Mansukh L. Mandaviya’s column – PM Modi created a working system instead of making promises | मनसुख एल. मांडविया का कॉलम: पीएम मोदी ने वादों के बजाय काम करने वाला तंत्र बनाया

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8 घंटे पहले
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मनसुख एल. मांडविया केंद्रीय श्रम एवं रोजगार, युवा कार्यक्रम और खेल मंत्री
लंबे समय तक प्रधानमंत्री का दायित्व संभालने वाले बहुत ही कम नेताओं ने किसी राज्य में मुख्यमंत्री का दायित्व भी संभाला है। देश के ज्यादातर प्रधानमंत्री ‘राष्ट्रीय’ स्तर के नेता रहे हैं और उनके पास संघीय स्तर पर काम करने का अनुभव कम रहा है। लेकिन नरेंद्र मोदी इसके चंद अपवादों में से एक हैं।
नीतिगत केंद्रबिंदु के रूप में क्रियान्वयन में मोदी के दृढ़ विश्वास को बिजली क्षेत्र से संबंधित उनके दृष्टिकोण में देखा जा सकता है। गुजरात में उन्होंने देखा कि गांवों में खंभे और लाइनें तो हैं, लेकिन बिजली नदारद है। इसका समाधान उन्होंने ज्योतिग्राम योजना के रूप में निकाला, जिसके तहत फीडरों को अलग किया गया ताकि घरों को 24 घंटे बिजली मिल सके और खेतों को बिजली का एक निश्चित हिस्सा मिल सके। प्रधानमंत्री के रूप में उन्होंने दीनदयाल उपाध्याय ग्राम ज्योति योजना के जरिए इस सिद्धांत को आगे बढ़ाया। 18,374 गांवों को बिजली मिली।
बैंकिंग क्षेत्र में भी इसी सिद्धांत को फिर से दोहराया गया। कागजों में तो ग्रामीण परिवारों के बैंक में खाते थे, लेकिन व्यवहार में वे निष्क्रिय थे। जन-धन ने इस स्थिति को बदल दिया। आधार और मोबाइल फोन को व्यक्तिगत बैंक खातों से जोड़कर एक कमजोर पड़ी व्यवस्था को सीधे धन हस्तांतरण की बुनियाद बना दिया गया। इससे धन बिना किसी बिचौलिए के नागरिकों के हाथों में पहुंचा, बर्बादी पर लगाम लगी और सरकारी खजाने को भारी रकम की बचत हुई।
प्रधानमंत्री आवास योजना ने भुगतान को निर्माण कार्यों से जोड़ा, निगरानी के लिए जियो-टैगिंग का इस्तेमाल किया और बेहतर डिजाइन पर जोर दिया। पिछली सरकारों के अधूरे घरों के उद्घाटन के चलन को पलटते हुए लाभार्थियों को पूरी तरह निर्मित घर मिले।
गुजरात ने मोदी को यह भी दिखाया कि प्रगति किस प्रकार केंद्र और राज्य के बीच समन्वय पर निर्भर करती है। दशकों से अटके पड़े जीएसटी को राज्यों से आम सहमति बनाकर पारित किया गया। जीएसटी परिषद ने राजकोषीय संवाद को संस्थागत रूप दिया और एक एकीकृत राष्ट्रीय बाजार का निर्माण किया। व्यापार में सुगमता के आधार पर राज्यों की रैंकिंग करके और सुधारों को पुरस्कृत करके प्रतिस्पर्धी संघवाद को भी बढ़ावा दिया।
मोदी के लिए कल्याणकारी योजनाएं उत्पादकता से जुड़ा निवेश रही हैं, जिनका उद्देश्य लाभार्थियों को सशक्त बनाना है। गुजरात के कन्या केलवणी नामांकन अभियान ने महिला साक्षरता को 2001 के 57.8 प्रतिशत से बढ़ाकर 2011 तक 70.7 प्रतिशत कर दिया था। राष्ट्रीय स्तर पर इसे ही बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ कार्यक्रम में परिवर्तित किया गया। इसी प्रकार मातृ स्वास्थ्य के क्षेत्र में गुजरात में चिरंजीवी योजना थी तो केंद्र में प्रधानमंत्री मातृ वंदना योजना।
बुनियादी ढांचे के मामले में, गुजरात के बीआईएसएजी मानचित्रण से संबंधित प्रयोगों को पीएम गति शक्ति के रूप में विस्तारित किया गया, जहां 16 मंत्रालय और सभी राज्य अब एक ही डिजिटल प्लेटफॉर्म पर 1,400 परियोजनाओं की योजना बना रहे हैं।
वाइब्रेंट गुजरात शिखर सम्मेलनों ने दिखाया कि कैसे निरंतर जुड़ाव धारणाओं को बदल सकता है, एक राज्य को निवेशकों की नजर में एक विश्वसनीय निवेश गंतव्य बना सकता है और नौकरशाहों को व्यवसाय के अनुकूल बना सकता है। इसी अनुभव ने ‘मेक इन इंडिया’ को आकार दिया।
जब भारत 2047 तक विकसित भारत बनने का अपना लक्ष्य हासिल करेगा, तो ऐसा इसलिए संभव हो सकेगा क्योंकि प्रधानमंत्री ने शासन को ही नए सिरे से परिभाषित किया है। क्रियान्वयन को प्रशासन की कसौटी बनाकर उन्होंने भारत की विशाल मशीनरी को वादों से हटाकर काम करने वाली मशीनरी में बदल दिया है। यही नरेंद्र मोदी की निर्णायक विरासत है।
मुख्यमंत्री के रूप में अपने कार्यकाल के दौरान मोदी ने देखा कि योजनाएं अंतिम छोर पर क्यों विफल या सफल होती हैं। इसने उन्हें शासन के केंद्र में महज नीति-निर्माण के बजाय क्रियान्वयन को रखने वाला प्रधानमंत्री बनाया। (ये लेखक के अपने विचार हैं)
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