N. Raghuraman’s column: Elderly people find support through strong relationships and alternative housing | एन. रघुरामन का कॉलम: बुजुर्गों को मिले मजबूत रिश्तों और वैकल्पिक घर का सहारा

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5 घंटे पहले
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एन. रघुरामन, मैनेजमेंट गुरु
लोगों की उम्र लंबी हुई है और वे सोच रहे हैं कि अब कैसे और कहां रहा जाए। चेन्नई के 89 वर्षीय जे. नारायणन भी अपवाद नहीं हैं। उन्होंने 15 साल पहले ही यह सोच लिया था, जब उनकी पत्नी (अब 84 वर्षीय) बीमारी की वजह से चल-फिर नहीं पा रही थीं। वे अपने बड़े घर में अकेले नहीं रहना चाहते थे।
इसलिए चेन्नई के पॉश इलाके में, अपनी रिश्तेदार के बंगले में रहने लगे, जहां स्वास्थ्य सेवाएं नजदीक हैं। उन्होंने दूसरी मंजिल पर डेरा डाला, जहां चार बेडरूम, किचन और हॉल था। इससे उन्हें प्राइवेसी मिली, घर की हेल्प के लिए जगह मिली और वहां इमरजेंसी में रिश्तेदार आ सकती थीं। उनकी बेटी की शादी हो चुकी है, बेटा विदेश में रहता है और घर खर्च संभालता है।
बुढ़ापे में ज्यादातर लोग अपने ही घर में रहना चाहते हैं। आज रखरखाव की बढ़ती कीमतें नहीं, बल्कि स्वास्थ्य समस्याएं अपने घर में रहना मुश्किल बना रही हैं। जिनके पास पैसा है, वे रोजमर्रा के कामों के लिए हेल्प नियुक्त कर रहे हैं। बाकी घर के विकल्प तलाश रहे हैं।
यह कहना है हार्वर्ड यूनिवर्सिटी की जॉइंट सेंटर फॉर हाउसिंग स्टडीज का, जिसके मुताबिक 2023 में 9,90,000 अमेरिकी हेल्प के साथ या किसी गैर-रिश्तेदार व्यक्ति के साथ रह रहे थे। इसमें 2021 की तुलना में 8.8% बढ़त हुई।
बढ़ती उम्र में स्वास्थ्य समस्याओं और लंबी उम्र के विरोधाभास के बीच मुंबई में डेवलपर इंटरजनरेशनल (अंतर-पीढ़ीगत) हाउसिंग कॉम्प्लेक्स बना रहे हैं, जो स्वास्थ्य सेवाओं के नजदीक और शहर के बीच हैं। ये डेवलपर दो फायदे दे रहे हैं। उसी कॉलोनी में पड़ोस की इमारत में युवाओं का निवास और हमउम्र लोगों के साथ समय बिताने के लिए बगीचा।
एक रियल एस्टेट कंपनी ने 100 एकड़ की टाउनशिप लॉन्च की है, जिसमें 45 में से दो टॉवर बुजुर्गों को समर्पित हैं। इन इमारतों में सर्विस अपार्टमेंट जैसे फायदे मिलेंगे, जैसे अलग से हाउसकीपिंग की सुविधा। इमारत में व्हील चेयर के लिए बड़े दरवाजे होंगे और दीवार के किनारे गोल रहेंगे ताकि चोट न लगे।
घर में या कम्युनिटी हॉल में, घर का बना खाना भी मिलेगा। डेवलपर, बुजुर्गों को यह अहसास देना चाहते हैं कि वे अपने शहर से अलग नहीं होंगे। पश्चिमी देशों में 20% हाउसिंग मार्केट, सीनियर सिटीजन की जरूरतें पूरी करता है।
बुजुर्गों को सस्ते और सुविधाजनक घर देने के लिए, महाराष्ट्र सरकार की प्रस्तावित हाउसिंग पॉलिसी 2025 में करों में कटौती का सुझाव है। इसके तहत, सहायता वाले घर खरीदने पर, बुजुर्गों को 5-7% स्टाम्प ड्यूटी की जगह, सिर्फ 1000 रुपए देने होंगे।
मुंबई में ऐसी बड़ी आबादी है, जिनके बच्चे उनसे दूर रहते हैं। मेरे सहकर्मी, विजय शंकर मेहता के मुताबिक कई अमीर बेबी बूमर्स (1946 से 1964 के बीच जन्मे) 6 गलतियां करते हैं। वे कहते हैं कि लोग पहले काम में ‘व्यस्त’ रहते हैं, ‘मस्त’ जीवन जीते हैं, फिर बुढ़ापे और दूर के रिश्तों से ‘त्रस्त’ हो जाते हैं, इसलिए उनमें से कुछ को वे ‘निरस्त’ कर देते हैं, तकनीक में उलझी आबादी ‘सुस्त’ हो जाती है और अंततः कुछ रिश्ते ‘अस्त’ हो जाते हैं।
लेकिन नारायणन जैसे लोगों ने दोनों ही काम संभाले, उन्होंने कई लोगों से रिश्ते बनाए रखे और सही समय पर “वैकल्पिक आवास’ तलाशा। पश्चिमी देशों में यह अब लोकप्रिय हो रहा है और मुंबई जैसे शहरों में भी शुरुआत हो गई है।
2030 के बाद, दुनिया में और भी विकल्प सामने आएंगे, क्योंकि बुजुर्गों की आबादी बढ़ रही है। इससे पहले कि यह महंगा हो जाए, नारायणन की तरह, अपने शहर में रहने के लिए जल्द कदम उठाएं।
फंडा यह है कि अगर आप बुजुर्ग हैं या बुजुर्ग होती आबादी का हिस्सा हैं, तो अपने रिश्तों को मजबूत बनाएं और जल्द से जल्द वैकल्पिक घर तलाशना शुरू कर दें।
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