया, जहां उपभोक्ताओं की आवाजाही होती है।
लांचिंग से पहले मैंने स्वयं उनको प्रशिक्षित किया। टिकट बिक्री क्षेत्रों से लेकर चढ़ने, उतरने, टॉयलेट तक हमने लोगों को बिना किसी काम के भीड़ में बस खड़े रखा। हमने उनसे कहा वे सिर्फ लोगों को स्टेशन से बाहर जाने का रास्ता दिखाएं और मेट्रो द्वारा दी जा रही सेवाओं की जानकारी देने में मदद करें।
इससे वे शुरुआती दिक्कतें पूरी तरह समाप्त हो गईं, जो कोलकाता के यात्री झेल रहे हैं। समय बचत की किसी भी सुविधा को बहुत महत्व देने वाले मुम्बई के यात्रियों ने संगठन द्वारा दी गईं ऐसी अतिरिक्त सहायता गतिविधियों को बहुत पसंद किया। यदि आप मुंबई की मेट्रो सुविधाओं को देखें, तो यह कई नई मेट्रो सेवाओं से अधिक सुगम हैं।
ऐसा इसलिए है क्योंकि उन्होंने लोगों को शिक्षित करने के लिए कर्मचारियों को तैनात किया। और जब यात्री टिकट लेने का आसान तरीका, परिसर से जल्दी बाहर निकलना और सुविधाओं के उपयोग का तरीका सीखने लगे तो अतिरिक्त तैनात कर्मचारियों को धीरे-धीरे हटा लिया गया।
उन अतिरिक्त कर्मचारियों का सबसे बड़ा काम यात्रियों में अनुशासन लाना था। किसी को भी कचरा फेंकने, थूकने की अनुमति नहीं थी। ऐसा करने वालों को तुरंत पकड़कर जुर्माना लगाया गया। पैर अड़ा कर स्वचालित दरवाजे खोलने वालों को चेतावनी दी गई। यात्री कहीं भी पेशाब करने की कल्पना भी नहीं कर सकते थे और बिना टिकट यात्रा तो सपने में भी नहीं सोच सकते थे।
फंडा यह है कि जिन आइडियाज़ पर प्रतिस्पर्धी काम कर रहे हैं, उन्हीं पर नए सिरे से काम करने के बजाय उन बेस्ट तरीकों को अपनाने की कोशिश करें, जिन्हें आपसे भी पहले सफल बिजनेस ने अपनाया हुआ है। इससे ग्राहकों की संतुष्टि बढ़ेगी।
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