Wednesday 03/ 09/ 2025 

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Prof. Chetan Singh Solanki’s column- If we keep our house clean, then why not the earth? | प्रो. चेतन सिंह सोलंकी का कॉलम: अपने घर को साफ रखते हैं तो पृथ्वी को क्यों नहीं?

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7 घंटे पहले

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प्रो. चेतन सिंह सोलंकी आईआईटी बॉम्बे में प्रोफेसर - Dainik Bhaskar

प्रो. चेतन सिंह सोलंकी आईआईटी बॉम्बे में प्रोफेसर

हम सभी एक घर चाहते हैं- एक ऐसी जगह जो दीवारों और छत से जुड़ी हो, जहां हम खाना बना सकें, आराम कर सकें और रह सकें। वह जगह हमें सुरक्षा प्रदान करती है। लेकिन हम अकसर भूल जाते हैं कि यह छोटा-सा घर एक बहुत बड़े घर में बसा है- स्वयं पृथ्वी और उसका वातावरण या एटमॉस्फीयर।

यह बड़ा घर यानी पृथ्वी का एटमॉस्फीयर हमें सब कुछ देता है : वह हवा जिसमें हम सांस लेते हैं, वह पानी जो हम पीते हैं, वह खाना जो हम खाते हैं, और वे सामग्रियां जो हमारे सिर के ऊपर छत को सहारा देती हैं। हमारा असली घर महासागर, जंगल, नदियां, मिट्टी ही हैं। यह इस ग्रह का जीवित एटमॉस्फीयर है, और हम इसमें रहते हैं।

अपने छोटे घरों के अंदर, हम सभी जानते हैं कि कचरा क्या होता है। यह बचा हुआ खाना, प्लास्टिक के रैपर, पैकेजिंग, वे चीजें हैं जिनकी हमें अब जरूरत नहीं है। हम इन्हें कूड़ेदान में फेंक देते हैं, जिसे नियमित रूप से खाली किया जाता है।

यह दृश्यमान कचरा है- हम इसे छू सकते हैं, देख सकते हैं और सूंघ सकते हैं। लेकिन एक और प्रकार का कचरा होता है जिसके बारे में हम शायद ही कभी सोचते हैं- अदृश्य प्रकार का। इस कचरे से बदबू नहीं आती। यह किसी कोने में जमा नहीं होता।

यह कचरा हम एटमॉस्फीयर में छोड़ते हैं ग्रीनहाउस गैसों के रूप में। यह कचरा लगभग हर उस चीज से बनता है जो हम करते हैं : जब हम यात्रा करते हैं, खाना पकाते हैं, लाइट जलाते हैं, दांत ब्रश करते हैं, नया मोबाइल या शर्ट खरीदते हैं, इमारत बनाते हैं या वीडियो स्ट्रीम करते हैं। हर उपभोग से अदृश्य कचरा निकलता है।

और दिखाई देने वाले कचरे के विपरीत, जिसे हम कूड़ेदान में फेंक देते हैं, इस अदृश्य कचरे को हम अपने एटमॉस्फीयर में, अपने बड़े घर में फेंक देते हैं। वह स्थान जो जीवन का आधार है- हमारी हवा- अब आधुनिक जीवन का कूड़ाघर बन गया है।

अब आती है खतरनाक बात : हम इस बड़े कूड़ेदान को साफ नहीं कर सकते। एक बार सीओ2 एटमॉस्फीयर में छोड़ दी जाती है, यानी सीओ2 का जो कचरा हम अपने बड़े कूड़ेदान में फेंकते हैं, वह सैकड़ों सालों तक एटमॉस्फीयर में रहता है। आपके रसोई घर के कूड़ेदान के विपरीत, इसे खाली करने के लिए आसमान में कोई नगर निगम नहीं है। इसे उठाने कोई नहीं आता। यह बस जमा होता रहता है।

औद्योगिक सभ्यता से पहले, वायुमंडल में सीओ2₂ की मात्रा लगभग 0.028% थी- प्रकृति द्वारा बनाए रखा गया एक नाजुक संतुलन। लेकिन आज, मानवीय गतिविधियों के कारण, यह बढ़कर 0.0428% हो गया है। यह एक छोटी संख्या लग सकती है, लेकिन यह सीओ2 के कंसंट्रेशन में 53% की वृद्धि दर्शाती है- और यह परिवर्तन बहुत बड़ा है। इस 53% वृद्धि का अर्थ है कि अपनी पृथ्वी की ऊष्मा धारण करने की क्षमता अब 53% बढ़ गई है। यही कारण है कि अब पृथ्वी गर्म हो रही है, जिसको हम सब महसूस कर रहे हैं।

यदि शरीर का तापमान केवल सिर्फ 2 डिग्री बढ़कर 100 डिग्री हो जाता है, तो आप कहते हैं आपको बुखार है। अब कल्पना कीजिए : पृथ्वी का औसत तापमान अब पहले की तुलना में लगभग 2.5 डिग्री बढ़ चुका है। तो क्या हम कह सकते हैं कि हमारे ग्रह को बुखार आ गया है? और यह हमारी वजह से है?

हमारा एटमॉस्फीयर कभी भी लैंडफिल नहीं बनना था। और फिर भी, हम इसके साथ अपने कूड़ेदान से भी बदतर व्यवहार करते हैं। हर नया उपकरण, हर अतिरिक्त ट्रिप, बिजली का हर बर्बाद वाॅट, हर गैर-जरूरी खरीदारी- ये सब एटमॉस्फीयर रूपी कूड़ेदान को भरता है। सबसे डरावना हिस्सा तो यह है कि हम ऐसा व्यवहार करते हैं मानो हम एक ऐसे ग्रह पर रहते है जो अनंत है और हम अनंत उपभोग कर सकते हैं। परंतु हमारा ग्रह सीमित है, इस पर सारे संसाधन सीमित हैं, तो हमारी जरूरतें भी सीमित ही होनी चाहिए।

तो सवाल यह है : अगर हम अपने लिविंग रूम को साफ रखने के लिए कड़ी मेहनत करते हैं, तो हम अपने ग्रह के लिए भी ऐसा ही क्यों नहीं करते? हम दिखाई देने वाले कचरे की इतनी परवाह क्यों करते हैं और बिना सोचे-समझे छोड़ी जाने वाली अदृश्य गैसों की इतनी कम क्यों? हमारा हर काम वातावरण को प्रभावित करता है। अब समय आ गया है कि हम अदृश्य पर ध्यान देना शुरू करें।

जलवायु सुधार टेक्नोलॉजी या नियम-कानून से शुरू नहीं होता। यह जागरूकता से शुरू होता है। संयम से शुरू होता है। यह हममें से हर एक द्वारा अपने बड़े घर के साथ उसी सम्मान से पेश आने से शुरू होता है, जैसा हम अपने बेडरूम के साथ करते हैं। हम इस सत्य को मानें कि एक सीमित ग्रह पर सीमित उपभोग ही संभव है।

(ये लेखक के अपने विचार हैं)

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