N. Raghuraman’s column: This Diwali, prepare a ‘time use survey’ for children | एन. रघुरामन का कॉलम: इस दीपावली बच्चों के लिए ‘टाइम यूज सर्वे’ तैयार करें

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7 घंटे पहले
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एन. रघुरामन, मैनेजमेंट गुरु
‘तुम्हारे पास कौन-कौन-से पटाखे हैं?’ कक्षा में एक लड़के ने दूसरे के कान में फुसफुसाते हुए पूछा। दूसरा जवाब दे पाता, इससे पहले ही शिक्षक ने इन छात्रों को देख लिया और एक-दूसरे से अलग कर दिया। यह देखते हुए कि पढ़ाए जा रहे विषय पर किसी का ध्यान नहीं है, शिक्षक ने पढ़ाना बंद कर होमवर्क की सूची समझानी शुरू की- जो दीपावली की छुट्टियों में सभी को करना होता है। और यह वही दिन है, जो साल-दर-साल दीपावली की छुट्टियाें से पहले स्कूल के आखिरी दिन होता है। और स्कूली बच्चों के अनुसार वह शुभ दिन आज शाम 5 बजे से शुरू होता है।
हम सभी ने इस त्योहार की सुबह और शाम में हवा की ठंडक महसूस की है। दोपहर का अधिकांश समय हम पटाखों को धूप में, छत या टेरेस पर रखने में बिताते थे। हर कुछ मिनटों में वहां जाकर पटाखों को उलटते-पुलटते, जैसे हमारी मां रसोई में रोटी पलटती थीं।
यह एक गतिविधि थी। दीपावली से पहले की बहुत सारी ऐसी गतिविधियां होती थीं। सफाई में मां की मदद से लेकर त्योहार के लिए भूली हुई चीजें लाने के लिए नजदीकी दुकान तक दौड़ना- हमारा अधिकांश समय मां की सहायता में बीतता। नए कपड़े देखना, टेलर के यहां जाना और समय से सिलाई पूरी करने के लिए उसके पीछे पड़े रहना एक और काम था।
पिताजी के काम से लौटने पर उनके साथ जाना और साइकिल पर सामान लादकर लाना, एक अलग काम था। बाजार में दूसरों की बातचीत देखना, उनके मोलभाव के तरीके सीखना, किसी दुकानदार के बारे में उनकी टिप्पणी सुनना जैसे ‘उससे सामान नहीं लेना चाहिए, वह बड़ा धोखेबाज है।’ इससे हमें दुनियादारी की समझ मिलती थी।
आज की तरह यदि उस वक्त ‘टाइम यूज सर्वे’ हाेता तो यकीन मानिए कि अधिकांश समय ‘त्योहारी दिनों में माता-पिता की विभिन्न गतिविधियों में मदद’ की श्रेणी में आता।लेकिन आज दुनिया बदल गई है। बीते एक दशक या शायद उससे भी अधिक समय में, हमारे बच्चों, खासकर लड़कों ने गेमिंग पर बिताए जाने वाले औसत समय को दोगुने से भी अधिक कर लिया है।
युवा लड़कों के लिए वीडियो गेमिंग एक सोशल एक्टिविटी बन गई है। हाल में हुए अमेरिका टाइम यूज सर्वे के चौंकाने वाले परिणाम रहे हैं। इस सबसे बड़े फेडरल सर्वे में हर साल हजारों बच्चों से पूछा जाता है कि उन्होंने दिन के हर मिनट में क्या किया? शोधकर्ताओं का कहना है कि लड़कों और गेमिंग को लेकर हुए इस सर्वे में गेमिंग के एक सामाजिक पहलू को छोड़ दिया गया है।
अधिकतर टीनएजर्स दूसरों के साथ गेम खेलते हैं, भले ही वे शारीरिक रूप से उनके साथ मौजूद हों। गेम खेलते समय वे दोस्तों से बात करते हैं, जैसे कि फेसटाइम पर। यह लड़कों के लिए अपनी कम्युनिटी बनाने और दूसरों से जुड़ाव मससूस करने का मौका होता है। कम से कम 97% लड़के ऑनलाइन गेम खेलते हैं, जबकि 73% लड़कियां ऐसा करती हैं।
लड़के ऑनलाइन गेम खेलने में कहीं अधिक समय बिताते हैं। हो सकता है कि वीडियो गेम खेलने से उनकी विकासात्मक जरूरतें पूरी होती हों। मसलन, क्षमता निर्माण, महारत हासिल करना, अवतार बनाना और दुनिया को एक्सप्लोर कर सहपाठियों से जुड़ना। ये वो चीजें हैं, जिनकी सभी किशोर लालसा करते हैं। लेकिन उन्हें दुनिया से जोड़ने वाली इस नई तकनीक के जोखिम भी हैं। बच्चे इसमें पूरी तरह डूब जाते हैं और यह लत लगाने वाला भी है।
हमारे त्योहार उपरोक्त सभी गुणों को सिखाने की क्षमता रखते हैं। बच्चों से कहें कि बाहर जाएं, मोलभाव करें, रिश्तेदारों से मिलें। उन्हें खरीदारी के निर्णय करने दें। उनसे गलतियां हो सकती है, लेकिन ये उनके लिए सबक होगा। इससे उन्हें फेस-टु-फेस एक्टिविटी करने और मानवीय भावनाओं को समझने में मदद मिलेगी- कुछ ऐसा जो आज एआई बड़े पैमाने पर नहीं कर सकता।
फंडा यह है कि बच्चों को गेमिंग कॉन्सोल पर बैठने की अनुमति देने के बजाय दीपावली की छुटि्टयों के दौरान एक ‘टाइम यूज सर्वे’ तैयार करें और इस समय के दौरान स्वयं देखें कि उन्होंने कौन-से मानवीय गुण विकसित किए या सीखे हैं।
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