N. Raghuraman’s column – Our response to experiences determines the course of our life | एन. रघुरामन का कॉलम: अनुभवों को लेकर हमारी प्रतिक्रिया से जीवन का रास्ता तय होता है

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5 घंटे पहले
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एन. रघुरामन, मैनेजमेंट गुरु
ये रोज का नियम था, वह कुछ देर के लिए वहां खड़े होते और तट से टकराती लहरें देखते रहते। चेन्नई से 330 किमी दूर नागपट्टनम जिले में वेलानकन्नी समुद्र तट पर लहरें बहुत कोमल होती हैं। वे आती हैं, और बर्फ की तरह पैरों को छूती हैं।
वह जैसे लहरों से पूछना चाहते हैं, ‘उस दिन तुम इतनी आक्रामक क्यों थीं?’ लेकिन वह पूछते नहीं हैं। क्योंकि वो जानते हैं कि लहरें जवाब नहीं देंगी। लेकिन वह यह कभी नहीं भूलते कि 26 दिसंबर 2004 को सुनामी ने इसी समुद्र तट को कितनी बुरी तरह प्रभावित किया था।
40 वर्षों से मछली पकड़ने का काम कर रहे 58 साल के एस. सेल्वमणि ने उस दिन अपने परिवार के छह सदस्यों को खो दिया था, जिसमें उनके पिता और बड़े भाई भी शामिल थे। अपने परिवार को समुद्र में डूबते देख वह सदमे में आ गए थे। रोजाना कम से कम एक बार उस दिन का वो दृश्य उनकी याद में वापस आ ही जाता है।
1997 की गर्मियों में उसी वेलानकन्नी के 27 वर्षीय सामाजिक कार्यकर्ता पी. एंटनी फ्रैंकलिन जयराज ने देखा कि कैसे तेज लहरें तीन पर्यटकों को बहा ले गईं। परिजन उनके शवों के पास रो रहे थे, इस दृश्य ने उन्हें बहुत बुरी तरह प्रभावित किया। वह अब भी सोचते रहते हैं कि अगर वह समय पर वहां होते तो क्या उन्हें बचाया जा सकता था?
जीवन ने जब उन्हें ऐसे अनुभव कराए तब उन दोनों ने क्या किया? एंटनी ने एक ‘कैटामारन’ यानी दो पतवारों वाली नाव और कुछ मछुआरों के साथ ‘हेल्पिंग हैंड्स’ संस्था शुरू की। सुनामी के बाद सेल्वमणि भी उनके साथ हो लिए।
उनके ग्रुप के लगभग सभी सदस्य सुबह 3 बजे मछली पकड़ने से दिन शुरू करते हैं और 9 बजे तक बाजार में बेचने के बाद शाम 6 बजे तक लाइफ गार्ड की ड्यूटी के लिए तट पर रहते हैं। अब तो तटीय सुरक्षा बल भी आपातकालीन स्थिति में पहले कार्रवाई दल के तौर पर ‘हेल्पिंग हैंड्स’ को बुलाते हैं।
गत सितंबर में वेलानकन्नी श्राइन बेसिलिका में दस लाख से अधिक लोग आए थे। वेलानकन्नी में क्रिसमस, ईस्टर, नव वर्ष और सालाना सेंट मैरी नेटिविटी फेस्टिवल के दौरान भीड़ चरम पर होती है। तब हेल्पिंग हेंड्स बड़ा सहारा बना रहता है, खासकर जब रोज हजारों लोग समुद्र तट पर आते हैं।
इस जगह से कहीं दूर 21 साल की एक लड़की है, जिन्होंने अपने खेल से देश का गौरव बढ़ाया। वे बुंदेलखंड के ग्रामीण इलाके की अपनी साधारण पृष्ठभूमि को भी कभी नहीं भूलतीं। उनके कोच यह जान गए थे कि उनके पिता ने मध्य प्रदेश सरकार में अपनी पुलिस की नौकरी और पुलिस क्वार्टर खो दिया है।
ऐसे में वे उनका सपना पूरा करने के लिए आगे आए। उनके कोच राजीव बिल्थरे ने फटे कपड़ों और साधारण से जूतों में आई उस लड़की को 2017 में छतरपुर स्थित अपनी साई क्रिकेट एकेडमी में दाखिला दिया। चूंकि राजीव जानते थे कि लड़की के परिवार के पास कुछ भी नहीं है, इसलिए उन्होंने ना सिर्फ कोचिंग की फीस माफ की, बल्कि उन्हें जूते, यूनिफॉर्म भी दिए। उनके लिए क्रिकेट गियर भी खरीदे। उन्हें अच्छे से याद है कि जब उन्होंने उन्हें क्रिकेट स्पाइक्स खरीदने के लिए 1600 रुपए दिए, तो कैसे उनका चेहरा दमक उठा और उन्होंने कहा कि ‘मेरा सपना सच हो गया।’
अभी एक हफ्ते पहले उन्होंने अपने चौथे एकदिवसीय अंतरराष्ट्रीय मैच के दौरान गेंदबाजी में 52 रन देकर 6 विकेट लिए। इससे भारत को इंग्लैंड के खिलाफ 13 रनों से जीत पाने और सीरीज जीतने में बड़ी सहायता मिली। क्रांति गौड़ आठवीं कक्षा की ड्रॉपआउट हो सकती हैं, लेकिन चैरिटी में वह कई शिक्षित लोगों से भी आगे हैं।
भारतीय महिला टीम की यह स्टार नवोदित महिला क्रिकेट खिलाड़ियों को मुफ्त में प्रीमियम स्पाइक शूज उपलब्ध कराती हैं और चाहती हैं कि प्रतिभा वाली कोई भी लड़की सिर्फ गरीबी के कारण पीछे ना रह जाए। मछुआरे जान की कीमत जानते हैं, क्योंकि वे हर दिन सुबह से ही समुद्र में अपनी जान दांव पर लगाते हैं। और खेल हस्तियां समझती हैं कि कैसे सही उपकरण खेलों में स्टारडम हासिल करने में मदद कर सकते हैं।
फंडा यह है कि जिंदगी हम सभी को अलग-अलग अनुभव देती है। उन अनुभवों के प्रति हमारी प्रतिक्रिया हमारे भविष्य के जीवन का रास्ता तय करती है।
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